श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव: भारत का दांव और कूटनीतिक महत्त्व

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श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव: भारत का दांव और कूटनीतिक महत्त्व
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श्रीलंका का राष्ट्रपति चुनाव, जो 21 सितंबर 2024 को हो रहा है, भारतीय कूटनीति के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। पिछले कुछ वर्षों में, श्रीलंका ने आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता, और सामाजिक आंदोलन का सामना किया है। जब 2022 में गोटाबाया राजपक्षे के खिलाफ प्रदर्शन हुए, तो स्थिति ने तेजी से बदल गई। अब, एक नए राष्ट्रपति का चुनाव, भारत के लिए सामरिक, राजनीतिक और कूटनीतिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है।

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चुनावी परिदृश्य

श्रीलंका के इस चुनाव में लगभग तीन दर्जन उम्मीदवार मैदान में हैं, लेकिन मुख्य रूप से चार प्रमुख उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं:

  1. रानिल विक्रमसिंघे (मौजूदा राष्ट्रपति)
  2. सजित प्रेमदासा (नेता प्रतिपक्ष)
  3. अरुना कुमार दिसानायके (वामपंथी नेता)
  4. नमल राजपक्षे (पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के बेटे)
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इनमें से रानिल विक्रमसिंघे और सजित प्रेमदासा मुख्य मुकाबले में हैं।

भारत की निगाहें क्यों

सामरिक महत्त्व

श्रीलंका का भौगोलिक स्थान भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। श्रीलंका की स्थिति भारत के दक्षिणी तट के निकट है, जहाँ कई महत्वपूर्ण भारतीय सैन्य और रणनीतिक प्रतिष्ठान स्थित हैं। इसके अतिरिक्त, श्रीलंका के उत्तरी और पूर्वी हिस्से में रहने वाले तमिलों की जनसंख्या भारत के दक्षिणी राज्यों के साथ गहरे रिश्ते रखती है। भारत ने हमेशा श्रीलंका में तमिलों की स्थिति पर चिंता व्यक्त की है, जो भारत-श्रीलंका संबंधों में एक महत्वपूर्ण कड़ी है।

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चीन की बढ़ती उपस्थिति

चीन की रणनीतिक गतिविधियाँ श्रीलंका में बढ़ती जा रही हैं, जिससे भारत के लिए चिंता का विषय बन गया है। हाल के वर्षों में, श्रीलंका के साथ चीन के मजबूत रिश्ते, विशेष रूप से हंबनटोटा बंदरगाह के लीज समझौते के कारण, भारत के लिए एक चुनौती बन गए हैं।

भारत का पसंदीदा उम्मीदवार

रानिल विक्रमसिंघे

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रानिल विक्रमसिंघे को भारत का करीबी माने जाने के बावजूद, उनकी चीन के प्रति नजदीकी भी स्पष्ट है। हालांकि, उन्हें इस चुनाव में एक स्थिरता प्रदान करने वाले नेता के रूप में देखा जा सकता है। उनके पास एक प्रशासनिक अनुभव है जो वर्तमान आर्थिक संकट से निपटने में सहायक हो सकता है।

सजित प्रेमदासा

सजित प्रेमदासा ने 13वें संशोधन को लागू करने का वादा किया है, जो श्रीलंका के तमिल समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है। उनकी पार्टी का समर्थन, खासकर श्रीलंकाई तमिल पार्टियों से, उन्हें भारत के लिए एक संभावित सहयोगी बना सकता है।

अरुना कुमार दिसानायके

हालाँकि, अरुना कुमार दिसानायके ने गुड गवर्नेंस का वादा किया है, लेकिन उनकी चीन के प्रति नजदीकी भारत के लिए चिंताजनक है।

नमल राजपक्षे

नमल राजपक्षे के लिए यह चुनाव उनके परिवार की राजनीतिक विरासत को बनाए रखने की चुनौती है। उनके पिता, महिंदा राजपक्षे, को आर्थिक संकट के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है, जिससे उनके लिए चुनाव जीतना मुश्किल हो सकता है।

भारत की रणनीति

भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह श्रीलंका में एक ऐसा नेतृत्व स्थापित करे जो उसकी सामरिक और कूटनीतिक हितों की रक्षा कर सके। यह आवश्यक है कि भारत इस चुनाव के परिणामों पर ध्यान दे और संभावित उम्मीदवारों के साथ सामंजस्य बनाए।

संभावित परिणाम

यदि रानिल विक्रमसिंघे जीतते हैं, तो भारत के लिए यह एक स्थिरता का संकेत होगा, जबकि सजित प्रेमदासा की जीत से श्रीलंका में तमिलों के अधिकारों को बढ़ावा मिल सकता है। दूसरी ओर, यदि अरुना कुमार दिसानायके या नमल राजपक्षे की जीत होती है, तो भारत को चीन के बढ़ते प्रभाव का सामना करना पड़ सकता है।

श्रीलंका का राष्ट्रपति चुनाव केवल एक राजनीतिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह भारत की सामरिक नीति और कूटनीतिक लक्ष्यों को भी प्रभावित करेगा। भारत को चाहिए कि वह चुनाव के परिणामों को ध्यान में रखते हुए अपने कूटनीतिक कदम उठाए और सुनिश्चित करे कि श्रीलंका में ऐसा नेतृत्व स्थापित हो जो भारतीय हितों का संरक्षण कर सके।

इस चुनाव का परिणाम न केवल श्रीलंका की राजनीति को प्रभावित करेगा, बल्कि भारत-श्रीलंका संबंधों पर भी दीर्घकालिक प्रभाव डालेगा। भारत को इस चुनाव पर गहरी नज़र रखनी होगी और आवश्यकतानुसार अपनी रणनीतियों को समायोजित करना होगा।

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