Donation is done on Ashwin Purnima to get rid of all kinds of diseases and defects | हर तरह के रोग और दोष से मुक्ति के लिए अश्विन पूर्णिमा पर किया जाता है दान

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9 दिन पहले

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  • 30 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा इसके अगले दिन स्नान, दान और व्रत की पूर्णिमा

हिंदू कैलेंडर के सातवें महीने यानी आश्विन मास की पूर्णिमा को धर्म ग्रंथों में बहुत ही खास बताया गया है। काशी के ज्योतिषाचार्य पं. गणेश मिश्र बताते हैं कि पूरे साल में सिर्फ इसी तिथि पर चंद्रमा अपनी पूरी 16 कलाओं के साथ होता है। शरद ऋतु में आने के कारण इसे शरद पूर्णिमा कहते हैं। इस पर्व पर श्रीकृष्ण, लक्ष्मीजी और चंद्रमा की पूजा का विधान है। जो कि 30 अक्टूबर को है। वहीं, पूर्णिमा तिथि के दौरान तीर्थ में स्नान और दान 31 अक्टूबर को किया जाएगा। ग्रंथों में बताया गया है कि इस दिन कांसे के बर्तन में घी भरकर दान करने से हर तरह के रोग और दोष खत्म हो जाते हैं। पं. मिश्र का कहना है कि कोरोना के चलते तीर्थ यात्रा और सामूहिक स्नान से बचना चाहिए। इसलिए अश्विन पूर्णिमा के स्नान के लिए घर पर ही पानी में गंगाजल की कुछ बूंदे डाल लेनी चाहिए। साथ ही पानी में आंवला या रस और अन्य औषधियां डालकर नहा लेने से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं।

आश्विन पूर्णिमा व्रत और पूजा विधि

  1. पूर्णिमा पर सूर्योदय से पहले उठकर नहाएं और व्रत, पूजा और श्रद्धा अनुसार दान का संकल्प लें।
  2. श्रीकृष्ण या भगवान विष्णु की पूजा करें। आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य, पान, सुपारी और दक्षिणा के साथ पूजा की जा सकती है।
  3. पूर्णिमा का व्रत करके सत्यनारायण भगवान की कथा सुनें।
  4. इसके बाद संकल्प के मुताबिक दान करें।
  5. ग्रंथों में कहा गया है कि कांसे के बर्तन में घी भरकर दान करना चाहिए।
  6. इसके अलावा किसी मंदिर में अन्न, वस्त्र या भोजन का भी दान कर सकते हैं।

शरद पूर्णिमा पर क्या करें

  1. रात को गाय के दूध से बनी खीर में घी और चीनी मिलाकर आधी रात में भगवान भोग लगाएं।
  2. रात को आकाश के बीच में चंद्रमा के आ जाने पर चंद्रमा का पूजन करें और खीर का नेवैद्य लगाएं।
  3. रात को चांदी के बर्तन में खीर रखकर चंद्रमा की रोशनी में रखें।
  4. अगले दिन सुबह जल्दी उठकर नहाएं और भगवान की पूजा के बाद उस खीर का प्रसाद खुद लें और सबको बांट दें।
  5. इस दिन भगवान शिव-पार्वती और भगवान कार्तिकेय की भी पूजा होती है।

शरद पूर्णिमा का महत्व
शरद पूर्णिमा से ही स्नान और व्रत शुरू हो जाते हैं। माताएं अपनी संतान की मंगल कामना के लिए देवी-देवताओं का पूजन करती हैं। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के बेहद करीब आ जाता है। शरद ऋतु में मौसम एकदम साफ रहता है। इस समय में आकाश में न तो बादल होते हैं और नहीं धूल के गुबार। शरद पूर्णिमा की रात में चंद्रमा की किरणों का शरीर पर पड़ना बहुत ही शुभ माना जाता है।



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