संसद में असदुद्दीन ओवैसी की सदस्यता खतरे में (Palestine)

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हाल ही में, हैदराबाद से सांसद और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने लोकसभा में शपथ लेते समय ‘जय फिलिस्तीन’ का नारा देकर विवाद पैदा कर दिया। भारतीय जनता पार्टी (BJP) के कई नेताओं ने इस नारे को विदेशी राज्य के प्रति वफादारी का संकेत बताते हुए असदुद्दीन ओवैसी की सदस्यता पर सवाल उठाया है और कहा है कि इसे विदेशी राज्य के प्रति वफादारी का संकेत बताया जा सकता है। आइए इस पूरे मुद्दे को गहराई से समझें और कानून क्या कहता है।

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विवाद का प्रारंभ

असदुद्दीन ओवैसी ने लोकसभा में अपने शपथ ग्रहण के अंत में ‘जय फिलिस्तीन’ का नारा लगाया, जिसे बाद में लोकसभा के रिकॉर्ड से हटा दिया गया। इस घटना ने राजनीतिक और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों में हलचल मचा दी है। BJP नेताओं ने इसे देश की संप्रभुता के खिलाफ बताया और ओवैसी की सदस्यता रद्द करने की मांग की।

कानूनी दृष्टिकोण

भारतीय संविधान

भारतीय संविधान के अनुसार, संसद सदस्य को अयोग्य ठहराने के कुछ विशेष कारण होते हैं। इनमें से कुछ मुख्य कारण हैं:

  1. दोषसिद्धि: यदि किसी संसद सदस्य को किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है और सजा सुनाई जाती है, तो वह अयोग्य हो सकता है।
  2. अनुशासनहीनता: यदि कोई सदस्य संसद की अनुशासनहीनता के नियमों का उल्लंघन करता है, तो उसे अयोग्य ठहराया जा सकता है।
  3. दलबदल कानून: यदि कोई सदस्य अपनी पार्टी को बदलता है या अपनी पार्टी के खिलाफ वोट करता है, तो उसे अयोग्य ठहराया जा सकता है।

अनुच्छेद 102

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 102 यह स्पष्ट करता है कि संसद सदस्य को किन कारणों से अयोग्य ठहराया जा सकता है। इसमें मुख्यत: मानसिक विकार, दिवालियापन, और सरकारी पद पर होना शामिल है। इस अनुच्छेद के तहत किसी सदस्य को विदेशी राज्य के प्रति वफादारी दिखाने के कारण अयोग्य ठहराने का स्पष्ट उल्लेख नहीं है।

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लोकसभा की आचार संहिता

लोकसभा की आचार संहिता भी संसद सदस्यों के व्यवहार को नियंत्रित करती है। हालांकि, इसमें भी विदेशी राज्य के प्रति नारेबाजी को लेकर कोई स्पष्ट नियम नहीं है। इस प्रकार, केवल ‘जय फिलिस्तीन’ का नारा लगाने से ओवैसी की सदस्यता रद्द करना मुश्किल प्रतीत होता है।

राजनीतिक दृष्टिकोण

BJP नेताओं का कहना है कि ‘जय फिलिस्तीन’ का नारा एक विदेशी राज्य के प्रति वफादारी दर्शाता है और यह देश की संप्रभुता के खिलाफ है। हालांकि, असदुद्दीन ओवैसी ने अपने नारे का बचाव करते हुए कहा कि वह फिलिस्तीन की जनता के प्रति अपनी समर्थन व्यक्त कर रहे थे, न कि किसी विदेशी राज्य के प्रति वफादारी दिखा रहे थे।

सार्वजनिक प्रतिक्रिया

इस घटना पर जनता की प्रतिक्रिया मिश्रित रही है। कुछ लोग ओवैसी के नारे का समर्थन कर रहे हैं और इसे उनके विचारों की स्वतंत्रता के रूप में देख रहे हैं। वहीं, कुछ लोग इसे गैर-जिम्मेदाराना और अनावश्यक बता रहे हैं।

असदुद्दीन ओवैसी की प्रतिक्रिया

असदुद्दीन ओवैसी ने अपने बयान में कहा है कि उनका नारा ‘जय फिलिस्तीन’ किसी भी प्रकार से भारत के खिलाफ नहीं है। उन्होंने इसे मानवाधिकारों और न्याय की आवाज बताया है। ओवैसी ने कहा कि वे हमेशा से ही फिलिस्तीन के समर्थन में रहे हैं और उनका नारा इसी समर्थन का एक हिस्सा है।

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क्या वाकई सदस्यता रद्द हो सकती है

भारत में संसद सदस्य को अयोग्य ठहराने की प्रक्रिया काफी जटिल है। इसे लोकसभा अध्यक्ष या फिर एक विशेष समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा निष्पादित किया जा सकता है। किसी सांसद को अयोग्य ठहराने के लिए ठोस और स्पष्ट कारणों की आवश्यकता होती है।

जैसा कि हमने पहले देखा, ‘जय फिलिस्तीन’ के नारे को केवल इसलिए सदस्यता रद्द करने का कारण बनाना मुश्किल है क्योंकि भारतीय संविधान या संसद की आचार संहिता में इस तरह के नारे के लिए स्पष्ट प्रावधान नहीं हैं। इसके लिए संभवतः एक विस्तृत जांच की आवश्यकता होगी, जो यह तय करेगी कि यह नारा किसी विदेशी राज्य के प्रति वफादारी दर्शाता है या नहीं।

असदुद्दीन ओवैसी के ‘जय फिलिस्तीन’ के नारे ने राजनीतिक और कानूनी बहस को जन्म दिया है। वर्तमान कानूनी और संविधानिक प्रावधानों के आधार पर, केवल इस नारे के कारण ओवैसी को संसद सदस्यता से अयोग्य ठहराना कठिन प्रतीत होता है। हालांकि, यह मामला यह जरूर दर्शाता है कि हमारे नेताओं को संसद में अपने शब्दों और कार्यों के प्रति सतर्क रहना चाहिए।

अगर इस मामले को लोकसभा में गंभीरता से लिया जाता है, तो यह संभव है कि संसद की आचार संहिता में कुछ नए प्रावधान जोड़े जाएं, जिससे भविष्य में ऐसे विवादों से बचा जा सके।

यह देखा जाना बाकी है कि ओवैसी के इस नारे के कारण क्या परिणाम सामने आते हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि यह मामला फिलहाल चर्चा और बहस का विषय बना रहेगा।

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