कला, नाटक व फिल्मों का उपयोग कर शिक्षा को सरल बनाया जा सकता है : प्रो. काम्बोज

कला, नाटक व फिल्मों का उपयोग कर शिक्षा को सरल बनाया जा सकता है : प्रो. काम्बोज

 जून 21, 2022
आज की शिक्षा व्यापक, विस्तृत एवं बहुआयामी हो गई है। ऐसी स्थिति में सीखने वाला विद्यार्थी शिक्षक को कितना ग्रहण कर पा रहा है, यह अत्यंत महत्वपूर्ण है।  इसलिए शिक्षा को ग्रहणशील बनाने के लिए कला, साहित्य, नाटक व फिल्मों का सृजनात्मक उपयोग किया जा सकता है ताकि सीखने वालों के लिए शिक्षा बिल्कुल ही सरल व सहज हो जाए।  उक्त विचार गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के मानव संसाधन विकास केंद्र द्वारा ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में शिक्षा में कला व नाटक को जोड़ना : सिनेमा को 21वीं सदी की दक्षता में शैक्षिक यंत्र के रूप में उपयोग करना’ विषय पर आयोजित ई-कार्यशाला व संगोष्ठी में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बलदेव राज काम्बोज ने अपने बधाई संदेश में व्यक्त किए।
विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. अवनीश वर्मा ने भी मानव संसाधन विकास केंद्र को बधाई देते हुए कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में अनेक ऐसे बिंदु है, जो वास्तव में इसे नया, अद्भुत व अनोखा बनाते हैं।  इसलिए इस नीति के सफल क्रियान्वयन के लिए भावनात्मक एवं सृजनात्मकता दोनों को संतुलित रूप में प्रयोग करना अति आवश्यक है।  आज शिक्षक को एक कलात्मक व रचनात्मक शैली अपनाने की आवश्यकता है।
इस अवसर पर मशहूर फिल्म निर्माता एवं आलिया विश्वविद्यालय के जनसंचार की वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. सुभाष दास मलिक ने बतौर मुख्य वक्ता अपने उद्बोधन में कहा कि कलात्मक प्रस्तुति से न केवल शिक्षा की ग्रहणशीलता बढ़ती है, बल्कि शिक्षा की एकरूपता व नीरसता भी समाप्त हो जाती है।  इसलिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के क्रियान्वयन में शिक्षा को नीरस से समरस बनाने के लिए शिक्षा में कलात्मक शैली, रचनात्मक स्वरूप, साहित्यिक विधा के साथ-साथ फिल्मों के माध्यम से भी प्रस्तुति करना आवश्यक है।  फिर शिक्षार्थी चाहे स्कूल का हो या उच्चतर शिक्षा का, उनकी ग्रहणशीलता व सहभागिता में आमूल चूल परिवर्तन आएगा।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के जनसंचार के वरिष्ठ प्रोफेसर एवं मानव संसाधन विकास केंद्र के निदेशक डॉ. मनोज दयाल ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि कला, साहित्य, नाटक एवं फिल्म जैसे इस रचनात्मक यंत्रों के उपयोग से शिक्षा में एक विशेष प्रकार की प्रभावशीलता आ जाती है, जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के क्रियान्वयन में कारगर सिद्ध हो सकती है।
 शिक्षा अध्ययन संकाय की अधिष्ठात्री एवं कार्यशाला की संयोजिका प्रोफेसर वंदना पूनिया ने कार्यशाला के विशिष्ट उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कला युक्त शिक्षा राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, क्योंकि कला से चर्चा, परिचर्चा व संवाद का दौर आरंभ होने लगता है।
इस अवसर पर केंद्र के सहायक प्रोफेसर अनुराग सांगवान ने कहा कि एक कला एवं नाटक के रूप में सिनेमा एक प्रभावी शैक्षिक यंत्र है। इसलिए आज के बदलते दौर में सिनेमाई प्रस्तुति की विशेष महता है।
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