सौ : हिंदू धर्म में इंसान के जन्म से लेकर मृत्यु तक कुल 16 संस्कार होते हैं. इसमें सबसे अहम संस्कार होता है विवाह, जो इस बंधन में बंधने वाले लड़के और लड़की दोनों की जिंदगी को पूरी तरह बदल देता है. एक नए व्यक्ति के जीवन में आने से बहुत सारे बदलाव इन दोनों को ही देखने होते हैं विवाह की लगभग हर रस्म में भगवान को, पूर्वजों को साक्षी मानकर उनका आर्शीवाद लेने की कोशिश की जाती है. ऐसे ही कार्ड में ‘चिं’ और ‘सौ. का’ लिखने का भी गहरा अर्थ है.

शादी के कार्ड पर क्यों लिखा होता है ‘चिं’ और ‘सौ. का’: आजकल भले ही लोग अंग्रेजी में छपने वाले शादी के कार्ड्स में इन शब्दों को हटा देते हैं या भूल चुके हैं, लेकिन रीति-रिवाज से होने वाली हर शादी में लड़के के नाम के आगे ‘चिं’ और लड़की के नाम के आगे ‘सौ. का’ लिखा होता है. लड़के के नाम के आगे लिखे ‘चिं.’ का अर्थ होता है ‘चिरंजीवी’. यानी चिर काल तक जीवित रहने वाला, जिसकी मृत्यु कभी न हो..’ दरअसल ये शब्द एक तरह से लड़के लिए आर्शीवाद और कामना के तौर पर सालों से लिखा जाता है.

वहीं लड़के की नाम के आगे लिखे ‘सौ. का’ का अर्थ होता है ‘सौभाग्यकांक्षिणी’ यानी सौभाग्य प्राप्ति की आकांक्षा में जो स्त्री है वह. अक्सर लोग शादी के कार्ड में ‘सौ. का’ अर्थ ‘सौभाग्यवति’ से लगाते हैं. लेकिन सौभाग्यकांक्षिणी और सौभाग्यवति शब्दों में बड़ा अंतर होता है.

सनातन धर्म में ‘सौभाग्यवति’ शब्द का इस्तेमाल वैवाहिक स्त्री से लगाया जाता है. ऐसे में जब शादी का कार्ड छपता है तब लड़की की शादी नहीं हुई होती है. यानी वह सौभाग्यवति नहीं बल्कि सौभाग्यकांक्षिणी है, यानी सौभाग्यवति बनने की आकांक्षा रखने वाली कन्या. यही वजह है कि शादी के कार्ड पर हमेशा दुल्हन के नाम के आगे ‘सौ. का’ लिखा जाता है, जिसका अर्थ होता है ‘सौभाग्यकांक्षिणी’.

चिरंजीवी व सौभाग्यकांक्षिणी लिखने के पीछे की कथा: इसके पीछे एक प्राचीन कथा है. एक समय में एक ब्राह्मण निसंतान था और उसने संतान प्राप्ति के लिए महामाया की आराधना की. देवी प्रसन्न हुईं और उसे संतान प्राप्ति का वरदान देने से पहले 2 विकल्प दिए. एक पुत्र होगा जो महामूर्ख होगा पर दीर्घायू होगा. एक पुत्र होगा जो महज 15 साल जीवित रहेगा पर विद्वान होगा. उसे एक को चुनना था तो ब्राह्मण ने विद्वान पुत्र चुना.

ब्राह्मण के घर पुत्र हुआ लेकिन माता-पिता दोनों ही पुत्र की अल्पायु के लिए चिंतित रहते थे. पिता ने पुत्र को पढ़ाई के लिए काशी भेजा. यहां एक सेठ की लड़की से इस लड़के का विवाह हो गया. जिस लड़की से विवाह हुआ वह भी महामाया की भक्त थी. विवाह के दिन ही इस लड़के का अंतिम दिन था और यमराज एक नाग के भेष में उसका जीवन हरने आए. सांप ने लड़के को डस लिया लेकिन उसकी पत्नी ने तुरंत उस नाग को एक टोकरी में बंद कर दिया. ये नाग स्वयं यमराज थे तो यमलोक का सारा काम ठप हो गया.

अपने पति को जीवित करने के लिए ये लड़की महामाया की उपासना करने बैठ गई. उसकी घोर उपासना देख देवी प्रकट हुईं और उन्होंने इस लड़की से यमराज को मुक्त करने को कहा. इस महिला ने यमराज को मुक्त किया. यमराज ने देवी की आज्ञा से उस लड़के को पुन: जीवित कर दिया और चिरंजीवी होने का वरदान दिया. यमराज ने ही इस महिला को ‘सौभाग्यवति’ कहा. तभी से विवाह के समय दूल्हे के ‘चिरंजीवी’ होने का और दुल्हन के ‘सौभाग्यकांक्षिणी’ (यानी सौभाग्यवति होने की कामना रखने वाली कन्या) होने के आर्शीवाद के रूप में ये दोनों शब्द दूल्हा और दुल्हन के नाम के आगे लिखे जाते हैं.