Amitabh Bachchan : मरीन ड्राइव की बेंच से लेकर 1600 करोड़ की शहंशाही तक का सफर

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Amitabh Bachchan का नाम आज हिंदी सिनेमा का पर्याय बन चुका है। वह सिर्फ एक अभिनेता नहीं हैं, बल्कि एक ऐसी शख्सियत हैं जिन्होंने अपनी जिंदगी के हर मोड़ पर संघर्ष, समर्पण और दृढ़ संकल्प की मिसाल पेश की है। यह सफर इतना आसान नहीं था जितना आज लगता है। अमिताभ का बचपन साहित्यिक माहौल में बीता, क्योंकि उनके पिता हरिवंश राय बच्चन एक प्रसिद्ध कवि थे। लेकिन जब वह अभिनेता बनने के ख्वाब लेकर मुंबई आए, तो उनका सामना एक कड़वी हकीकत से हुआ। एक समय ऐसा भी था जब अमिताभ को चूहों के साथ मरीन ड्राइव की बेंच पर सोना पड़ा।

शुरुआती संघर्ष: चूहों के साथ बेंच पर रातें बिताना

1960 के दशक के अंत में, जब Amitabh Bachchan ने मुंबई का रुख किया, तब उनके पास न तो रहने की जगह थी और न ही कोई आर्थिक सुरक्षा। मुंबई, जो आज उनकी कर्मभूमि है, उस समय उनके लिए एक क्रूर और बेरहम शहर थी। अमिताभ के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वह एक किराए का कमरा ले सकें। मजबूरी में उन्हें मरीन ड्राइव की बेंच पर सोना पड़ा। वह अक्सर बताते हैं कि उन बेंचों पर रात बिताते समय उनके साथ चूहे भी होते थे, जिनकी संख्या और आकार ने उन्हें चौंका दिया था। यह वह दौर था जब अमिताभ के पास न तो कोई ठिकाना था और न ही उनके पास काम की कोई निश्चितता थी।

Amitabh Bachchan
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असफलताओं का दौर और निश्चय

Amitabh Bachchan के संघर्ष की कहानी केवल मरीन ड्राइव की बेंच तक सीमित नहीं है। शुरुआती दिनों में उन्होंने कई रिजेक्शन झेले। एक वक्त था जब उन्हें एक विज्ञापन के लिए 10,000 रुपये का ऑफर मिला था, जो उस समय एक बड़ी रकम थी। लेकिन अमिताभ ने इसे ठुकरा दिया क्योंकि वह खुद को एक अभिनेता के रूप में स्थापित करना चाहते थे और उन्हें लगा कि विज्ञापनों में काम करना उनकी इस आकांक्षा में बाधा बनेगा। यह फैसला उस समय जोखिम भरा था, क्योंकि उनके पास कोई ठोस आय का साधन नहीं था। वह रेडियो स्पॉट्स से केवल 50 रुपये प्रति माह कमा रहे थे, फिर भी उन्होंने अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।

कदमों की गूंज: ‘सात हिंदुस्तानी’ और शुरुआती असफलताएं

मुंबई में अपने शुरुआती संघर्षों के दौरान, अमिताभ को 1969 में फिल्म सात हिंदुस्तानी में अपनी पहली महत्वपूर्ण भूमिका मिली। यह फिल्म उनके करियर की शुरुआत थी, लेकिन इसके बाद भी उनकी राह आसान नहीं हुई। एक के बाद एक कई फिल्में फ्लॉप हो गईं। हालांकि, अमिताभ ने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी जगह पाने के लिए संघर्ष जारी रखा और फिल्मों में छोटे-मोटे रोल भी किए, जिनमें रेशमा और शेरा में एक मूक बधिर युवक का किरदार शामिल था।

फिल्म इंडस्ट्री में टिके रहने के लिए Amitabh Bachchan ने तय कर लिया था कि अगर उन्हें एक्टिंग में सफलता नहीं मिली, तो वह टैक्सी चलाएंगे। उनके पास उस समय ड्राइविंग लाइसेंस था और वह इसे एक वैकल्पिक योजना के रूप में देख रहे थे। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।

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‘दीवार’ से बनी पहचान: एंग्री यंग मैन का उदय

Amitabh Bachchan के करियर का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ आया 1973 में, जब फिल्म जंजीर ने उन्हें एंग्री यंग मैन के रूप में स्थापित किया। इस फिल्म ने न केवल उन्हें स्टार बनाया, बल्कि यह उनके करियर का टर्निंग पॉइंट भी साबित हुई। इसके बाद आई दीवार, जिसने अमिताभ को एक पावरफुल अभिनेता के रूप में स्थापित किया। दीवार का वह डायलॉग “मेरा पास मां है” आज भी सिनेमा प्रेमियों की जुबान पर है।

Amitabh Bachchan ने एक के बाद एक हिट फिल्में दीं जैसे शोले, नमक हलाल, शराबी, और डॉन, जो भारतीय सिनेमा की मील का पत्थर बन चुकी हैं। उनकी फिल्मों ने न केवल बॉक्स ऑफिस पर सफलता हासिल की, बल्कि दर्शकों के दिलों पर भी अमिट छाप छोड़ी।

आर्थिक संकट और फिर से उभार: ‘केबीसी’ का सफर

सफलता के इस शिखर पर पहुंचने के बाद, Amitabh Bachchan का करियर एक बार फिर से चुनौतियों से घिर गया। उन्होंने राजनीति में भी कदम रखा, लेकिन यह सफर ज्यादा सफल नहीं रहा। इसके बाद उन्होंने एबीसीएल (Amitabh Bachchan Corporation Limited) नाम से एक प्रोडक्शन कंपनी शुरू की, जो भारी नुकसान में चली गई। इस दौरान अमिताभ गहरे आर्थिक संकट में फंस गए और उनके करियर पर भी इसका बुरा असर पड़ा।

लेकिन, 2000 में जब उन्होंने टेलीविजन पर कौन बनेगा करोड़पति (KBC) के साथ कदम रखा, तो यह उनका नया पुनर्जन्म था। केबीसी ने न केवल अमिताभ को आर्थिक रूप से उबारा, बल्कि उन्हें एक बार फिर से जनता के दिलों का धड़कन बना दिया। इस शो ने उनकी लोकप्रियता को और भी बढ़ा दिया और उन्हें घर-घर का प्रिय बना दिया।

वर्तमान की शहंशाही: 1600 करोड़ की संपत्ति

आज, Amitabh Bachchan बॉलीवुड के चौथे सबसे अमीर सेलिब्रिटी हैं। 2024 की हुरुन इंडिया रिच लिस्ट के अनुसार, उनकी कुल संपत्ति 1600 करोड़ रुपये है। एक समय था जब वह आठ लोगों के साथ एक कमरे में रहते थे और महीने के 400 रुपये कमाते थे। लेकिन आज वह एक आलीशान जीवन जी रहे हैं। उनका प्रभाव सिनेमा से परे टेलीविजन, विज्ञापनों और सोशल मीडिया तक फैला हुआ है, जहां वह दुनिया भर के प्रशंसकों से जुड़े रहते हैं।

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प्रेरणा का प्रतीक: संघर्ष से सफलता की कहानी

Amitabh Bachchan की कहानी केवल एक अभिनेता की सफलता की कहानी नहीं है, यह एक व्यक्ति की दृढ़ इच्छाशक्ति, समर्पण और संघर्ष की कहानी है। उन्होंने अपनी जिंदगी के हर मोड़ पर खुद को साबित किया और हर चुनौती का डटकर सामना किया। चाहे वह चूहों के साथ मरीन ड्राइव की बेंच पर सोने की मजबूरी हो या बॉलीवुड के शहंशाह बनने का सफर, अमिताभ की यात्रा हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है जो अपने सपनों के लिए संघर्ष कर रहा है।

अमिताभ बच्चन आज एक ग्लोबल आइकन हैं, लेकिन उनकी जड़ें आज भी जमीन से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने अपनी जिंदगी में हर उतार-चढ़ाव का सामना किया और खुद को एक ऐसे सितारे के रूप में स्थापित किया जो कभी नहीं डूबता। उनकी यह यात्रा दर्शाती है कि असफलताएं और चुनौतियां कितनी भी बड़ी क्यों न हों, अगर इंसान में हौसला और मेहनत करने का जज्बा हो, तो वह किसी भी मुश्किल को पार कर सकता है।

Amitabh Bachchan: एक नाम, एक पहचान, एक प्रेरणा।

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