Kota News: कहा जाता है जीते जी रक्तदान और मरणोपरांत नेत्रदान सच्ची मानव सेवा है. लेकिन जब वक्त आता है तो अधिकतर लोग इस मानव सेवा को भूल जाते हैं. भारत में लगभग प्रतिवर्ष डेढ़ लाख कॉर्निया की आवश्यकता होती है. लेकिन हर साल सिर्फ 50,000 कॉर्निया ही दान होता है. लेकिन राजस्थान के कोटा शहर ने मिसाल कायम की. शाइन इंडिया फाउंडेशन के जागरुकता अभियान की वजह से यहां 4 घंटे में तीन मृतकों के नेत्रदान किए गए.
त्रिवेणी आवास में रहने वाले हरीश पंजवानी के बेटे भावेश (भानू) पंजवानी की नहर में डूबने से मौत हो गयी. दुख की इस घड़ी में भी परिवार ने बेटे के नेत्रदान का संकल्प लिया. उनके इस काम में संस्था के ज्योति-मित्र हरीश दयानी ने मदद की. इसी नेत्रदान के ठीक बाद कैथूनीपोल में रहने वाले सुरेंद्र मोहन मूंदड़ा के आकस्मिक निधन की सूचना संस्था के एक अन्य ज्योति मित्र संजीव कोठारी को मिली. स्व. सुरेन्द्र की पत्नि श्यामा और बेटे चंद्रमोहन सहमत हुए तो स्व सुरेन्द्र का नेत्रदान किया गया.
बेटों ने किए पिता के नेत्रदान
दो लोगों का नेत्रदान हुआ ही था कि उसी दौरान एक और शख्स के निधन की सूचना मिली. सरस्वती कॉलोनी में रहने वाले कन्हैयालाल लुणावत का निधन हो गया था. बेटे राकेश,मनीष और आशीष ने माँ सुशीला से सहमति लेकर पिताजी के नेत्रदान किए.
नेत्रदान के लिए जरूरी है ये काम
मृत्यु के बाद शरीर के अंतिम संस्कार से बेहतर है, किसी दूसरे को नई जिंदगी देना. आंख सहित अन्य अंगों का दानकर दूसरों की मदद की जा सकती है. नेत्रदान के लिए बस कुछ बातों का ध्यान रखना होता है. मृत्यु के बाद व्यक्ति के सिर को दो तकिए के ऊपर रखें, साथ ही आंख के ऊपर गीली रुई या कपड़ा रखते हुए पंखा बंद कर दें. इससे आंखें गीली रहेंगी. इसके साथ ही शहर के आई बैंक से संपर्क कर नेत्रदान की प्रक्रिया पूरी करें.
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