दुनियाभर में The Teacher I Never Mate ने मचाई धूम, इस तरह करें डाउनलोड

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The Teacher I Never Mate : दुनिया में ऐसे बहुत से कई सारे लेखक हैं, जिन्होंने बहुत कम उम्र में लेखन में अपना एक अलग ही मुकाम हासिल किया है. जी हाँ, आज हम एक ऐसे ही लेखक की बात करने जा रहे है, उनका नाम है ईशान शर्मा.

इशान की उम्र मात्र 16 वर्ष है. उन्होंने अपने लेखन के जरिए दुनिया का दिल जीत लिया. अपनी पहली किताब ‘द टीचर आई नेवर मेट’ लिखी है, यह पाठक का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है.

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इस पुस्तक के बाहरी से लेकर किताब के अंदर तक की कहानी काफी खूबसूरत और प्रेरणात्मक है. आजकल के बच्चे जिस उम्र में फोन से बाहर की दुनिया देखने को इच्छुक नहीं है उस बिच ईशान जैसे बच्चे दुनिया के लिए प्रेरणा है.

ईशान को देश के 11वें राष्ट्रपति का व्यक्तित्व इतना ज्यादा प्रभावित कर रहा था, कि वे उन पर किताब लिख रहे थे. सोलह की उम्र में एक बच्चे का किताब लिख देना काबिल-ए-तारीफ है.

डॉ. कलाम की कहानी को दिया अलग रूप

दरअसल, ईशान ने डॉ कलाम की पूरी कहानी को जिस तरह प्रदर्षित किया है वो सच में काबिल ए तारीफ है. वे कहते है की, “यह जून 2011 का धूप वाला एक दिन था, जिसने मेरा जीवन बदल दिया. मैं आईआईटी कानपुर में एक छात्र के रूप में नहीं बल्कि परिसर के एक निवासी के रूप में रहता था. उस दिन एक वीवीआईपी मूवमेंट हुआ. मैं महज़ 11 साल का था इसलिए इस बात से बिल्कुल अनजान था कि वहां क्या हो रहा है. मैंने देखा सड़क पर ढेर सारी लाल-नीली बत्ति की गाड़ियां गुज़र रही हैं और बहुत सारे लोग खड़े होकर हाथ हिला रहे थे. वह पहली बार था जब मैं अपने शिक्षक से मिला, जिन्होंने मुझे सिखाया कि इस दुनिया में कैसे रहना है. राष्ट्रवाद का वास्तविक अर्थ क्या है? और वह शिक्षक कोई और नहीं बल्कि डॉ. कलाम थे.”

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The Teacher I Never Mate : Eshan Sharma

‘सीखना रचनात्मकता देता है, रचनात्मकता विचार देती है, विचार ज्ञान प्रदान करता है और ज्ञान ही मनुष्य को महान बनाता है…’ युवा शक्ति पर ज़ोर देने वाले डॉ. कलाम के इस संदेश को ईशान शर्मा ने अपने भीतर बेहद गहराई से आत्मसात किया हुआ है. ईशान कहते हैं, “2012 में जब मैं कानपुर में रहता था, तब डॉ. कलाम वहां आईआईटी कानपुर के गोल्डन जुबली सेलिब्रेशन में चीफ गेस्ट के तौर पर आए हुए थे. जिस वक्त मुझे उनसे मिलना था उस वक्त मैं खाने-पीने में व्यस्त था और उनके इतने करीब होने के बावजूद उनसे नहीं मिल सका, लेकिन फिर भी मैं उनसे इतना अधिक प्रभावित हुआ, कि उन पर किताब लिखने से खुद को रोक नहीं पाया.”

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