Most Spicy Chilli: इस मिर्च की ये वैरायटी दूर-दूर तक है मशहूर, विदेशों में है भारी डिमांड

Chilli cultivation Kashi Abha lal mircha: तीखा खाने के शौकीनों के लिए मिर्च के बिना जैसे लगता है खाना पूरा ही नहीं हुआ। भारतीय खाने में तो इसकी मौजूदगी तो तय है क्योंकि यह खाने को चटपटा और स्वादिष्ट बना देती है। मिर्च की बढ़ती वैश्विक डिमांड के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के तमाम उत्‍पादों के दुनिया में लोकप्रिय होने से उनका निर्यात तेजी से बढ़ रहा है। इसी लिस्ट में अब काशी की मिर्च का नाम शामिल हो चुका है। वाराणसी में एयर कार्गो टर्मिनल बनने के बाद पूर्वांचल के खेतों में पैदा हुई हरी मिर्च ने खाड़ी देशों के किचन और रेस्टोरेंट में जबरदस्‍त पैठ बनाई है। इसको देखते हुए भारतीय सब्‍जी अनुसंधान संस्‍थान (IIVR) के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राजेश कुमार और उनकी टीम ने मिर्च की कई नई प्रजातियां विकसित की है।

 

Chilli cultivation Kashi Abha lal mircha

 

 

मिर्च नहीं फायर है
भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. राजेश कुमार के द्वारा मिर्च पर कई शोध वर्षों से जारी हैं। उनकी टीम के द्वारा अब तक मिर्च की आधा दर्जन से ज्यादा किस्मों को विकसित किया जा चुका है। इस कड़ी में मिर्च की एक खास किस्म काशी आभा तैयार की गई है। जिसमें तीखापन ज्यादा है। इस मिर्च की खेती करने से किसानों को जमकर मुनाफा हो रहा है।

 

 

काशी आभा (वीआर -339)
इस किस्म के फल छोटे आकार के अत्यधिक तीखे होते हैं। जैविक (एंथ्रेक्नोज, सीएलसीवी, थ्रिप्स और माइट्स) और अजैविक तनाव (कम और उच्च तापमान) के प्रति सहिष्णु होती है। इसमें उत्पादन प्रति हेक्टेयर 15 टन मिलता है। यह किस्म उत्तर प्रदेश में खेती के लिए विकसित की गई है।

 

काशी आभा किस्म की नर्सरी में बुवाई जुलाई से अगस्त महीने में करनी चाहिए और बीज बोने के 30 दिन बाद पौधों की रोपाई करनी चाहिए। पौधों की रोपाई पौधे से पौधे से 45 सेमी और पंक्ति से पंक्ति 60 सेमी की दूरी पर करनी चाहिए। एक हेक्टेयर मिर्च की रोपाई के लिए 450 ग्राम बीज पर्याप्त होते हैं। खेत की तैयारी के दौरान 20-30 टन/हेक्टेयर कम्पोस्ट या गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए।

 

Kashi Abha lal mircha फल छोटे आकार के अत्यधिक तीखे होते हैं

 

कहलाती है बुलेट मिर्च
वैज्ञानिक डॉ. राजेश कुमार बताते हैं कि ‘काशी आभा’ में कैप्‍साइसिन की पर्याप्‍त मात्रा होने से तीखापन ज्‍यादा है। सामान्‍य मिर्च में कैप्‍साइसिन दशमलव 5 से 8 स्‍केल तक होती है जबकि नई प्रजाति में यह 1.06 पाई गई है। जलवायु परिवर्तन यानी कम या ज्‍यादा तापमान में ढलने की भी इसमें क्षमता है। पैदावार भी सामान्‍य से ज्‍यादा प्रति हेक्‍टेयर 150 क्विंटल है। रोपाई के 50 दिनों बाद ही तैयार हो जाने से पहली तोड़ाई की जा सकती है।

 

खाड़ी देशों में भरपूर मांग
खाड़ी देशों में भी इस मिर्च की खूब मांग है। इसी वजह से पूर्वी यूपी यानी पूर्वांचल के किसान काशी आभा की खेती खूब कर रहे हैं। यह किस्म जल्दी तैयार होने वाली है। इसकी अच्छी कीमत मिलने की वजह से इसकी पैदावार करने वाले किसानों की आमदनी और आर्थिक दशा दोनों में सुधार हुआ है। देश एक बड़े हिस्से में मिर्च की खेती जाती है, भारत में न केवल मिर्च की अच्छी खपत होती है, साथ ही दूसरे देशों में मिर्च का निर्यात किया जाता है। भारत में लगभग 7.33 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में मिर्च की खेती होती है। एक सरकारी आंकड़े की बात करें तो भारत ने साल 2019-20 में यूएई, यूके, कतर, ओमान जैसे देशों में 25,976.32 लाख रुपए मूल्य की 44,415.73 मीट्रिक टन मिर्च का निर्यात किया था।

 

anvimultisolutions@gmail.com

Learn More →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

%d bloggers like this: