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- यह हेमू विक्रमादित्य की याद में एक स्मारक बनाने का सपना भी था, आखिरी हिंदू राजा जो लड़ाई की रात को हार का सपना देखने के बाद पीछे नहीं हटता था
पानीपत18 घंटे पहले
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- स्मारक बनाने की घोषणा अधूरी, तीन साल में सिर्फ गेट बना
- 5 नवंबर 1556 को सौदापुर के पास राजा हेमचंद्र विक्रमादित्य ने अकबर की सेना को दी थी कड़ी टक्कर
(सुभाष राय) पानीपत की दूसरी लड़ाई के आज 464 साल पूरे हो रहे हैं। 5 नवंबर 1556 को अंतिम हिंदू राजा हेमचंद्र विक्रमादित्य सौदापुर के पास अकबर की सेना से हारे थे। युद्ध की रात (4 नवंबर 1556 की रात) सपने में हार दिखाई देने पर भी हेमू मैदान से पीछे नहीं हटे थे। लेकिन विडंबना है कि वीर हेमू की याद में पानीपत में एक स्मारक बनाने का सपना भी साकार नहीं हो सका है।
सीएम मनोहर लाल ने तीन साल पहले इसकी घोषणा की थी। तत्कालीन डीसी चंद्रशेखर खरे ने 90 लाख रुपए में स्मारक बनाने का प्राेजेक्ट तैयार करवाया था। प्रोजेक्ट के नाम पर सौदापुर में सिर्फ एक गेट ही बना। यह स्थिति निराशाजनक है, क्योंकि 12 साल पहले हिमाचल के तत्कालीन राज्यपाल वीएस कोकजे भी हेमू का समाधि स्थल देखने सौदापुर गए थे। जहां कब्जा कर दरगाह बनाया हुआ है। राज्यपाल ने पुनरुद्धार की बात कही थी।
32 लाख में बनाया गया है यह गेट
मतलौडा के बीडीपीओ अशोक छिक्कारा ने इस बारे में कहा कि 32 लाख रुपए का एस्टीमेट बना था। पैसे भी आ गए। जिससे गेट बना दिया है। करीब 1.5 एकड़ की जमीन है। जिस पर पार्क और स्मारक बनने हैं। बीडीपीओ ने कहा कि जमीन का विवाद भी नहीं सुलझा है, इसलिए पार्क नहीं बन पाया है।
पुणे में रहने वाले कर्नल अजय सिंह ने अपनी किताब “द कस्प ऑफ विक्ट्री’ यानी “विजय के शिखर’ में पानीपत की दूसरी लड़ाई से जुड़े कई अनसुने किस्सों का जिक्र किया है। आइए जानते हैं उन अन सुने किस्सों के बारे में :-
- 4 नवंबर की रात सेना के साथ पानीपत पहुंचे थे हेमू: पंजाब से चलकर अकबर की सेना 2 नवंबर 1556 को ही पानीपत पहुंची। जबकि 2 नवंबर को हेमू दिल्ली से सेना लेकर पानीपत चले और 4 नवंबर की रात पहुंचे।
- 90 किलोमीटर चलकर पहुंची सेना सीधे युद्ध में उतर गई: तीन दिनों में हेमू की सेना दिल्ली से पानीपत का सफर तय कर 4 नवंबर 1556 की रात पहुंची। थकी सेना अगली ही सुबह मोर्चे पर थी।
- 51 तोपों को 2000 योद्धाओं के साथ आगे भेजा, जिसे मुगलों ने लूटा: हेमू ने अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती की। अपने सभी 51 तोपों को 2000 एडवांस सेना के साथ अग्रिम मोर्चे पर भेज दिया। 10 हजार मुगल सेनाओं ने एडवांस सेनाओं को मारकर सभी तोपखाने लूट लिए।
- 300 तीरंदाजों को एक ही टास्क मिला था- हेमू की आंख में तीर मारना है: अकबर के सेनापति बैरम खां ने अपने 300 तीरंदाजों को एक ही टास्क दिया था कि हेमू की आंख को निशाना बनाकर तीर मारने हैं। चूंकि आंख के अलावा सभी अंग ढंके होते थे। इसलिए तीरंदाजों ने 200 से अधिक तीर चलाए। एक तीर निशाने पर लगा और हारा हुआ युद्ध अकबर जीत गया।
- जब सच में हुई अनहोनी: 4 नवंबर की रात हेमू ने सपना देखा कि- तीर की चेन से उसे “हवाई’ हाथी से खींचकर गिरा दिया गया है। हेमू ने अपने पंडित से सपने का जिक्र किया। पंडित ने कहा कि शायद इसका मतलब यही है आप हार जाओगे और पकड़े जाओगे। लेकिन हेमू अगली सुबह युद्ध में उतर गए और हार गए।
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