[ad_1]
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विशेष आमंत्रण पर नेपाल के पीएम शेर बहादुर देउबा इस समय भारत यात्रा पर हैं। वह इससे पहले भी तीन बार यह पद संभाल चुके हैं, लेकिन इस बार विशेष हालात में भारत आए हैं। भारत-नेपाल रिश्तों में विभिन्न कारणों से पिछले कुछ समय से काफी खटास आ गई थी। उम्मीद की जा रही है कि देउबा की यह भारत यात्रा दोनों देशों के बीच पैदा हुई गलतफहमियों को दूर करने में मददगार होगी। इन्हीं मसलों पर रमेश ठाकुर ने शेर बहादुर देउबा से लंबी बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश:
आपकी भारत यात्रा विशेष परिस्थितियों में हो रही है। दोनों देशों के रिश्तों में दूरी आ गई है। अपनी इस यात्रा को आप किस रूप में देखते हैं?
नेपाल के संबंध भारत से हमेशा अच्छे रहे हैं। पूरी दुनिया जानती है कि भारत नेपाल का सबसे भरोसेमंद पड़ोसी देश है। दोनों मुल्कों ने अपनी सदियों की दोस्ती को परवान चढ़ाने का अब नए सिरे से संकल्प लिया है। भारत की मौजूदा सरकार नेपाल का ख्याल ठीक उसी तरह से रख रही है, जैसे अपने देश के किसी हिस्से का। मैं अपनी भारत यात्रा को बेहद सकारात्मक रूप से देख रहा हूं। मेरे इस दौरे के बाद ही वर्षों से लंबित पड़ी पनबिजली एवं कनेक्टिविटी परियोजनाओं के क्रियान्वयन के क्षेत्र में निर्णय लिया गया। इसके अलावा और भी कई महत्वपूर्ण योजनाओं पर दोनों देशों की सहमति बनी है। ये समझौते खासे अहम हैं।
यहां आप कई लोगों से मिले। बातचीत के मुख्य विषय क्या रहे?
पिछले माह विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का नेपाल जाना हुआ था तो उन्होंने भारत आने का आमंत्रण दिया था। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेरे पीएम बनने के बाद फोन पर बधाई दी और भारत आने को कहा। यहां आने पर सरकार के कई मंत्रियों के साथ द्विपक्षीय तथा क्षेत्रीय मुद्दों पर विस्तृत चर्चाएं हुईं। जिन मुद्दों पर चर्चा हुई उनका सकारात्मक असर जल्द ही देखने को मिलेगा। भारत से हमारा लगाव एक अलग ही अहसास दिलाता है। लगता ही नहीं कि हम दूसरे देश में हैं। प्रधानमंत्री के रूप में मैं पहली बार यहां आया हूं। लेकिन इससे पहले मेरा हमेशा यहां आना होता रहा है। भारत के कई नेताओं से मेरे संबंध दोस्त व भाई जैसे हैं। चीन को लेकर हमारे प्रति कुछ नकारात्मक सोच पैदा हो रही थी जिसे लेकर मैंने नरेंद्र मोदी के सामने कई चीजें साफ की हैं। मैंने उनको बताया है कि नेपाल में नए संविधान के गठन के बाद आपसी संबंधों को मधुर करने के लिए हमारी चीन के साथ बैठकें जरूर हुई हैं, पर इसका मतलब यह नहीं निकालना चाहिए कि हम भारत के खिलाफ हैं। कुछ जरूरी वस्तुओं के संबंध में आयात-निर्यात को लेकर बातचीत हुई है और अब भी हो रही है, लेकिन इसके गलत मायने न निकाले जाएं। परस्पर विश्वास और भरोसा हर रिश्ते का सबसे बड़ा आधार होता है।
डोकलाम विवाद पर आपका क्या रुख है? नेपाल इस पूरे विवाद में कहां खड़ा है?
चीन के साथ डोकलाम सीमा विवाद पर हमारा सहयोग भारत के प्रति है और आगे भी रहेगा। हम भारत का समर्थन करते हैं। दरअसल दो देशों में गलतफहमी इस दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य से उत्पन्न होती है कि अक्सर हम बिना वस्तुस्थिति को जाने किसी दुष्प्रचार पर भरोसा कर लेते हैं। जो कुछ कहा-सुना जा रहा है उसकी सचाई का पता लगाने की कोशिश नहीं करते। कई मीडिया रिपोर्टों में कहा जाता है कि नेपाल में चीन भारत विरोधी गतिविधियां कर रहा है। लेकिन हम जोर देकर एक बात कहते हैं कि नेपाल कभी भी अपनी धरती पर भारत-विरोधी गतिविधियों को नहीं पनपने देगा। समझ में नहीं आता इस तरह की अफवाहें कहां से और कौन फैला रहा है। इस मुद्दे पर मेरे से कई सवाल किए गए हैं। देखिए, हमारा मुख्य जोर भारत-नेपाल संबंधों को अधिक मजबूत बनाने और द्विपक्षीय सहयोग के अनेक मुद्दों पर है। नेपाल अब पहले जैसा नहीं है। नए नेपाल का युग आ चुका है। वह विकास के पथ पर अपनी रफ्तार बढ़ाने का इच्छुक है। यही आज हमारी प्राथमिकता है। भारत के साथ मिलकर हम नदियों के जल प्रबंधन और पनबिजली परियोजनाओं पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं। इसके अलावा नेपाल के तराई के इलाके तथा उत्तर प्रदेश एवं बिहार में बाढ़ की स्थिति से निपटने में सहयोग बढ़ाने के बारे में हमने भारत सरकार से बातचीत की। चीन के साथ वर्तमान डोकलाम सीमा विवाद तथा उससे जुड़े द्विपक्षीय पहलुओं पर भी हमारी पूरी कैबिनेट ने बात की।
मधेशियों के सवाल पर और ऐसे कुछ अन्य मसलों पर भारत-नेपाल में कुछ समय से जो गतिरोध पैदा हुआ है वह कैसे खत्म होगा?
सांस्कृतिक और व्यापारिक लिहाज से भारत और नेपाल एक दूसरे के पूरक रहे हैं। दोनों देशों के बीच संबंध सालों से मधुर रहे हैं। हालांकि बीते कुछ समय से देश में नए संविधान को लेकर आंतरिक गतिरोध की स्थिति पैदा हुई है, पर इसको लेकर उच्चस्तरीय बैठकों का दौर चल रहा है। आने वाले दिनों में उसे भी सुलझा लिया जाएगा। नेपाल कभी नहीं चाहेगा कि भारत से उसके रिश्ते खराब हों। गतिरोध को खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है। मधेशी आंदोलन का भारत ने समर्थन किया। तब भी हमने कोई विरोध नहीं किया। मधेशी अब भी कुछ सवालों पर अड़ियल रुख अख्यितार किए हुए हैं। वे अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं और उन्हें हिंदुस्तान का खुला सहयोग मिल रहा है। उम्मीद है कि जल्द ही मधेशी आंदोलन के निपटारे के लिए सार्थक हल निकाला जाएगा। सरकार मधेशियों से बात करने को तैयार है।
।
[ad_2]
Source link