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लुधियाना15 घंटे पहले
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- लोकल बॉडीज के प्रिंसिपल सेक्रेटरी और सीईओ ने किया योजना के लिए चार प्रस्तावित साइटों का दौरा
निगम के 95 वॉर्डों में 24 घंटे पेयजल सप्लाई के लिए नहरी पानी योजना को अभी तक शुरू करने के लिए प्लांट लगाने की जगह ही नहीं मिल पाई है। हालांकि पिछले 7 साल से इस योजना को लाने के लिए कागजों में बजट तो 3 हजार करोड़ से ज्यादा के बन चुके हैं, मगर जमीनी हकीकत ये है कि अभी तक इस योजना के लिए एक इंच तक काम शुरू नहीं हो पाया।
बुधवार को लोकल बॉडीज डिपार्टमेंट के प्रिंसिपल सेक्रेटरी एके सिन्हा और सीईओ अजॉय शर्मा रिव्यू करने शहर पहुंचे। उन्होंने नहरी पानी योजना पर कितना काम हो पाया है, इसकी सच्चाई देखी। विडंबना ये है कि अभी तक प्रोजेक्ट के लिए 3 माह में ट्रीटमेंट प्लांट की जगह तक फाइनल नहीं हो पाई है। ऐसे में प्रिंसिपल सेक्रेटरी ने 2 दिन में जगह फाइनल करने के लिए टेक्नीकल रिपोर्ट पेश करने को चीफ इंजीनियर सीवरेज बोर्ड की जिम्मेदारी तय की। इस दौरान दोनों अफसरों के साथ निगम कमिश्नर प्रदीप कुमार सभ्रवाल और डीसी वरिंदर कुमार शर्मा मौजूद रहे। अजॉय शर्मा ने बताया कि नहरी पानी योजना के तहत एक्वायर की जानी वाली जमीन को लेकर डीसी की कमेटी ने फैसला लेना है। मौका देखा गया है, जल्द इस पर काम करके रिपोर्ट पेश करने को कहा गया है।
जुलाई में कैबिनेट ने दी थी प्रोजेक्ट को मंजूरी, पहले फेज में खर्च होने हैं 1092 करोड़
बता दें कि जुलाई में कैबिनेट मीटिंग में मुख्यमंत्री ने लुधियाना में 24 घंटे पानी सप्लाई योजना को मंजूरी दी थी। इसके तहत पहले फेज में 1092 करोड़ रुपए खर्च होने हैं। इनमें पानी की 125 टंकियां, ट्रीटमेंट प्लांट और 165 किलोमीटर की ट्रांसमिशन लाइनें डाली जानी हैं। इस फंड में 70 फीसदी पैसा वर्ल्ड बैंक से लोन लिया जाएगा, जबकि 30 फीसदी पैसा राज्य सरकार देगी। इससे इतर ट्रीटमेंट प्लांट के लिए जिला प्रशासन ने 50 एकड़ जमीन एक्वायर करनी है। इसके 20 करोड़ रुपए जमीन अधिग्रहण के लिए अलग से खर्च होने हैं।
एक महीने में जगह करनी थी फाइनल: हालांकि जुलाई में कैबिनेट की मंजूरी तो मिली। वहीं, यह भी आदेश जारी हुए कि एक महीने में ट्रीटमेंट प्लांट के लिए जिला प्रशासन ने जमीन अधिग्रहण करके देनी थी, लेकिन अभी तक प्रशासन ने 4 साइटें तो देखी हैं, लेकिन इनमें से सस्ती जमीन के चक्कर में अभी तक किस साइट को फाइनल किया जाना है, उस पर फैसला ही नहीं हो सका। इसके लिए बाकायदा डीसी की अगुवाई में कमेटी भी बनी है। जमीन तय होने के बाद ही ट्रीटमेंट लगाने के लिए टेंडर की प्रक्रिया शुरू होगी।
गिरते भू-जल स्तर के कारण प्रोजेक्ट की अहमियत ज्यादा
शहर में भू-जल लगातार गिरता जा रहा है। जमीनी पानी के हर साल सैंपल भी फेल हो रहे हैं, जो लोगों की सेहत के लिए हानिकारक है। इसके बावजूद इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा। 7 सालों में लागत 2500 करोड़ से बढ़कर 3227 करोड़ रुपए तक पहुंच चुकी है।
नगर निगम और जिला प्रशासन ने योजना पर सिर्फ मीटिंगें ही की हैं। अगर इस साल में जगह फाइनल होने के बाद टेंडर लग भी जाएंगे तो कम से कम प्रोजेक्ट को पूरा होने में 4 साल का समय लगेगा। जबकि प्रोजेक्ट पूरा होने पर निगम को फायदा ये होगा कि सालाना 5 करोड़ का सालाना ट्यूबवेलों पर होने वाला खर्च बचेगा और लाखों का हर महीने आने वाला बिजली बिल भी नहीं चुकाना पड़ेगा।
सफाई कराती रहीं जॉइंट कमिश्नर, देरी के चलते एटुजेड के प्लांट में नहीं पहुंचे अफसर
देरी होने के चलते लोकल बॉडीज के प्रिंसिपल सेक्रेटरी एके सिन्हा और सीईओ अजॉय शर्मा ताजपुर एटुजेड के प्रोसेसिंग प्लांट का दौरा करने नहीं पहुंच पाए, लेकिन जॉइंट कमिश्नर स्वाति टिवाणा ने हेल्थ अफसरों के साथ वहां बंदोबस्त करवाए।
इस दौरान सामने आया कि वहां दौरे से पहले टिवाणा पहुंची तो व्यवस्था ठीक न होेने के चलते जेसीबी मशीनें मंगा मंगलवार को सफाई करवाई। हालांकि दोनों अधिकारी देरी होने के चलते प्लांट पर दौरा करने ही नहीं गए। नहरी पानी योजना की साइटों को देखने के बाद दोनों अफसरों ने जोन-डी में निगम कमिश्नर के साथ मीटिंग। इसके बाद वह हंबड़ां रोड पर एक निजी कंपनी के प्रोसेसिंग के काम को देखने गए और बाद में सटन हाउस में मीटिंग हुई, जहां बुड्ढे नाले की सफाई और ब्यूटीफिकेशन पर एनजीटी की गाइडलाइन के अनुसार काम करने के आदेश दिए गए।
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