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चंडीगढ़20 घंटे पहले
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- 1989 बैच के डॉ. सुभाष चंद्र ने बताया- हॉस्टल में टीवी लगवाने के लिए की थी हड़ताल
- टीवी के लिए स्टूडेंट्स ने भी दिए थे 40-40 रुपए
- 1989 में मंडल कमीशन विवाद के कारण कंपनी ने कैंसिल की थी प्लेसमेंट
(ननु जोगिंदर सिंह) पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी के 100 साल नवंबर 2021 को पूरे होने जा रहे हैं। 100 सप्ताह तक दैनिक भास्कर में पेक के सफर की कहानी। इसमें हमसफर बने एल्युमनाइज की दास्तां, दिलचस्प किस्से और कहानियां। एल्युमनाइज कैनेडा, ऑस्ट्रेलिया, यूएसए से यहां आते हैं। अपनी यादें ताजा करने के लिए…
हमारे बैच से पहले दाखिले मेरिट के आधार पर होते थे। नतीजा यह होता था कि प्री इंजीनियरिंग करने वाले स्टूडेंट्स के बजाय दूसरे स्टूडेंट्स को प्राथमिकता मिल जाती थी। हमारा पहला बैच था जिसमें सबसे ज्यादा प्री इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स के दाखिले हुए थे क्योंकि उस समय पहली बार इंजीनियरिंग में दाखिले के लिए एंट्रेंस टेस्ट टेस्ट करवाया गया।
यह बताते हैं 1989 बैच के पासआउट डॉ. सुभाष चंद्र। डॉ. सुभाष टीबीआरएल में प्रोजेक्ट डायरेक्टर के पद पर हैं और हाल ही में उन्होंने पीएचडी की है। वह बताते हैं कि उनके बैच की यादें बाकी बैच से कुछ अलग हैं। हालांकि, उस समय एयरोनॉटिकल स्टडीज को कोई बहुत अच्छी ब्रांच नहीं माना जाता था लेकिन वह और उनके कुछ दोस्त ऐसे थे जिनमें एयरोनॉटिक्स को लेकर पैशन था। उनके जॉइन करने के कुछ समय बाद ही यह ब्रांच भी उतनी ही हॉट थी जितनी दूसरी। उनके सेकंड ईयर के समय ही पूरे बैच की कैंपस प्लेसमेंट बहुत अच्छे पैकेज पर हो गई थी।
1989 में भी जब उनका बैच पास आउट हुआ तो सबकी कैंपस प्लेसमेंट हो चुकी थी लेकिन उन्हीं दिनों मंडल कमीशन वाला विवाद चल रहा था और रिक्रूट करने वाली कंपनी ने पूरी की पूरी प्लेसमेंट कैंसिल कर दी। उन्होंने एमटेक करने का डिसीजन किया और कुरुक्षेत्र चले गए जहां से यूपीएससी के जरिए उनका चयन डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (डीजीसीए) के लिए हो गया।
यहीं से उन्होंने बाद में आगे मुंबई में जॉइन किया और मिसाइल मैन एवं पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम के साथ काम किया। उन्होंने कहा कि हर टेस्ट और हर एग्जाम से पहले दोस्तों के जरिए हॉस्टल का कमरा ही उनका ठिकाना होता था ताकि बिना डिस्टरबेंस के पढ़ सके। उस समय इंजीनियरिंग की किताबें बहुत कम होती थी इसलिए एक किताब पर सभी स्टूडेंट्स पढ़ लेते थे।
अब पल्स डेटोनेशन टेक्नोलॉजी पर कर रहे हैं काम
लगभग 10 साल तक मिसाइल डिजाइनिंग से जुड़े रहे। बाद में निजी कारणों से उन्होंने टीबीआरएल चंडीगढ़ में अपना ट्रांसफर ले लिया जहां इन दिनों वह पल्स डेटोनेशन टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे हैं। इसी साल उन्होंने अपने इसी एरिया में पीएचडी कम्प्लीट की है। 25 साल बाद उन्होंने पीएचडी करने का फैसला लिया तो अपने ही इंस्टीट्यूट को चुना।
कॉलेज से जुड़ी अपनी यादों पर बात करते हुए वह बताते हैं कि हॉस्टल में टीवी को लगवाने के लिए एक बड़ी हड़ताल चली थी। उन दिनों बुनियाद और हम लोग जैसे सीरियल आते थे। स्टूडेंट्स का कहना था कि जो डे स्कॉलर हैं उनके तो घरों पर बुनियाद है लेकिन हम लोग का क्या। इसी नारे के साथ जब कुछ दिन हड़ताल चली। टीवी लगाने के लिए हर स्टूडेंट ने 40-40 एकत्र किए थे। दूसरे ही साल उन्होंने हॉस्टल छोड़ दिया।
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