धनतेरस पर यमदीप जलाने का महत्व और लाभ: कैसे दूर करें अकाल मृत्यु का भय?

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धनतेरस का पर्व हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया है। यह कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है और इसे दीपावली उत्सव का पहला दिन माना जाता है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य देवी लक्ष्मी, कुबेर देवता और धन्वंतरि भगवान की पूजा करना होता है, जो धन, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि का प्रतीक माने जाते हैं। लेकिन इसके अलावा इस दिन यमराज का भी विशेष पूजा और दीपदान के माध्यम से आह्वान किया जाता है, ताकि परिवार को अकाल मृत्यु और विपदाओं से बचाया जा सके। इसे यमदीपदान कहा जाता है, और इसके पीछे एक गहरी धार्मिक और पौराणिक कथा है, जिसे जानना और समझना आवश्यक है।

धनतेरस पर यमदीप जलाने से क्या फल प्राप्त होते हैं? इस पर्व पर यमराज को दीप दान करने का क्या महत्व है? आइए जानते हैं इस पर्व से जुड़े इन सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को विस्तार से।

धनतेरस पर यमदीप जलाने का महत्व और लाभ: कैसे दूर करें अकाल मृत्यु का भय?
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यमदीप का धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व

धनतेरस पर यमदीप दान का एक विशेष महत्व है। ज्योतिषाचार्य के अनुसार, यमराज मृत्यु के देवता हैं, और धनतेरस के दिन उन्हें दीप जलाकर प्रसन्न किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन यमराज के नाम का दीपक जलाने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है। स्कंद पुराण में भी इसका विशेष उल्लेख मिलता है कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन यमराज को दीप और यज्ञ अर्पित करने से परिवार के सदस्यों पर अकाल मृत्यु का साया नहीं रहता।

इसका धार्मिक महत्व यह भी है कि यमदीप जलाने से हम अपने पूर्वजों का सम्मान करते हैं और अपने परिवार के सदस्यों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं। यह दीप दान एक प्रकार की प्रार्थना होती है कि हमारे घर और परिवार पर यमराज का प्रभाव न पड़े और दीर्घायु की प्राप्ति हो।

पांच दिनों तक यमदीप दान की परंपरा

धनतेरस पर केवल एक दिन ही नहीं, बल्कि लगातार पांच दिनों तक यमदीप जलाने की परंपरा है। इस परंपरा के अनुसार, धनतेरस की रात को दीप जलाने के बाद अगले चार दिनों तक यह दीप जलाया जाता है।

प्रदोषकाल में यह दीपक दक्षिण दिशा में रखा जाता है। दक्षिण दिशा यमराज की दिशा मानी जाती है, इसलिए यह दीपक उन्हें समर्पित होता है। यह विशेष दीपक तिल के तेल में जलाया जाता है और इसे धातु की प्लेट में रखा जाता है, जिसमें चावल के सात दाने रखे जाते हैं। ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि तिल के तेल में दीपक जलाने से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और यमराज को प्रसन्न किया जा सकता है।

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यमराज से जुड़ी पौराणिक कथा

धनतेरस पर यमराज के नाम का दीप जलाने की परंपरा एक पौराणिक कथा से प्रेरित है। स्कंद पुराण में एक कथा का वर्णन है जिसमें यमराज ने अपने दूतों से पूछा कि क्या उन्होंने कभी किसी के प्राण लेते समय दया का अनुभव किया है। दूतों ने बताया कि एक बार एक नवविवाहिता की करुण पुकार ने उनका दिल कांप दिया था।

कहानी के अनुसार, एक हेम नाम के राजा का पुत्र था, जिसे ज्योतिषियों ने चेतावनी दी थी कि विवाह के चार दिनों बाद उसकी मृत्यु हो जाएगी। इस भय से राजा ने उसे एकांत स्थान पर ब्रह्मचारी के रूप में पालन-पोषण किया। लेकिन एक दिन उस राजकुमार ने महाराज हंस की पुत्री से गंधर्व विवाह कर लिया। विवाह के चार दिनों बाद यमदूत उसके प्राण लेने आए। नवविवाहित पत्नी अपने पति की मृत्यु पर जोर-जोर से विलाप करने लगी, और उसकी पुकार सुनकर यमदूत भी भावुक हो गए।

तब यमदूतों ने यमराज से पूछा कि क्या अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय है। इस पर यमराज ने यमदीपदान का महत्व समझाया। उन्होंने कहा कि धनतेरस के दिन यमराज के नाम का दीप जलाने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है। तब से इस दिन को यमदीप जलाने की परंपरा का प्रचलन शुरू हुआ।

यमदीप जलाने की विधि

धनतेरस पर यमदीप जलाने के लिए विशेष विधि का पालन करना आवश्यक है। यह दीपदान एक विशेष पूजा का हिस्सा होता है, और इसे विधि-विधान से करना चाहिए।

  1. दीपक की तैयारी: एक बड़े मिट्टी के दीपक को साफ पानी से धोकर तैयार करें। फिर इसमें तिल का तेल डालें और चार मुख वाला दीपक बनाएं।
  2. चावल का प्रयोग: चावल के सात दाने लेकर उन्हें धातु की प्लेट में रखें और दीपक को इस पर स्थापित करें।
  3. दक्षिण दिशा की ओर दीपक जलाएं: प्रदोष काल के समय दीपक को जलाकर दक्षिण दिशा में रखें। यह दिशा यमराज की मानी जाती है, और इस दिशा में दीप जलाने से यमराज प्रसन्न होते हैं।
  4. प्रार्थना: दीप जलाने के बाद यमराज से परिवार की रक्षा की प्रार्थना करें और अकाल मृत्यु का भय दूर करने की प्रार्थना करें।

यमदीप का सामाजिक और मानसिक प्रभाव

यमदीप दान का केवल धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व ही नहीं, बल्कि इसका एक सामाजिक और मानसिक प्रभाव भी है। जब व्यक्ति धनतेरस के दिन यमराज के नाम का दीप जलाता है, तो वह अकाल मृत्यु के भय से मुक्त होता है। इसके अलावा, यह पूजा परिवार के सदस्यों में सकारात्मकता और सामंजस्य को बढ़ावा देती है।

धनतेरस का पर्व हमें यह सिखाता है कि परिवार के सदस्यों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए हमें प्रकृति के नियमों और परंपराओं का पालन करना चाहिए। यह दीपदान एक तरह का संकल्प है कि हम अपने परिवार की सुरक्षा के लिए यमराज का आह्वान कर रहे हैं।

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धनतेरस पर यमदीप जलाना एक महत्वपूर्ण धार्मिक परंपरा है जो परिवार की रक्षा और समृद्धि के लिए की जाती है। यमराज को दीप दान करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है, और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

यह त्योहार हमें यह भी याद दिलाता है कि धर्म और आस्था के माध्यम से हम अपने जीवन को सुरक्षित और सकारात्मक बना सकते हैं। यमदीप जलाने की परंपरा का पालन करके हम अपने परिवार के लिए दीर्घायु और समृद्धि की कामना कर सकते हैं।

इस प्रकार, इस धनतेरस पर यमदीप जलाकर यमराज को प्रसन्न करें और अपने परिवार को नकारात्मक शक्तियों से मुक्त रखें।

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