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6 दिन पहले
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- एक चोर ने संत से कहा कि मुझे उपदेश दीजिए, लेकिन मैं चोरी करना नहीं छोड़ सकता, क्योंकि यही मेरा काम है
अच्छे आचरण से यानी अच्छी बातों को जीवन में अपनाने से बुरी आदतों से बचा जा सकता है। इस संबंध में एक लोक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार पुराने समय में एक संत गांव के बाहर छोटी सी कुटिया में रहते थे। संत बहुत विद्वान थे। गांव के लोग उनके पास अपनी समस्याएं लेकर जाते और संत उन्हें समस्याओं का निराकरण बता देते थे।
गांव में एक चोर भी था। जब उसे संत के बारे में पता चला तो वह भी संत से मिलने पहुंचा। चोर ने संत को अपनी सच्चाई बताई और कहा कि कृपया मुझे कोई उपदेश दीजिए, लेकिन चोरी छोड़ने के लिए मत बोलना, क्योंकि मैं चोरी करना नहीं छोड़ सकता, यही मेरा काम है।
संत ने चोर से कहा कि ठीक है। तुम मेरी एक बात ध्यान हमेशा रखना सभी महिलाओं को अपनी माता और बहन समझना। कभी भी किसी महिला का अनादर मत करना और कोई भी ऐसा काम मत करना, जिससे किसी महिला को दुख हो। चोर ने ये बात मान ली और इसे जीवन में उतारने का संकल्प ले लिया।
जहां ये गांव था, उस राज्य के राजा-रानी के यहां कोई संतान नहीं थी। इस वजह से राजा अपनी रानी से गुस्सा था और रानी के रहने के लिए अलग महल में व्यवस्था करवा दी थी।
एक रात वही चोर रानी के महल में चोरी करने पहुंच गया। जब वह कीमती चीजें उठा रहा था, तब रानी ने उसे देख लिया। महल के चौकीदारों ने किसी को महल में घुसते हुए देख लिया था और उन्होंने राजा को ये खबर दे दी। राजा तुरंत ही महल में छिपकर बैठ गए और उस व्यक्ति पर नजर रखने लगे।
रानी ने चोर से कहा कि तू यहां कैसे आया है? चोर ने जवाब दिया कि मैं घोड़े से आया हूं। रानी ने कहा कि मैं तेरे घोड़े को सोने-चांदी से लदवा दूंगी। बस मेरी एक इच्छा पूरी कर दे। चोर को अपने गुरु की बात याद थी कि महिलाओं का हमेशा सम्मान करना है।
चोर रानी की बात सुनकर वह भागा नहीं, उसने कहा कि आप तो मेरी मां समान हैं। मुझे पुत्र समझकर अपनी इच्छा बताएं, मैं चोर हूं, लेकिन मेरे बस में होगा तो मैं आपकी इच्छा जरूर पूरी करूंगा।
राजा ये सब बातें ध्यान से सुन रहा था। चोर की ये अच्छी बातें सुनकर राजा बहुत खुश हुआ। उसने चोर को दरबार में बुलवाया और कहा कि मैं तुझसे बहुत प्रसन्न हूं, तू मांग ले जो चाहता है। चोर ने कहा कि राजन् आप महारानी को आपके साथ ही महल में रखें। उन्हें दुख न दें। राजा ने चोर की बात मान ली।
महारानी से राजा ने अपने किए की क्षमा मांगी। रानी से राजा से कहा कि हम इस चोर को ही अपना पुत्र बना लेते हैं। राजा भी चोर के अच्छे आचरण के खुश थे। वे भी ये बात मान गए और चोर को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। इसके बाद चोर का जीवन ही बदल गया, उसने चोरी करना छोड़ दिया।
प्रसंग की सीख
इस छोटे से प्रसंग की सीख यह है कि अच्छे आचरण से ही बुरी आदतों से बचा जा सकता है। अगर हमारे आचरण में अच्छी बातें रहेंगी तो हम गलत काम करने से बच सकते हैं। गुरु की सीख को जीवन में उतारने से बड़ी-बड़ी समस्याएं भी खत्म हो सकती हैं।
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