महात्मा गांधी, जिन्हें हम बापू के नाम से जानते हैं, का जीवन उनके परिवार से गहराई से जुड़ा हुआ था। उनके पिता, करमचंद गांधी, का व्यक्तित्व और उनके जीवन के निर्णय गांधीजी के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। करमचंद गांधी ने अपनी चार शादियां कीं, और इस बारे में कई बातें जानने योग्य हैं। आइए, हम उनके जीवन, उनकी पत्नियों, और महात्मा गांधी के प्रति उनके प्रभाव पर एक नज़र डालते हैं।
करमचंद गांधी का जीवन
करमचंद गांधी का जन्म 1822 में पोरबंदर में हुआ था। वे रियासत के दीवान थे, जिसका मतलब था कि वे शासन में एक महत्वपूर्ण पद पर थे, जो उस समय के लिए सम्मानजनक था। उनका जीवन रौबदार और प्रभावशाली था, लेकिन उन्होंने अपने व्यक्तित्व में संवेदनशीलता भी रखी थी। वे न्याय और सत्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते थे, जो बाद में उनके पुत्र महात्मा गांधी के लिए प्रेरणा का स्रोत बना।
चार शादियों का कारण
करमचंद गांधी ने चार शादियां कीं, और इसके पीछे कई कारण थे। उनकी पहली पत्नी, रलियतबेन, और दूसरी पत्नी, कस्तूरबा, दोनों की जल्दी मृत्यु हो गई। उनकी तीसरी पत्नी, मेहर गांधी, से भी कोई संतान नहीं हुई। इससे निराश होकर करमचंद ने चौथी बार पुतलीबाई से विवाह किया, जो धार्मिक और परिश्रमी थीं। इस शादी से उन्हें चार संतानें मिलीं, जिनमें महात्मा गांधी, लक्ष्मीदास, करसनदास और रलियतबेन शामिल थे।
करमचंद की पत्नियों की भूमिका
करमचंद की पहली पत्नी रलियतबेन की मृत्यु के बाद उन्होंने कस्तूरबा से शादी की, जो भी जल्द ही चल बसीं। इन शादियों से करमचंद की अपेक्षाएं थीं, लेकिन जब संतानें नहीं हुईं, तो उनकी निराशा बढ़ी। तीसरी पत्नी मेहर का भी यही हाल रहा।
अंततः, पुतलीबाई से विवाह के बाद उन्हें संतान प्राप्त हुई। पुतलीबाई अपने पति से 22 साल छोटी थीं और एक धार्मिक महिला थीं। उनके पति के काम और संघर्षों में उन्होंने हमेशा उनका समर्थन किया।
महात्मा गांधी और उनके भाई-बहन
महात्मा गांधी अपने परिवार में सबसे छोटे थे और इसलिए परिवार में उनकी खास पहचान थी। उन्हें प्यार से “मोनिया” कहा जाता था। गांधीजी के दो बड़े भाई लक्ष्मीदास और करसनदास थे, और एक बड़ी बहन रलियतबेन थीं। बड़े भाई लक्ष्मीदास ने गांधीजी को कानूनी अध्ययन के लिए लंदन भेजने में आर्थिक सहायता की, जो उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था।
भाई-बहनों का समर्थन
गांधीजी के भाई-बहन उनके आंदोलनों में प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं थे, लेकिन उनके प्रयासों का समर्थन करते थे। लक्ष्मीदास ने वकील बनने के बाद गांधीजी को प्रेरित किया, जबकि रलियतबेन ने पारिवारिक जिम्मेदारियों को संभाला। करसनदास ने पारंपरिक जीवनशैली का पालन किया, जो उस समय की सामान्य स्थिति थी।
गांधीजी पर पिता का प्रभाव
महात्मा गांधी में जो गुण उनके पिता से आए, उनमें सत्य और न्याय के प्रति दृढ़ता सबसे प्रमुख थी। करमचंद गांधी एक कुशल वक्ता और लेखक थे, और यही गुण महात्मा गांधी में भी विकसित हुए। उनका जन्मदिन भी 2 अक्टूबर को आता है, जो एक सुखद सं Coइब है।
करमचंद गांधी ने न केवल अपने बेटे को जीवन के महत्वपूर्ण पाठ सिखाए, बल्कि उन्होंने समाज में नैतिकता और धार्मिकता के प्रति एक गहरी प्रतिबद्धता भी दिखाई। उनकी सलाह देने की क्षमता ने महात्मा गांधी को संघर्ष और सत्य की राह पर चलने के लिए प्रेरित किया।
महात्मा गांधी के पिता, करमचंद गांधी, का जीवन और उनके निर्णय न केवल उनके परिवार पर, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर भी गहरा प्रभाव डाले। उनके चार विवाहों ने गांधीजी को एक मजबूत पारिवारिक आधार दिया, जिससे उन्होंने सत्य, न्याय, और मानवता के लिए अपने जीवन में संघर्ष किया।
गांधीजी के जीवन में जो आदतें और गुण विकसित हुए, वे उनके पिता की शिक्षा और अनुभवों का परिणाम थे। इस तरह, करमचंद गांधी ने अपने बेटे को केवल एक पिता के रूप में नहीं, बल्कि एक मार्गदर्शक के रूप में भी तैयार किया, जिसने बाद में भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।