रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता राजेन्द्र सिंह ने कहा कि विज्ञान और तकनीक की दिशा प्रकृति के अनुकूल होनी चाहिए। प्रकृति से प्रेम होगा तो ही विज्ञान और तकनीक संवेदनशील होंगी। साइंस में केवल ‘इक्वेशन’ और ‘कैल्कुलेशन’ ना हो, उसमें ‘सैंस’ भी हो। राजेन्द्र सिंह बुधवार को विश्वविद्यालय के फूड टेक्नोलॉजी विभाग, बायो एंड नेनो विभाग, इनवायर्नमैंट साइंस एंड इंजीनियरिंग विभाग तथा जूलोजी विभाग के सौजन्य से ‘सतत विकास के लिए पर्यावरण, खाद्य एवं जैव प्रौद्योगिकी में वैश्विक चुनौतियां (आईसीईएफबी24)’ विषय पर शुरू हुए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन समारोह को बतौर मुख्यातिथि संबोधित कर रहे थे। सम्मेलन की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने की। इस अवसर पर सम्मेलन की समन्वयक प्रो. आशा गुप्ता, सह-समन्वयक प्रो. अनिल कुमार, प्रो. राजेश लोहचब व प्रो. मुनीष गुप्ता मंच पर उपस्थित रहे।
मुख्यातिथि राजेन्द्र सिंह ने गुरु जम्भेश्वर जी महाराज को याद करते हुए अपना संबोधन शुरु किया तथा कहा कि वर्तमान सदी में पर्यावरण संबंधी चुनौतियां गुरु जम्भेश्वर जी महाराज के समय से भी अधिक हैं। भारत की वैदिक संस्कृति प्रकृति अनुकूल तथा विज्ञान आधारित थी। प्रकृति अनुकूल सतत विकास तथा अहिंसावादी थी। उन्होंने कहा कि प्रकृति के समक्ष वैश्विक चुनौतियों का स्थानीय स्तर पर ही समाधान संभव है। हमें केवल शिक्षा की ही नहीं, विद्या की जरूरत है।
राजेन्द्र ने कहा कि इस वक्त दुनिया में 12 युद्ध चल रहे हैं। अधिकतर के पीछे पानी मुख्य कारण है। तीसरा विश्व युद्ध भी पानी के लिए ही होगा। भारत भी प्राकृतिक असंतुलन को खतरनाक रूप से झेल रहा है। भारत का इस समय 72 प्रतिशत क्षेत्र किसी न किसी रूप में पानी की कमी से जूझ रहा है। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों का जितना उपभोग करें, उतना ही उनका संवर्धन भी करें। पानी को संरक्षित कर उसे वापिस धरती को सौंपें। इससे धरती का ताप कम होगा। धरती पर हरियाली होगी। जीवन खुशहाल होगा। उन्होंने कहा कि पानी ही जलवायु है और जलवायु ही पानी है, इसलिए अपनी नदियों को जलवाहिनी बनाएं। उन्होंने अपने अत्यंत प्रभावी संबोधन के दौरान सम्मेलन के प्रतिभागियों से प्रश्न भी किए तथा प्रतिभागियों के प्रश्नों के उत्तर भी दिए। उन्होंने कहा कि प्रकृति संतुलन से ही सतत विकास के लक्ष्य को हासिल करना संभव हो सकता है। राजेन्द्र सिंह ने बुधवार की सुबह गुरु जम्भेश्वर जी महाराज धार्मिक अध्ययन संस्थान में जाकर गुरु जम्भेश्वर जी महाराज को पुष्पार्पित भी किए।
कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने कहा कि 1947 तक विकसित भारत के सपने को पूरा करना है तो खाद्य, पर्यावरण तथा बायो तकनीकी के क्षेत्र में सांझे शोध व अनुसंधान करने होंगे। यह अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन इसी दिशा में विश्वविद्यालय का एक प्रयास है। सम्मेलन के दौरान विश्व स्तर के विषय विशेषज्ञ तथा संस्थाएं आपस में ज्ञान का आदान-प्रदान करेंगी तथा निश्चित रूप से यह सम्मेलन सतत विकास की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा। कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने इस अवसर पर विश्वविद्यालय के बारे में भी विस्तृत जानकारी दी तथा बताया कि यह विश्वविद्यालय शोध, नवाचार व अनुसंधान के क्षेत्र में विश्व स्तर पर तेजी से अपनी पहचान बना रहा है।
कुलसचिव प्रो. विनोद छोकर ने अपने संबोधन में कहा कि विश्व तकनीक के क्षेत्र में बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है। हमें प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान नहीं पहुंचाने वाली तकनीकों को विकसित करना होगा।
प्रो. आशा गुप्ता ने स्वागत संबोधन किया। प्रो. राजेश लोहचब ने बताया कि इस सम्मेलन में 24 तकनीकी सत्र, तीन पोस्टर सत्र होंगे, पांच विदेशी विशेषज्ञों सहित 45 विशेषज्ञ प्रतिभागियों को सम्बोधित करेंगे।
मुनीष गुप्ता ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया। इस अवसर पर सम्मेलन से संबंधित विवरणिका तथा डा. राजेन्द्र सिंह तथा डा. इंदिरा खुराना द्वारा लिखित एक पुस्तक का विमोचन भी किया गया।