आज है भारत की पहली महिला शिक्षिका का जन्मदिन

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TNT News: Vivek Kumar:
आज दौर कितना बदल गया है बेटे और बेटियों को बराबर के अवसर मिल रहें हैं और हमारी बेटियां उन्नति के नए सोपान गढ़ भी रहीं हैं लेकिन तत्कालीन भारत में ऐसा नहीं थी। बेटियों की शिक्षा को लेकर कोई सपने में भी कल्पना नहीं कर सकता था। उस जमाने में भारत की एक बेटी ने समाज की तमाम रूढ़ियों का मुकाबला करते हुए इतिहास रचा और बन गईं देश की पहली महिला शिक्षिका। जी हां हम बात कर रहें है सावित्री बाई फुले की। प्रति वर्ष 3 जनवरी को उनके जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। आज पूरा देश उन्हें याद कर रहा है।

सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था। इनके पिता का नाम खन्दोजी नैवेसे और माता का नाम लक्ष्मी था। यह वह दौर था जिस दौर में बहुत सी सामाजिक परम्पराऐं ऐसी थी निका विरोध करना किसी अपराध से कम नहीं था। इसी में से एक बालविवाह भी एक ऐसी ही परम्परा थी इसी के चलते सावित्रीबाई फुले का विवाह 1840 में महज 9 साल की उम्र में ज्योतिराव फुले से कर दिया गया था।

पति ने हर कदम पर दिया साथ:

कहते है यदि जीवन साथी ऐसा हो जो आप के सपनों में रंग भरे तो जिन्दगी सफल हो जाती है। सवित्री बाई फुले की शिक्षा पति के घर जाने पर शुरू हुई। लेकिन ये इतना भी आसान नहीं था। उन्हें समाज के विरोध का भी सामना करना पड़ा। वे जब स्कूल जाती थीं, तो विरोधी उन पर पत्थर मारते और उन पर गोबर फेंक कर उनके वस्त्र गन्दें कर देते। इस प्रकार के विरोध का सामना करते हुए उन्होने कभी हार नहीं मानी। पति का साथ कदम दर कदम उनके साथ रहा।

बालिकाओं के लिए विद्यालय की स्थापना:

यह वह दौर था जब ​बालिकाओं की शिक्षा के बारे में सोचाना तो दूर चर्चा करना भी पाप मानते थे। यही कहा जाता था कि बेटियों का काम सिर्फ घर मेें साफ सफाई तक ही सीमित है। इस दौर में 5 सितंबर 1848 में पुणे में अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ उन्होंने महिलाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की। महज एक साल में सावित्रीबाई और महात्मा फुले पाँच नये विद्यालय खोलने में सफल हो गए। शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए तत्कालीन सरकार ने उस दौर में इन्हें सम्मनित भी किया। वर्ष 1848 में बालिका विद्यालय की प्रधानचार्य रहीं और समाज की बहुत सी चुनौतियों का सामना करते हुए बेटियों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया।

समाज सुधार के लिए रहीं समर्पित:

सावित्रीबाई ने अपने जीवन को समाज के प्रति समर्पित कर दिया। पूरे जीवन भर उन्होने सामजिक बुराईयों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। जिसमें विधवा विवाह करवाना, छुआछूत मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाने के कार्य वह करती रहीं। बहुमुखी प्रति​भा की धनी सावित्रीबाई फुले कवियत्री भी थी। उन्हें मराठी की आदि कवियत्री के रूप में भी जाना जाता है। समाज सेवा के पूरी तहर समर्पित सिवित्री बाई फुले प्लेग के मरीजों की सेवा करते हुए इस बीमारी की चपेट में आ गईं और 10 मार्च 1897 को उनका निधन हो गया।

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