In 3rd Phase of Bihar Election 2020, BJP and JDU fighting for their Hindu and Muslim vote banks | तीसरे चरण में एनडीए और महागठबंधन नहीं, भाजपा और जदयू की हो रही वैचारिक लड़ाई

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पटना2 घंटे पहलेलेखक: शालिनी सिंह

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बिहार चुनाव के अंतिम चरण तक आते-आते जदयू और भाजपा की वैचारिक लड़ाई फिर उभर रही है।

  • बिहार के सीमांचल इलाके में भाजपा लगातार हार का सामना करती आई है

4 नवंबर, किशनगंज के कोचाधामन के चुनावी सभा में नीतीश कुमार का बयान –

  • कुछ लोग दुष्प्रचार और ऐसी फालतू बातें कर रहे हैं कि लोगों को देश के बाहर कर दिया जाएगा। यहां से कौन किसको बाहर करेगा। किसी में दम नही है कि हमारे लोगों को देश से बाहर कर दे। सभी लोग हिंदुस्तान के हैं, कौन बाहर करेगा।

4 नवंबर के दिन ही, किशनगंज से सवा सौ किमी दूर कटिहार में योगी आदित्यनाथ का बयान –

  • प्रधानमंत्री ने घुसपैठ के मसले का हल तलाश लिया है। सीएए के साथ उन्होंने पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में यातना का सामना करनेवाले अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित की है। देश की सुरक्षा को भंग करने की कोशिश करनेवाले घुसपैठियों को बाहर निकाला जाएगा।

कहने को तो ये एनडीए के ही दो नेताओं का बयान है, लेकिन इन बयानों के फर्क को समझ हम एनडीए के अंदर के बड़े दरार को देख सकते हैं। बिहार चुनाव के आखिरी चरण में सीमांचल में चुनाव होना है। ये वही इलाका है, जहां आकर भाजपा और जदयू का भाईचारा हर बार टूट जाता है। इस बार भी यही नजारा दिख रहा है। सीएम नीतीश ने जो कहा, वो साफ था। बिहार में न सीएए आयेगा और ना कोई शरणार्थी बाहर जाएगा। लेकिन उत्तरप्रदेश के सीएम योगी ने जो कहा, वो भी साफ था। हम केन्द्र में हैं और अब बिहार में भी आ रहे हैं…और इस बार हर शरणार्थी पर हमारी नजर होगी।

ये पहला मौका नहीं, जब इन दोनों पार्टियों के अंदर इस तरह का वैचारिक मतभेद सामने आया है। इससे पहले कई बार भाजपा के नेता बिहार में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी शरणार्थियों के होने की बात करते रहे हैं, लेकिन जदयू लगातार इससे इन्कार करती रही है।

किशनगज में अपने-अपने वोट बैंक को साधने की कोशिश में हो गया था योगी और नीतीश के बयानों का टकराव।

किशनगज में अपने-अपने वोट बैंक को साधने की कोशिश में हो गया था योगी और नीतीश के बयानों का टकराव।

चुनाव के आखिरी चरण में क्यों दिख रहा मतभेद

असल में ये वो मुद्दा है, जिसपर भाजपा और जदयू हमेशा से अलग दिखती रही है। इसकी वजह है, दोनों ही पार्टियों के अपने-अपने वोट बैंक। भाजपा जहां बांग्लादेशी शरणार्थियों को बाहर करने की बात कर अपने हिंदू वोट बैंक को गोल बंद करने की कोशिश करती रही है, वहीं नीतीश कुमार इससे उलट राय रखकर अपने अल्पसंख्यक वोटरों को साथ जोड़े रखने की कोशिश करते रहे हैं। गौर करने लायक बात ये है कि इस तरह के वैचारिक मतभेद बिहार में पहले हुए दो चरणों के चुनाव में नहीं दिखे। उस वक्त दोनों ही पार्टियों के लिए इन मुद्दों पर बोलना नुकसान का कारण बन सकता था। लेकिन अब बारी सीमांचल की है, जहां किशनगंज जैसी सीट है, जिसमें अल्पसंख्यक वोटरों की सबसे बड़ी आबादी है।

घुसपैठियों का नहीं है कोई सरकारी आंकड़ा

बिहार में घुसपैठियों की संख्या को लेकर कोई सरकारी आंकड़ा नहीं है, लेकिन भाजपा के नेता घुसपैठियों की बड़ी आबादी बिहार में होने की बात करते रहे हैं। दिवंगत भाजपा नेता और मंत्री रहे विनोद सिंह ने तो एक बार पार्टी के एक मंच से बिहार में 35 से 40 लाख घुसपैठियों के होने की बात कही थी। उन्होंने तब कहा था – 15 से 20 लाख घुसपैठिये तो केवल सीमावर्ती इलाकों में हैं। विनोद सिंह के इस बयान को कई भाजपा नेताओं ने सही बताया था, लेकिन तब भी जदयू ने बिहार में घुसपैठियों के होने की बात को सिरे से खारिज कर दिया था।

भाजपा को सीमांचल में मिलती रही है हार

भाजपा को सीमांचल के इलाकों में हार का लगातार सामना करना पड़ा है। भाजपा अपनी हार के पीछे शरणार्थियों की आबादी को बड़ी वजह मानती है। यही वजह है कि भाजपा लगातार इस मुद्दे पर आक्रामक रही है। हालांकि जदयू के साथ सरकार में शामिल होने की वजह से कभी भी इसपर खुलकर कुछ कर नहीं पाई।

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