After 5 years the GI pipe fitting industry of the city was in full mode, which had stopped working, now restarting production | 5 साल बाद सिटी की जीआई पाइप फिटिंग इंडस्ट्री फुल मोड पर, जो काम बंद कर चुके थे अब दोबारा शुरू कर रहे उत्पादन

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जालंधर18 घंटे पहले

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  • केंद्र सरकार के जल शक्ति प्रोग्राम और प्लास्टिक दाना महंगा होने के कारण जीआई पाइप फिटिंग की डिमांड बढ़ी
  • लंबे समय से आर्थिक संकट झेल रही पाइप फिटिंग इंडस्ट्री को मिला ग्लूकोज

सिटी की लोहा भट्ठी इंडस्ट्री में पांच साल बाद फिर से जीआई (गैल्वनाइज्ड आयरन) पाइप फिटिंग बनने लगी है। वर्ष 2012 में जैसे ही प्लास्टिक की बनी पाइप फिटिंग की खपत में इजाफा हुआ तो जीआई पाइप फिटिंग की डिमांड एकदम से नीचे आ गई थी।

इसके बाद जालंधर की 400 उत्पादन इकाइयों में से आधी ने पाइप फिटिंग बंद करके दूसरी आइटम्स का निर्माण शुरू कर दिया था। लेकिन लॉकडाउन के बाद एकदम से लोहा पिघलाकर बनाई जाने वाली जीआई पाइप फिटिंग की मांग में कई गुना इजाफा हुआ है।

इसके बाद जिन लोगों ने जीआई पाइप फिटिंग का निर्माण बंद कर दिया था, उन्होंने दोबारा इसे शुरू किया है। दो शिफ्ट में काम करके जालंधर की इंडस्ट्री हर महीने ₹30 करोड़ से ऊपर का उत्पादन करने लगी है।

दरअसल, 1970 के दशक में जालंधर लोहे से बनी पाइप फिटिंग बनाने के हब के रूप में विकसित हुआ। वर्ष 2010 तक जालंधर में देश का 95 परसेंट पाइप फिटिंग तैयार की जा रही थी।

अब केंद्र सरकार की जल शक्ति योजना के तहत पारंपरिक पाइप फिटिंग की खरीद शुरू होने से जालंधर के उद्योगों को नए ऑर्डर मिले हैं। इस समय जालंधर से यूपी, पश्चिम बंगाल, कोलकाता, जेएंडके, असम, उत्तराखंड आदि में सप्लाई हो रही है।

जालंधर को बदले माहौल में क्या लाभ हुआ?

माहौल बदलने से जालंधर 200 के करीब कारखानों को फिर से आर्डर मिलने लगे हैं। 1 साल में 300 करोड़ रुपए से ज्यादा के माल की डिमांड पैदा हो गई है। दूसरा लाभ यह हुआ कि लोग प्लास्टिक की पाइपिंग से दूर होने लगे हैं।

करीब 25000 मजदूरों को अब डबल शिफ्ट में रोजगार मिल रहा है। इसके अलावा वॉल्व एंड कॉक्स, सेनेटरी फिटिंग बनाने वालों ने दोबारा जीआई पाइप फिटिंग को शुरू किया है।

लोहे की पाइप फिटिंग का एक पीस 8 सस्ता

पहले प्लास्टिक की पाइप फिटिंग तैयार करने के लिए कच्चा माल (प्लास्टिक दाना) 60 हजार रुपए प्रति टन था, जो अब 1 लाख रुपए प्रति टन क्रॉस कर चुका है।

इससे पारंपरिक लोहे की पाइप फिटिंग का एक पीस 8 सस्ता पड़ रहा। इससे सरकारी योजनाओं में पारंपरिक लोहे की पाइप फिटिंग की डिमांड कई गुना बढ़ी है।

इंडस्ट्री संचालक बोले –बीमार उद्योगों को ग्लूकोज मिलाइंडस्ट्री चेंबर के सचिव चरणजीत सिंह महंगी कहते हैं कि पूरे भारत में जालंधर की कंपनियां पाइप फिटिंग सप्लाई कर रही हैं। जिन मशीनों को बंद रखना पड़ता था अब उन्हें पूरी ताकत से चलाया जा रहा है। निश्चित तौर पर जालंधर में रोजगार के मौकों में भी इजाफा हुआ है।

इंडस्ट्रियल स्टेट वेलफेयर सोसायटी के प्रेसिडेंट सूबा सिंह कहते हैं कि पारंपरिक पाइप फिटिंग के प्रोडक्ट प्लास्टिक से सस्ते हैं जिस कारण इनकी डिमांड नेशनल लेवल पर बढ़ गई है। अधिकतर शहरी लोग फिर से लोहे के पाइप लगा रहे हैं।

इंडस्ट्री संचालक संजय गोयल ने कहा कि कोरोना के संकट के बाद पानी के पाइप और इससे जुड़े सभी प्रकार के उत्पादों को बूस्ट मिला है। इसकी मुख्य वजह चीनी उत्पादों को लेकर ग्राहकों में जागृति आना भी है।

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