महंगाई से तड़प रहा है मुस्लिम देश, सरकार ने लगे पाबंदी

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तुर्की में इस समय महंगाई की बहुत तगड़ी मार है. काफी समय से महंगाई की मार झेल रहे इस मुस्लिम बहुल इस देश के सेंट्रल बैंक ने ऐसा फैसला लिया है कि पूरी दुनिया की नजरें उस पर गढ़ गई हैं. दरअसल, सेंट्रल बैंक ने पॉलिसी रेट (ब्याज दरों) को 50 प्रतिशत कर दिया है. इससे पहले यहां यह दर 45 प्रतिशत थी. बैंक की रेपो रेट ही इतनी हाई हो गई है कि लोन पर पैसा उठाने से पहले कोई भी नागरिक हजार बार सोचेगा. दुनियाभर में हैरत इसलिए है कि पिछले महीने पॉलिसी रेट को स्थिर रखा गया था, और एक्सपर्ट इस बार भी इसके स्थिर रहने की उम्मीद कर रहे थे.

हो सकता है कि आप इस देश में महंगाई का अंदाजा सही से न लगा पा रहे हों. यह भी संभव है कि इस नए 50 प्रतिशत के ब्याज दर को भी सही से समझ न पा रहे हों. मगर आगे जो आंकड़े हम बता रहे हैं, उनके माध्यम से आप समझ जाएंगे कि तुर्की के हालात क्या हैं. एक समय था, जब तुर्की में ब्याज दरें या पॉलिसी रेट 8.5 प्रतिशत थे. मगर अब ये 50% तक पहुंच गए हैं.

भारत में फिलहाल यही रेपो रेट 6.50% है. पिछली बार (8 फरवरी 2024 को) भारतीय रिजर्व बैंक ने इसे स्थिर रखा था. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने पिछली बार 8 फरवरी 2023 को रेपो रेट को 6.25% से बढ़ाकर 6.50% किया था. उसके बाद से यह रेट स्थिर है. मई 2020 में तो भारत में पॉलिसी रेट 4.00% ही था.

कई चीजों को ध्यान में रखकर लिया फैसला
आधिकारिक रूप से खुद को सेक्यूलर कहने वाले तुर्की (Turkey) के सेंट्रल बैंक ने गुरुवार को कहा, “हमने पॉलिसी रेट (अथवा एक सप्ताह के रेपो ऑक्शन रेट) को बढ़ाकर 45 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया है.” आगे कहा, “उपभोग की वस्तुओं और सोने का आयात धीमा हो गया है, और चालू खाते के संतुलन ने सुधार में योगदान दिया है, लेकिन अन्य हालिया संकेतक बताते हैं कि घरेलू मांग लचीली बनी हुई है. सेवाओं की मुद्रास्फीति, मुद्रास्फीति की उम्मीदें, भू-राजनीतिक जोखिम और खाद्य कीमतों में स्थिरता मुद्रास्फीति के दबाव को बनाए रखती हैं.”

क्या 2024 के दूसरे हिस्से में मिलेगी निजात?
बता दें कि तुर्की में महंगाई अभी भी बेलगाम है. फरवरी में मुख्य उपभोक्ता कीमतें (Core Consumer Prices) 2023 के इसी महीने की तुलना में 72.89% की दर से बढ़ीं, जबकि वार्षिक मुद्रास्फीति पिछली बार फरवरी में लगभग 70% दर्ज की गई थी, जो 15 महीनों में सबसे अधिक थी.

 

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