News : बाल फिल्मकारः अमोल गुप्ते – film maker amol gupte

0

[ad_1]

यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि अमोल गुप्ते इस समय हिंदी ही नहीं, समस्त भारतीय भाषाओं में बन रहे ‘बाल सिनेमा’ के सिरमौर हैं। देखिए कि उन्होंने अब तक जितनी भी फिल्में बनाई हैं, सबकी सब बच्चों को समर्पित हैं। ‘तारे जमीन पर’, ‘स्टैनली का डिब्बा’ और ‘हवा हवाई’ जैसी एक के बाद एक बाल फिल्में देने के बाद अब वे ‘स्निफ’ लेकर आ रहे हैं। ‘स्निफ’ आठ साल के एक बच्चे सनी (खुशमीत गिल) को केंद्र में रखकर बनाई गई एक ऐसी फिल्म है, जिसमें ऐक्शन और एडवेंचर दोनों हैं। इस फिल्म के जरिए अमोल गुप्ते ‘सुपर हीरो’ फिल्म की परिभाषा ही बदल देना चाहते हैं। गांधी, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, फुले, आंबेडकर आदि को रियल सुपर हीरो माननेवाले अमोल की यह फिल्म एक बच्चे की सूंघने की चमत्कारिक शक्ति की कहानी है। दिलचस्प बात यह है कि अपनी इस शक्ति का उपयोग जब वह ‘खतरे सूंघने’ में करता है, तो कितने ही जनों को कितनी ही आफतों से बचा ले जाता है। गौर करने की बात यह भी है कि ‘स्निफ’ किसी कार्टून, फेयरी टेल अथवा गेम से प्रेरित नहीं है, बल्कि ओरिजनल कहानी पर बनी एक ओरिजनल फिल्म है!

अमोल गुप्ते एक मल्टी टेलेंटेड व्यक्तित्व हैं। वे जितने अच्छे लेखक और निर्देशक हैं, उतने ही अच्छे अभिनेता भी। अब तक उन्होंने ‘होली’, ‘मिर्च मसाला’, ‘जो जीता वही सिकंदर’, ‘कमीने’, ‘फंस गए रे ओबामा’, ‘स्टैनली का डिब्बा’, ‘भेजा फ्राई 2’ और ‘सिंघम रिटर्न्स’ जैसी फिल्मों में अभिनय किया है। ‘स्निफ’ के एक अहम दृश्य में भी वे दिखाई देंगे। और तो और इस फिल्म में उन्होंने एक दिलचस्प गाना भी गाया है ‘नाक…’। अब तक बॉलिवुड में नाक पर आधारित ऐसे कम ही गाने बने होंगे। असल में अमोल की अपनी हर फिल्म में यही कोशिश होती है कि मनोरंजन के साथ वे संदेश भी दे सकें। सिर्फ सीख भर देने के लिए वे कोई फिल्म नहीं बनाते हैं।

अमोल बच्चों के प्रति इतने संवेदनशील हैं कि सिर्फ स्कूल की छुट्टियों में ही अपनी फिल्म की शूटिंग करते हैं। उन्होंने कभी भी बच्चों से शिफ्ट में काम नहीं करवाया है। यहां तक कि वे अपनी फिल्मों में काम करनेवाले किसी भी बच्चे का ऑडिशन नहीं लेते हैं। उनकी शत-प्रतिशत कोशिश होती है कि शूटिंग के दौरान बच्चों को किसी भी तरह के तनाव का सामना न करना पड़े। यही वजह है कि उनकी फिल्में हंसी-खेल में बन जाती हैं। कलाकारों को लगता ही नहीं कि वे किसी फिल्म में काम कर रहे हैं। दरअसल अमोल उन टीवी धारावाहिकों और रिएलिटी शोज के खिलाफ हैं, जिनमें बच्चों को ‘मिसयूज’ किया जाता है। उनका कहना है कि ज्यादातर धारावाहिकों में बच्चों से बड़ों की तरह ही काम लिया जाता है। इतना ही नहीं, उनका काफी भावनात्मक शोषण भी होता है। अमोल ने मांग की है कि जल्द ही एक ऐसा सख्त कानून बनना चाहिए, जिसमें बाल अधिकारों की रक्षा हो। बच्चों के संदर्भ में बने अब तक के कानूनों को वे अपर्याप्त मानते हैं और इसमें आमूल-चूल बदलाव चाहते हैं।
-निर्मला पांडेय



[ad_2]

Source link

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here