दीपावली पर क्या करना चाहिए , क्या नहीं? दान और दीप प्रज्वलन कब करे? क्या लाभ होगा? ये प्रश्न आप सभी के मन में जरुर उठते होंगे। तो आइए जानते है इन सभी प्रश्न के जवाब इस आर्टिकल के माध्यम से…..
जिस ने कार्तिक मास में भगवान केशव के समक्ष घी और तिल के तेल का दीप प्रज्वलित किया है, मानो उसने सम्पूर्ण यज्ञों का अनुष्ठान कर लिया हो और समस्त तीर्थो में गोता लगा लिया हो। विशेषत: कृष्ण पक्ष में पांच दिन बहुत ही पवित्र होते हैं।बाल कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से कार्तिक शुक्ल द्वितीया के बीच जो कुछ भी दान किया जाता है, वह सब अक्षय और संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है।
पद्म पुराण के मुताबिक भोजन का दान करना सभी दानों में सर्वोत्तम है। जो व्यक्ति किसी ब्राह्मण या गरीब को तिल के बीज के बराबर भी सोना देता है तो वह अपने परिवर्तक सभी सदस्यों सहित विष्णु के धाम में चला जाता हैं। जो चांदी दान करता है , वह चंद्रमा के लोक में पहुंचता है। जो गाय दान देता है, उसे वही फल प्राप्त होता है जो सात द्वीपो सहित पृथ्वी को फसल सहित दान करने से मिलता है।
दीपावली पर दीप प्रज्वलन से भगवान के साथ पूर्वज होते है प्रसन्न
दीपदान का अर्थ होता है आस्था के साथ दीपक प्रज्वलित करना। कार्तिक में प्रत्येक दिन दीपदान जरूर करना चाहिए। अग्निपुराण में कहा गया है कि दीपदानात्परं नास्ति न भूतं न भविष्यति। अर्थात्- दीपदान से बढ़कर न कोई व्रत है, न था और न होगा। पंडित ने बताया कि पद्मपुराण में भी भगवान शिव अपने पुत्र कार्तिकेय जी से कार्तिक मास में दीपदान का माहात्म्य सुनाते हुए कहते हैं।ऐसा करने से सभी व्रत का पूण्य फल प्राप्त किया जा सकता हैं। व अपने पितरो को प्रसन्न कर सकते हैं। क्यों कि हमारे घर में संतान वृद्धि करने वाले हमारे पृत देव ही होते हैं।
धनतेरस से 5 दिनों तक घर, मंदिर व प्रमुख स्थानों पर घी के दीपक जलाते रहना चाहिए। इससे जिनके श्रद्धा और तर्पण नहीं हुए हैं, उसे पितर भी मोक्ष को प्राप्त हो जाते हैं। पितर सदा इस अभिलाषा में रहते हैं कि क्या हमारे कुल में भी कोई ऐसा उत्तम पुत्र उत्पन्न होगा, जो कार्तिक में दीपदान कर श्री केशव को संतुष्ट कर सके।
कार्तिक के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी (धनतेरस) को घर के बाहर यमराज के लिए दीप देना चाहिए। इससे अकाल मृत्यु का नाश होता है। दीप देते समय यह कहना चाहिए –’मृत्यु पाशधारी काल व अपनी पत्नी के साथ सूर्यनंदन यमराज त्रयोदशी को दीप देने से प्रसन्न हो।’
कार्तिक पक्ष चतुर्दशी ( रूपचौदस) पर जो व्यक्ति प्रातः काल स्नान करता है, उसे नर्क नहीं जाना पड़ता। सालार के बीच में यमराज के नाम का उच्चारण ( यमाय नमः, धर्मराजाय नमः) करके जल अर्पित करना चाहिए।
कार्तिक कृष्ण अमावस्या (दीपावली) को प्रातः काल स्नान करें और देवताओं में पितरों का पूजन व उन्हें प्रणाम करके पार्वण श्राद्ध (किसी पर्व जैसे पितृपक्ष, अमावस्या या पर्व की तिथि आदि पर किया जाने वाला श्राद्ध) करें। दूध, दही और घी आदि से ब्राह्मणों को भोजन कराएं। घर की स्त्रियां प्रबोधकाल (ब्रह्म मुहूर्त) में लक्ष्मी जी को जगा कर पूजन करें तो धन संपत्ति की कमी नहीं होती।
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (गोवर्धन पूजा) को सुबह गोवर्धन पूजन करें। फिर गोवर्धन की प्रार्थना करें। इस दिन मंदिर में सवा किलो बाजरा और चावल दान करने से घर में सुख समृद्धि और अनाज की अधिकता बनी रहती है।
कार्तिक शुक्ल द्वितीया (भाई दूज) पर यम की पूजा करें। यमुना में स्नान से मनुष्य यमलोक नहीं देखता है। इस दिन बहन के घर में उसके हाथ से बना भोजन करना उत्तम है। बहनों को वस्त्र दान करें। यह धन, यश, आयु, धर्म, काम और अर्थ की सिद्धि करने वाला है।
ये बातें भी ध्यान रखें
इस माह में पूजा-पाठ करने वाले भक्तों को क्रोध और लालच से बचना चाहिए। घर में क्लेश न करें और प्रेम बनाए रखें। अपना काम ईमानदारी से करेंगे तो देवी लक्ष्मी की प्रसन्नता मिल सकती है। जो लोग इन बातों का ध्यान नहीं रख सकते हैं, उन्हें पूजा-पाठ करने का पूरा पुण्य नहीं मिल पाता है।