Motivational Books in Hindi: किताबों का हमारे जीवन में बहुत महत्व है. किताबों को मनुष्य का सबसे अच्छा और सच्चा दोस्त बताया गया है. किताबों में दुनिया जहान के हर सवाल का जवाब होता है. हमारे जीवन में आने वाली हर समस्या का समाधान छिपा होता है. किताबें जहां अकेलापन दूर करती हैं, वहीं भीड़ के बीच हमें किसी साथ का अहसास कराती हैं. जीवन के हर संघर्ष, दुख-दर्द में किताबें साथ देती हैं.
जानिए
सचमुच ज्ञान का आकूत भंडार हैं किताबें. आज बाजार में तमाम ऐसी किताबें हैं जो हमारे जीवन को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने के काम करती हैं, निराशा भरे जीवन में आशा का संचार करती हैं. जीवन में जब आप हताश-निराश हो जाते हैं तो किताबें ऐसे समय में नई ऊर्जा और प्रेरणा देने का काम भी करती हैं. यानी किताबों में आपको हर वह चीज मिलेगी जिसकी खोज में आप इधर-उधर भटकते हैं. यहां हम कुछ ऐसी किताबों की चर्चा कर रहे हैं जो जीवन में बहुत ही उपयोगी हैं, प्रेरणादायक हैं.
राजकमल प्रकाशन समूह के फंडा उपक्रम से सेल्फ हेल्प से जुड़ी किताबों की एक शृंखला प्रकाशित हुई है. इस शृंखला की तीन प्रमुख किताबों राहुल हेमराज की ‘आप जैसा कोई नहीं’, डॉ. एचएल माहेश्वरी की ‘कैसे छुएं आसमान’ और डॉ. रमेश अग्रवाल की ‘जीने की जिद’ की चर्चा कर रहे हैं.
आप जैसा कोई नहींः राहुल हेमराज
राहुल हेमराज का संबंध राजस्थान के पाली जिले से है. उनके पिता पेशे से चिकित्सक रहे हैं. चिकित्सक होने कारण उनके तबादले होते रहे, जिनके चलते राहुल हेमराज की शिक्षा-दीक्षा कई स्थानों पर हुई. उन्होंने बांगड़ विश्वविद्यालय पाली से वाणिज्य में स्नातक किया है. राहुल ने लंबे समय तक साप्ताहिक कॉलम लिखे हैं. राजस्थान विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग के साथ उन्होंने विज़डम क्लासेज नाम से कई विमर्श गोष्ठियां भी की हैं.
‘आप जैसा कोई नहीं’ पुस्तक की प्रस्तावना में राहुल हेमराज लिखते हैं कि किताबों ने ही मुझे देखना सिखाया था. बताया था कि ऐसा कोई रास्ता भी हो सकता है. लेकिन एक सच्चे गुरु की तरह वे मुझ पर अपना रास्ता थोप नहीं रही थीं, बल्कि अपने मुताबिक अपना रास्ता स्वयं ढूंढ़ने को प्रेरित कर रही थीं. राहुल लिखते हैं कि विचार ही हैं जो हमारा जीवन बनाते हैं लेकिन यह जान लेने और फिर याद रखकर अपने विचारों को सकारात्मक रखने से बात नहीं बनने वाली.
21 अध्यायों में बँटी ‘आप जैसा कोई नहीं’ पुस्तक के हर अध्याय में जीवन को सकारात्मक बनाने वाली बातों को उदाहरणों के साथ बड़े ही प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया गया है. ‘इतवार के उस दिन’ से पुस्तक का सफर शुरू होता है. इस अध्याय में राहुल एक बड़े ही पते की बात लिखते हैं. वे कहते हैं- स्वीकार किया जाना ही व्यक्ति की पहली मानसिक आवश्यकता है. व्यक्ति नहीं रह सकता अपनी स्वीकारोक्ति के बिना. उसे जरूरत होती है कि कोई उसके वजूद को, उसके होने को स्वीकारे. एक नवजात तक को अपनी मां का ध्यान चाहिए होता है. थोड़ी सी देर के लिए उसका ध्यान हटा नहीं कि वह रोने लगता है.