America और मध्य पूर्व का युद्ध: मध्य पूर्व में चल रहा युद्ध पिछले एक साल से अधिक समय से जारी है, और इस दौरान कई प्रमुख शक्तियों की असमर्थता इस संकट को हल करने में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है। अमेरिका, जो कि इस क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी रहा है, इस बार क्यों मूक दर्शक बना हुआ है, यह एक महत्वपूर्ण सवाल है। इस लेख में हम इस जटिल स्थिति के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करेंगे।
America का दृष्टिकोण
अधिकांश विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका ने इस बार इजरायल को खुली छूट दे दी है। इस सोच के पीछे यह तर्क है कि अमेरिका चाहता है कि इजरायल अपने आप को उस स्थिति में स्थापित करे कि कोई भी भविष्य में उसकी ओर आंख उठाकर भी न देख सके। यह एक प्रकार का समर्थन है, जो अमेरिका ने इजरायल को दिया है, लेकिन यह वैश्विक शांति के लिए चिंताजनक है।
इजरायल और हमास के बीच विफल वार्ता
गाजा में इजरायली हमलों की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है, जहां 40,000 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। अमेरिका ने कई बार कहा कि इजरायल और हमास के बीच बातचीत हो रही है, लेकिन इन प्रयासों में निरंतर विफलता देखने को मिली है। America की नाराजगी जाहिर होने के बावजूद, वह इजरायल की मदद करता रहा है, जो एक विरोधाभास है।
बदलती भू-राजनीति
एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि पिछले दो-तीन दशकों में इजरायल के दुश्मनों की संरचना में बदलाव आया है। अमेरिका ने ईरान को मनाने की कई बार कोशिश की, लेकिन वह लगातार यह महसूस करता रहा है कि ईरान पर भरोसा नहीं किया जा सकता। ईरान के प्रॉक्सी समूह जैसे हिज़बुल्लाह और हौथी अब अमेरिका की पहुंच से बाहर हैं, जिससे अमेरिका की प्रभावशीलता कम हो गई है।
America का इजरायल पर प्रभाव
हालांकि अमेरिका का इजरायल पर प्रभाव अभी भी मजबूत है, विशेषकर सैन्य सहायता के माध्यम से। इस वर्ष ही राष्ट्रपति बाइडेन ने इजरायल को $15 बिलियन का पैकेज दिया। लेकिन, अमेरिका की चेतावनियों का इजरायल पर असर होता दिखता नहीं है। इजरायल के नरसंहार और सैन्य प्रतिक्रियाओं के बावजूद, अमेरिका का समर्थन लगातार बना हुआ है।
युवा अमेरिकी और फिलीस्तीनी मुद्दा
पिछले कुछ समय से, अमेरिकी युवाओं के बीच फिलीस्तीनी मुद्दे पर सहानुभूति बढ़ रही है। यह स्थिति America के लिए एक नई चुनौती प्रस्तुत करती है, क्योंकि इससे राजनीतिक दृष्टि से जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं। अमेरिका की कूटनीति को अब अपने ही नागरिकों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है, जो एक बड़ी समस्या बन सकती है।
वैश्विक ताकतों की भूमिका
दूसरी ओर, चीन और रूस जैसे देश ईरान को समर्थन देने में सक्रिय हैं। चीन, ईरानी तेल का प्रमुख आयातक बन चुका है, जबकि रूस भी इस क्षेत्र में अपनी रुचि बनाए रखने की कोशिश कर रहा है। इन शक्तियों की मौजूदगी अमेरिका की स्थिति को और भी जटिल बना देती है।
क्षेत्रीय शक्तियों की चुप्पी
मध्य पूर्व की क्षेत्रीय शक्तियां भी इस संकट में चुप हैं। ईरान ने पूर्ण युद्ध की स्थिति से बचने की कोशिश की है, क्योंकि यह इस्लामिक गणराज्य के लिए विनाशकारी हो सकता है। मिस्र और सऊदी अरब भी इस मुद्दे पर सतर्क हैं। मिस्र को शरणार्थियों की आमद का डर है, जबकि सऊदी अरब फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना का समर्थन करते हुए अपने लोगों की सुरक्षा को प्राथमिकता दे रहा है।
इस जटिल परिदृश्य में, America की भूमिका और उसकी नीति स्पष्ट नहीं है। मध्य पूर्व का यह युद्ध केवल एक भू-राजनीतिक संघर्ष नहीं है, बल्कि यह विश्वास, समर्थन और कूटनीतिक रणनीतियों के बीच एक उलझी हुई गांठ है। अमेरिका का इजरायल को खुली छूट देना, जबकि फिलीस्तीनी मुद्दे पर सहानुभूति बढ़ती जा रही है, यह दर्शाता है कि दुनिया की शक्ति संतुलन में परिवर्तन हो रहा है।
आगे बढ़ते हुए, यह देखना होगा कि क्या America अपनी रणनीति में बदलाव करेगा या इस संकट को और अधिक बढ़ने देगा। एक बात निश्चित है, कि इस क्षेत्र में शांति की बहाली केवल क्षेत्रीय और वैश्विक शक्तियों के सामूहिक प्रयास से ही संभव है।