There is no accountability on how many people fill their stomachs as they are trying to make official private and government rations the main issue. | अधिकारी प्राइवेट और सरकारी राशन को मुख्य मुद्दा बनाने में जुटे इससे कितने लोगों का पेट भरता, इस पर कोई जवाबदेही नहीं

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  • कितने लोग अपनी पेटियाँ भरते हैं, इस बारे में कोई जवाबदेही नहीं है क्योंकि वे मुख्य निजी और सरकारी राशन को मुख्य मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

बठिंडा5 घंटे पहले

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  • विपक्षी दलों का हल्लाबोल कांग्रेस मामले पर चुप
  • लॉकडाउन के दौरान पहले भी राशन वितरण को लेकर कांग्रेसी नेताओं की भूमिका पर उठ चुके हैं सवाल, अब राशन बर्बादी पर आप व शिरोमणि अकाली दल फिर हुए हावी

बठिंडा के जॉगर पार्क में आटा दबाने के मामले में आम आदमी पार्टी व शिरोमणि अकाली दल द्वारा नगर निगम अधिकारियों की वर्किंग पर सवाल उठाने के बाद जहां अभी तक सत्ताधारी दल ने चुप्पी साधी हुई है, वहीं शहर में बहस में अन्न की बर्बादी को महत्व दिए जाने या चिंता जताने की बजाए बहस इस मुद्दे पर हो रही है कि आटा प्राइवेट था या सरकारी।

लॉकडाउन के दौरान नगर निगम पर भोजन वितरण के सिस्टम को व्यवस्थित करने की बड़ी जिम्मेदारी थी जिसमें निगम ने लॉकडाउन में 14 लाख से अधिक बैग भोजन वितरण करवाने का दावा किया है, लेकिन जिस तरह से बहुत बड़ी मात्रा में अन्न को बर्बाद कर जानवरों के लायक भी नहीं संभाला गया, उससे सिस्टम विपक्षी दलों के निशान पर है जबकि आम जनता दान से हुए खिलवाड़ से व्यथित है। आम आदमी पार्टी के नेताओं के अनुसार जॉगर पार्क में सरकारी आटा दबाया गया, वहीं शिअद हलका इंचार्ज सरूप सिंगला द्वारा बंद पड़े सरकारी मेयर आवास में भारी मात्रा में खराब अनाज व बदबू होने के आराेप लगा बैगों के ढेर के वीडियो रिलीज किए गए। आप के सीनियर नेता नील गर्ग व अमृत लाल अग्रवाल ने कहा कि जब एक बार अनाज सरकार की कस्टडी में आ गया तो वह प्राइवेट नहीं रह गया तथा इस मामले में अन्न बर्बाद करने की जिम्मेदारी तय होना जरूरी है।

अन्न खराब होने के सवालों पर जनता मांग रही जवाब
नगर निगम बठिंडा की सरकारी प्रापर्टी जॉगर पार्क में सोमवार रात को निगम के एक जूनियर इंचार्ज अधिकारी द्वारा आटे के बारिश के बाद सीलन आदि से खराब होने के चलते मिट्‌टी में दबाने की सोशल मीडिया पर कही गई बात को एक बारगी सही भी मान लें तो सवाल यह उठता है कि अगर उनकी कस्टडी में इतना अधिक अनाज था तो इसका वितरण लटकाया क्यों गया जबकि सारा शहर चक्कियां बंद होने से आटे को लेकर त्राहि-त्राहि कर रहा था तथा आटे की सही संभाल क्यों नहीं की गई ताकि यह खराब नहीं होता।

दूसरा जब यह खराब होना शुरू हुआ तो इसे सीनियर अधिकारियों के ध्यान में क्यों नहीं लाया गया। वहीं ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं की गई ताकि मिट्‌टी में दबाने की बजाए गोशालाओं में भूखे पशुओं को इसे खिला दिया जाता। निगम कमिश्नर बिक्रमजीत सिंह शेरगिल के अनुसार इस स्टॉक की कोई जानकारी नहीं थी, से पुन: यह सवाल यह उठता है कि आटा दबाने तक की बात से सीनियर अधिकारी को अनभिज्ञ क्यों रखा गया।

जांच रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई होगी
मैने दो अधिकारियों की जांच के लिए ड्यूटी लगाई है, वह सोमवार या मंगलवार तक अपनी रिपोर्ट सौंप देंगे। मुझे मिली जानकारी के अनुसार यह सरकारी आटा नहीं था, लेकिन जांच रिपोर्ट के आधार पर ही अगली कार्रवाई होगी। बी. श्रीनिवासन, डीसी, बठिंडा

क्या सरकारी कस्टडी व मेयर हाउस में रखा अनाज प्राइवेट है?
अब यक्ष प्रश्न यह उठता है कि निगम अधिकारियों द्वारा बार-बार यह कहा जा ना कि यह अनाज सरकारी नहीं, निगम के लोगों व स्टाफ आदि ने इकट्ठा किया गया था, तथा वह सरकार की जगह पर पड़ा था तो उसकी कोई सरकारी एंट्री भी जरूर होनी चाहिए। आप नेता नील गर्ग व अमृत लाल अग्रवाल ने कहा कि आटा प्राइवेट था, यकीन करने योग्य नहीं है।

दूसरा आटा गिराने को बैग फाड़ने की क्या जरूरत थी तथा वह बैग कहां गए, जिसका जवाब लोग पूछ रहे हैं। बठिंडा में एनजीओ ने दिन रात काम कर रोजाना हजारों लोगों को कच्चा अनाज व पका हुआ भोजन दिया, लेकिन खराब नहीं होने दिया। अनाज अब बठिंडा नहीं, पंजाब का मुद्दा है। दूसरा सरकार को फंड या अनाज देने पर वह सरकार की कस्टडी में जाकर प्राइवेट नहीं रह जाता, क्योंकि सरकारी अनाज भी सरकार लोगों के टैक्स के पैसे से खरीदती है। यह अनाज की बर्बादी है जिसकी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए।

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