72 साल बाद के चुनाव में कितना आएगा खर्च, कौन उठाता है इसका भार?

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इलेक्‍शन कमीशन (EC) ने शनिवार को लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है. लोकसभा के पहले चरण का चुनाव 19 अप्रैल को होगा. दूसरे चरण के लिए 26 अप्रैल, तीसरे चरण के लिए 7 मई, चौथे चरण के लिए 13 मई, पांचवें चरण के लिए 20 मई, छठे चरण के लिए 25 मई और सातवें चरण के लिए 1 जून की तिथि निर्धारित की गई है. वहीं, नतीजों का ऐलान 4 जून को होगा.

चुनाव कराने में सरकार को भारी संख्या में मानव संसाधन को देश के कोने-कोने में लगाना पड़ता है. इसके अलावा वोटिंग मशीन खरीदने, पोलिंग बूथ बनाने, सुरक्षा और मतदाताओं को जागरूक करने में भी खर्च करना पड़ता है. चुनाव कराने का खर्च आमतौर पर सरकार के कन्धों पर होता है. देखा जाए तो देश में पहले चुनाव से लेकर अब तक चुनाव में होने वाले खर्च में काफी इजाफा हुआ है. आइए, यहां जानते हैं देश के पहले चुनाव पर कितना खर्च हुआ था और तब से इस खर्च में कितनी बढ़ोतरी हो गई है…

पहले लोकसभा चुनाव पर कितना हुआ था खर्च
देश में पहला आम चुनाव 1951-52 में हुआ था. तब इस चुनाव में 10.5 करोड़ रुपये का खर्च आया था. 2014 के लोकसभा चुनाव तक यह खर्च बढ़कर 3870.3 करोड़ रुपये तक पहुंच गया. यानी 63 साल में चुनाव पर खर्च 36,857 फीसदी बढ़ गया. वहीं, इस दौरान मतदाताओं की संख्या 17.32 करोड़ से बढ़कर 91.2 करोड़ हो गई. वहीं 2009 से 2014 के बीच चुनाव में खर्च करीब तीन गुना बढ़ गया. साल 2009 के लोकसभा चुनाव में 1114.4 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. चुनाव आयोग के मुताबिक, इस आम चुनाव में 98 करोड़ मतदाता अपने मत का इस्तेमाल करेंगे. बता दें कि 2019 लोकसभा चुनाव कराने में कितना खर्च आया ये चुनाव आयोग ने सार्वजनिक नहीं किया है.

इस चुनाव में कितना खर्च करेगी सरकार
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अंतरिम बजट 2024 में चुनाव खर्च के लिए 2,442.85 करोड़ रुपये का आवंटन किया है. यह आवंटन 2023 में 2,183.78 करोड़ रुपये था. इसमें 1,000 करोड़ रुपये लोकसभा चुनाव में खर्च किए जाएंगे. मतदाता पहचान पत्र के लिए आवंटन को बढ़ाकर 404.81 करोड़ रुपये कर दिया गया है. वहीं, ईवीएम के लिए बजटीय आवंटन 34.84 करोड़ रुपये है. 2023-24 में मतदाता पहचान पत्र के लिए संशोधित बजट 79.66 करोड़ रुपये था.

चुनाव आयोग को इस वित्तीय वर्ष में चुनाव कराने के लिए 321.89 करोड़ रुपये भी दिए गए हैं. इसमें से 306.06 करोड़ रुपये चुनाव कराने में होने वाले खर्च के लिए हैं. सार्वजनिक कार्यों के लिए अलग रखी गई रकम 2.01 करोड़ रुपये है. प्रशासनिक सेवाओं के लिए किया गया आवंटन 13.82 करोड़ रुपये है.

चुनाव में खर्च बढ़ने की क्या है वजह?
लोकसभा चुनाव में खर्च बढ़ने के कई कारण हैं. चुनाव में सीटों की संख्या, पोलिंग बूथ, सुरक्षा की जरूरत, मतदाताओं और उम्मीदवारों की संख्या बढ़ने से खर्च भी बढ़ जाता है. 1951-52 में हुए आम चुनाव में 53 पार्टियों के 1,874 उम्‍मीदवार 401 सीटों से मैदान में उतरे थे. साल 2019 में यह संख्या काफी ज्‍यादा बढ़ गई. पिछले लोकसभा चुनाव में 673 पार्टियों के 8,054 कैंडिडेट 543 सीटों पर उतरे थे, जबकि कुल 10.37 लाख पोलिंग बूथ पर मतदान हुए थे.

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