हिंदू पंचाग के अनुसार एक साल में चार बार नवरात्रि होती है, जिसमें दो नवरात्रि मुख्य होती हैं, बाकी दो गुप्त नवरात्रि कहलाती है. मुख्य नवरात्रि में एक शारदीय नवरात्रि और दूसरी चैत्र नवरात्रि के नाम से प्रसिद्ध है. चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ 9 अप्रैल से हो चुका है. इस दौरान नीम के वृक्ष की पूजा से मां दुर्गा के दो रूप बेहद प्रसन्न होते हैं. कौन से हैं वे दो रूप? इस बारे में विस्तार से न्यूज़18 हिंदी को बताया है भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा ने. आइए जानते हैं.
नीम के पेड़ का महत्व
नवरात्रि के दिनों में माता की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. उनकी उपासना के दौरान कुछ वृक्षों की पूजा करने का भी महत्व है. इन्ही में से एक है नीम का वृक्ष. नीम का स्वाद जितना कड़वा होता है, सेहत के लिए वह उतना ही लाभकारी होता है. नवरात्रि में नीम वृक्ष से जुड़े कुछ उपाय अपनाते हैं तो इससे आपको जीवन में कई लाभ दिखाई दे सकते हैं.
दो देवियों की एक साथ हो जाती है पूजा
हिंदू धर्म में नीम के वृक्ष का बहुत महत्व है. धार्मिक ग्रंथों की मानें तो नीम में दो देवियों का एक साथ वास होता है. एक है माता दुर्गा तो दूसरी शीतला माता. मां दुर्गा के शीतला रूप को शुद्धता और रोग मुक्त करने वाली देवी के रूप में जाना जाता है. नीम के वृक्ष का उत्तर भारत के साथ साउथ इंडिया में भी महत्व है. नवरात्रि के दिनों में नीम के वृक्ष की पूजा करने से दो देवियों की एक साथ उपासना हो जाती है.
नीम की पत्तियों से देवी की पूजा
नवरात्रि में नीम के वृक्ष के साथ उसकी पत्तियों का भी महत्व है. जिस प्रकार भगवान भोलेनाथ को बेलपत्र चढ़ाएं जाते हैं, उसी तरह माता रानी को नीम के पत्ते चढ़ाए जाते हैं. नवरात्रि के दिनों में माता दुर्गा की पूजा में नीम की पत्तियों को शामिल करने से वे खुश होती हैं. इसके साथ ही नीम के वृक्ष की हर रूप में पूजा होती है. जिसमें वृक्ष, पत्ते और लकड़ियां शामिल हैं. जहां वृक्ष की पूजा होती है, पत्ते मां को चढ़ते हैं और लकड़ियों को हवन करने में उपयोग होता है. नीम की लकड़ियों से हवन करने से नकारात्मकता दूर होती है, वातावरण में शुद्धता आती है. इसके अलावा ऐसा भी माना जाता है कि इसके उपयोग से शनि और केतु के बुरे प्रभाव से मुक्ति मिलती है.