Vivek’s Story; ‘दोस्तों ने कहा कि डॉक्टर को दिखा लो… किसी अच्छे साइकाइट्रिस्ट को दिखा लो… ठीक हो जाओगे इलाज सही से होगा तो… मैं उन्हें बार- बार कहता था कि मैं क्या हूं ये तो मैं ही बता सकता हूं.. इसमें डॉक्टर क्या करेगा.. जो मेरे अंदर है वह तो मुझे पता है कि मेरे को मन के भीतर क्या पसंद है क्या नहीं.. ये कोई बीमारी तो है नहीं जिसका इलाज करवाऊं…’ 24 साल के विवेक की आवाज में आत्मविश्वास तो है लेकिन अतीत की पीड़ाएं भी हैं. बातें सपनों की हैं, उम्मीद के छौंक से स्वादिष्ट एकदम!
कौन हैं ये विवेक जिनके जानकारों और दोस्तों को उनकी इतनी ‘चिंता’ थी कि वे उनका मनोचिकित्सक के जरिए ‘इलाज’ करवाना चाहते थे… लेकिन खुद विवेक अपना कोई इलाज नहीं करवाना चाहते थे. वह आज भी इस बात पर अडिग हैं और आज तो वह इस कथित रोग के शिकार लोगों का बढ़ चढ़कर सहारा-सपोर्ट बन रहे हैं. विवेक एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी (LGBTQ) से हैं. एलजीबीटीक्यू की फुल फॉर्म है Lesbian, gay, bisexual, transgender and queer. समलैंगिकों और ट्रांसजेंडर (जो अपने जेंडर से इतर खुद को महसूस करते हैं, पहनावा व रहन सहन दूसरे जेंडर का रखना पसंद करते हैं) के लिए इस टर्म का प्रयोग किया जाता है. ऐसे समाज में जहां स्त्री पुरुष रिश्ते को लेकर ही ढरों टैबू हैं, औरत का औरत को चाहना और मर्द का मर्द को प्यार करना… यह तो गले से उतरता ही नहीं है, न संस्कृति के ठेकेदारों को और न ही आसपास के समाज को. विवेक की अनसुनी कहानी आपमें एक अलग ही नजरिया पैदा करेगी.
‘डैड हमेशा कहते थे खुद को हर्ट मत करना, चाहे जो हो’
पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में रहने वाले विवेक का एक छोटा भाई है और मां हैं. ‘डैडी स्वीट शॉप और होटल चलाते थे अब मैं और मम्मी मिलकर यह काम करते थे. चल जाता है खर्चा पानी’… ‘डैड 2022 में छोड़कर चले गए. डैड… बहुत सपोर्टिव थे. हमेशा कहते थे कि जो करना है करो… अब जब वह नहीं रहे तो मैं मिस करता हूं उन्हें… डैड हमेशा कहते थे खुद को हर्ट मत करना, चाहे जो हो. तुम्हारी लाइफ है जैसे जीना है वैसे जियो.’ विवेक का सेक्शुअल ओरिएंटेशन (Sexual Orientation) गे (Gay) है यानी वह मर्द हैं और मर्द के प्रति ही यौनिक इच्छा रखते हैं. साथ ही साथ, वह खुद को एक महिला के तौर पर महसूस करते हैं. चार साल पहले बीबीए ऑनर्स किया हुआ है. प्रफेशनल कत्थक डांसर हैं विवेक. 8 साल हो गए. नाचते हैं तो मन से आत्मा से भी झूमते हैं, जब पांव थिरकते हैं.
‘स्कूल में तो हिजड़ा छक्का होमो…बहुत बुली करते थे’
विवेक का कॉलेज का दौर उतना मुश्किल नहीं रहा जितना स्कूल का. स्कूल की उम्र तो वैसे भी नाजुक होती है. और उस पर हर तरफ से ताने… ऐसी उम्र में जब वह खुद को भी नहीं समझ पा रहे थे तब दुनिया उन्हें न जाने क्या क्या समझाने की कोशिश कर रही थी… ‘क्या लड़की लोग की तरह कान में जूलरी पहनी है.. बहुत बुली करते थे बच्चे, एकदम आइसोलेट कर दिया था मुझे…’ ‘7वीं 8वीं क्लास में अजीब सा फील होने लगा कि मैं दूसरे बॉयज से अलग हूं.. लड़के स्कूल में क्रिकेट फुटबॉल खेलते थे तो मुझे ये सब अच्छा नहीं लगता था टीचर भी कहते थे कि जॉइन करो तो मैं मना कर देता था लेकिन जब कल्चरल प्रोग्राम होता था तो मैं पार्टिसिपिट करना पसंद करता…’ (एक और कहानी हिम्मत की- Human Story: सबसे खतरनाक सड़कों पर ट्रक दौड़ाती यह हिमाचली लड़की कभी नहीं रुकेगी!)
‘लड़कियां तब कहती थीं कि क्यों घूघरू पहन कर डांस करता है तू… लंच टाइम में भी बहुत बुली होती थी मैं समझ नहीं पाता था कि क्यों मुझे ये सब अच्छा लगता था और जब मेंने इस बारे में पढ़ा तो समझ आया कि मैं अलग हूं…
‘और उस दिन पता चला कि मैं गे (Gay) हूं…’
जब चारों तरफ से कथित तौर पर नॉर्मल दिखने का प्रेशर हो तब खुद को समझ पाना और मुश्किल हो रहा था. अपनी पसंद नापसंद पर बहुत डाउट होते मगर विवेक ने खुद को नकारा नहीं. मैंने कहा कि कब पता चला अपनी सेक्शुअल ओरिएंटेशन के बारे में. तो बोले- 10वीं 11वीं कलास की बात है… मेरे एक बहुत क्लोज दोस्त को लेकर स्कूल के बाकी बच्चे छेड़ते थे कि गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड हो क्या.. मैंने भी धीरे धीरे महसूस किया कि मैं पुरुष को पसंद करता हूं.. तब धीरे धीरे पता चलने लगा था कि मैं लड़कियों को नहीं, लड़कों को ही पसंद करता हूं.
शुरू में लगता था मैं ही कुछ गलत कर रहा हूं.. बहुत लोग बोलते भी थे कि एक लड़का दूसरे लड़के के साथ कुछ नहीं कर सकता है… और ये सब नहीं करना चाहिए तुम लोगों को. लेकिन फिर धीरे धीरे मुझे लगा कि प्यार को लेकर जेंडर का क्या है.. गलत है जो लोग सोचते हैं कि ऐसा नहीं हो सकता..
पहला क्वेवर (Queer) फोटोशूट जिसमें लगाया आलता, पहनी चूड़ियां, साड़ी
दसवीं में ही दीदी ने पूछा कि क्या चाहते हो जिन्दगी से.. उन्होंने मुझे एलजीबीटीक्यू के बारे में बताया और बहुत बहुत बहुत हेल्प की. मैंने तब सोचा समझा और फिर धीरे धीरे मुझे समझ आया.. दोस्तों से इस बारे में बात की तो डॉक्टर को दिखाने की सलाहें आईं….. सोशल मीडिया के जरिए मैं ऐसे लोगों को देखता था.. फिर मैंने पहली बार क्वेर (Queer) तरीके से फोटोशूट किया इससे पहले नॉर्मल शूट करता था. मैं था टेंस लेकिन मुझे ये करना था.. परिवार और सब लोग क्या सोचेंगे मैंने कुछ नहीं सोचा… मैंने शेव कटवाए बिना स्त्री रूप का मेकअप किया और साड़ी पहनी.. आलता लगाया और पूरा ट्रेडिशनल लुक में फोटोशूट किया. यह मेरा पहला क्वेर फोटोशूट था…
2018 में कोर्ट ने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया..तब से क्या बदला
‘हां बहुत कुछ बदला है लेकिन अभी भी किसी इवेंट वगैरह में औरतों के मुकाबले आदमी लोग आते जाते देखते हैं थोड़ी अजीब तरीके से देखते हैं.’ सुप्रीम कोर्ट के कहे से जिन्दगियों, समाज और दुनिया में आज भी बहुत कुछ धीरे धीरे ही सही बदलता तो है ही. कहते हैं विवेक- ‘विदेशों में हमें लेकर शिकायतें नहीं हैं लेकिन हमारे देश में अभी भी स्टीरियोटाइप बिहेव करते हैं… हालांकि दिल्ली और मुंबई में थोड़ा बदलाव आया है लेकिन बुली तो होती ही है सोशल मीडिया पर 70 परसेंट लोग बुरा भला कह रहे होते हैं…. गंदे गंदे कमेंट कर रहे होते हैं…
विवेक की उम्र इतनी नहीं है कि वह परिपक्वता के इस मकाम तक बात करे लेकिन जिन्दगी ने जिम्मेदारियां दीं और मन दिया तो कोमल सा.. भावनाएं दीं तो दूसरों से अलग. ऐसे में यह शख्स अलग सोच का तो होना ही था.. कह रहे थे- आदमी लोगों का काम है कहना… चमड़ी का मुंह है वह भी एक दिन बंद हो जाएगा हम किसी की जिन्दगी में दखलअंदाजी नहीं कर रहे… जब मेरे परिवार को दिक्कत नहीं है तो मैं दूसरों की ज्यादा सुनता नहीं हूं…
Human Story LGBTQविवेक घोष
कोई बुरा कहता है तो भी वह शांति से ही बात करता हैं. अच्छा नहीं लग रहा तो मुंह घुमा लो…मैं भी आप पर कमेंट कर सकता हूं.. आपके कपड़ों पर, लेकिन मैं करता नहीं हूं. आप भी मेरे पर मत करो.. कहते हैं कि तुम नॉर्मल नहीं हैं… मैं न मेल हूं न फीमेल हूं. मैं जेंडर फ्री हूं. मैं इंसान हूं.. मेरी बॉडी पुरुष की और मैं औरतों की तरह ड्रेस अप भी करना पसंद करता हूं. यह मेरी आइडेंटिटी है.. विवेक को इससे दिक्कत नहीं लोगों को है.. सर्जरी की सलाह देते हैं.. लेकिन वह करवाएंगे नहीं..
वो सुबह कभी तो आएगी..
विवेक मॉडलिंग लाइफ में आगे बढ़ना चाहते हैं और चाहते हैं कि नॉर्मल लाइफ जी पाएं. साड़ी पहन कर बाहर निकलें तो लोग छेड़ें नहीं… ‘मैं ही नहीं, ये मेरे जैसा कई लोग चाहते हैं कि हम खुल कर जी सकें जो पहनना चाहता हूं, पहन लूं. और कुछ भी छुपाना न पड़े. लोग बुली करना बंद कर दें…. हम जैसे हैं एक्सेप्ट कर लें हमें.. मान लें कि हम भी नॉर्मल हैं.
नॉर्थ बंगाल के सिलीगुड़ी में हम प्राइड वॉक करवा चुके हैं. कई बार होमोसेक्सुल लोगों को, ट्रांसजेंडर युवक युवतियों को घर से निकाल दिया जाता है. कुछ ऐसे मामले सामने आए जब उन्हें पता चला कि मारा पीटा गया… विवेक के साथी सहयोगी वहां पहुंचे और मदद की. खुद भी उठ रहे हैं विवेक और दूसरों को भी संभाल रहे हैं..