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21 दिन पहले
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![Maa Kushmanda Navratri 2020 Day 4 Devi Puja Significance and Importance | Facts On Karnataka Saalumarada Thimmakka | मां कूष्मांडा की आराधना से रोगमुक्त होंगे, भौतिक और आध्यात्मिक सुख भी होगा प्राप्त 1 cover r 1603114837](https://images.bhaskarassets.com/thumb/720x540/web2images/521/2020/10/19/cover-r_1603114837.jpg)
- माना जाता है कि सृष्टि की उत्पत्ति से पूर्व जब चारों ओर अंधकार था तो मां दुर्गा ने इस अंड यानी ब्रह्मांड की रचना की थी
- आठ भुजाओं वाली कूष्मांडा देवी अष्टभुजा देवी के नाम से भी जानी जाती हैं
नवरात्रि के चौथे दिन माता कूष्मांडा स्वरूप को समर्पित है। ‘कू’ का अर्थ है छोटा, ‘ष्’ का अर्थ है ऊर्जा और ‘अंडा का अर्थ है ब्रह्मांडीय गोला- सृष्टि या ऊर्जा का छोटा सा वृहद ब्रह्मांडीय गोला। माना जाता है कि सृष्टि की उत्पत्ति से पूर्व जब चारों ओर अंधकार था तो मां दुर्गा ने इस अंड यानी ब्रह्मांड की रचना की थी। आठ भुजाओं वाली कूष्मांडा देवी अष्टभुजा देवी के नाम से भी जानी जाती हैं।
स्वरूप
मां कूष्मांडा का वाहन सिंह है। इनके हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमलपुष्प, अमृत-पूर्ण कलश, चक्र तथा गदा रहते हैं।
महत्त्व
मां कूष्मांडा के पूजन से हमारे शरीर का अनाहत चक्र जाग्रत होता है। इनकी उपासना से हमारे समस्त रोग और शोक दूर हो जाते हैं। साथ ही भक्तों को आयु, यश, बल और आरोग्य के साथ-साथ सभी भौतिक और आध्यात्मिक सुख भी प्राप्त होते हैं।
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![Maa Kushmanda Navratri 2020 Day 4 Devi Puja Significance and Importance | Facts On Karnataka Saalumarada Thimmakka | मां कूष्मांडा की आराधना से रोगमुक्त होंगे, भौतिक और आध्यात्मिक सुख भी होगा प्राप्त 3 amma 1603121688](https://images.bhaskarassets.com/web2images/521/2020/10/19/amma_1603121688.jpg)
नवरात्रि के चौथे दिन श्रद्धालु ब्रह्मांड की रचना करने वाली कूष्मांडा मां की आराधना करते हैं। माता कूष्मांडा के रचे इस ब्रह्मांड को बचा रही हैं, कर्नाटक के रामनगर जिले के मगदी तालुका की थिमक्का जैसी सांसारिक देवी। अब 107 बरस की हो चुकीं थिमक्का 8 हजार से ज्यादा पेड़ों की मां हैं। इनमें 400 से ज्यादा बरगद के वृक्ष हैं। यही वजह है कि उन्हें ‘वृक्ष माता’ की उपाधि मिली है।
विवाह के काफी समय बाद थिमक्का को पता चला कि वे कभी मां नहीं बन सकतीं। परेशान होकर वे आत्महत्या के बारे में सोचने लगीं तो पति की सलाह पर उन्होंने बरगद का एक पौधा लगाया। उसकी बच्चे की तरह देखभाल की। समय से पानी दिया और मवेशियों से भी बचाया।
थिमक्का के जीवन में मां न पाने का खालीपन बरगद के इस पेड़ ने भरना शुरू कर दिया। इसके बाद तो उन्होंने एक के बाद एक पेड़ लगाने शुरू कर दिए। धीरे-धीरे उनका जुनून बढ़ने लगा। अब तक वह 8 हजार से ज्यादा पौधों को पालकर उन्हें पेड़ बना चुकी हैं। लोग उन्हें अब सालुमारदा थिमक्का के नाम से पुकारते हैं। दरअसल, ‘सालुमारदा’ कन्नड़ भाषा का एक शब्द है, जिसका अर्थ है ‘वृक्षों की पंक्ति’।
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थिमक्का अब तक 8 हजार से ज्यादा पौधों को पालकर उन्हें पेड़ बना चुकी हैं।
थिमक्का का जन्म कर्नाटक के तुमकूर जिले के गुबी तालुका में हुआ था। माता-पिता बेहद गरीब थे। सो थिमक्का पढ़ नहीं सकीं। घरवालों की मदद के लिए कई बार खदान में मजदूरी भी करनी पड़ती थी। करीब 20 वर्ष की उम्र में उनकी शादी रामनगर जिले के मगदी तालुक में हुलिकल के रहने वाले चिकैया से हुई। पति भी मजदूरी करके परिवार को पालते थे।
थिमक्का कहती हैं कि जब उन्हें पता चला कि वह मां नहीं बन सकती तो परिवारवालों का व्यवहार बदलने लगा। बहुत परेशान होने पर उनके मन में आत्महत्या का विचार आने लगा, तभी एक दिन पति ने समझाया कि उन्हें पौधे लगाकर बड़ा करने में मन लगाना चाहिए।
थिमक्का बताती हैं, “हमारे गांव के पास बरगद के पुराने पेड़ थे। पहले साल उन्हीं पेड़ों से 10 पौधे तैयार करके पांच किलोमीटर दूर पड़ोसी गांव में रोपे। इस सिलसिले को हम साल दर साल आगे बढ़ाते रहे। मैं रोज सुबह पति के साथ खेतों पर काम करने जाती और शाम को दोनों सड़क किनारे पौधे रोपते।
ज्यादातर पौधे बारिश के मौसम में लगाते थे, ताकि उन्हें पानी मिलता रहे। मवेशियों से बचाने के लिए पौधों के चारों ओर कांटेदार झाड़ियां लगाते थे। 1991 में थिमक्का के पति का निधन हो गया। इसके बाद तो उन्होंने अपना पूरा जीवन पौधे लगाने और पेड़ों की रक्षा के नाम कर दिया।
![Maa Kushmanda Navratri 2020 Day 4 Devi Puja Significance and Importance | Facts On Karnataka Saalumarada Thimmakka | मां कूष्मांडा की आराधना से रोगमुक्त होंगे, भौतिक और आध्यात्मिक सुख भी होगा प्राप्त 5 1991 में थिमक्का के पति का निधन हो गया, इसके बाद तो उन्होंने पूरा जीवन पौधे लगाने और पेड़ों की रक्षा के नाम कर दिया।](https://images.bhaskarassets.com/web2images/521/2020/10/19/jmcppbhqrjorrnf-800x450-nopad_1603121191.jpg)
1991 में थिमक्का के पति का निधन हो गया, इसके बाद तो उन्होंने पूरा जीवन पौधे लगाने और पेड़ों की रक्षा के नाम कर दिया।
कर्नाटक सरकार भी सड़क के लिए पेड़ न काटने का आग्रह नहीं टाल सकी
थिमक्का के इन पेड़ों की देखभाल कर्नाटक सरकार करती है। बागपल्ली-हलागुरु सड़क को चौड़ा करने के लिए कई पेड़ों को काटे जाने का खतरा मंडराने लगा, मगर थिमक्का ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री से परियोजना पर दोबारा विचार करने का आग्रह किया तो सरकार ने इन पेड़ों को बचाने का रास्ता तलाशने का फैसला किया।
पौधे रोपने का जज्बा बरकरार, चार किलोमीटर का इलाका किया हरा-भरा
107 साल की उम्र में भी थिमक्का का कहना है कि वह जब तक जीवित हैं पौधे लगाती रहेंगी। उनके प्रयासों से करीब चार किलोमीटर का इलाका काफी हरा-भरा हो गया है। थिमक्का के इस अद्भुत योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें इस वर्ष पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया।
कर्नाटक सरकार तो थिमक्का को कई पुरस्कार दे चुकी हैं। राज्य में उनके नाम से कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। वह कहती हैं कि लोग अचानक आते हैं, कार से समारोह में ले जाते हैं। सम्मानित करते हैं और वापस छोड़ जाते हैं।
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थिमक्का के अद्भुत योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें इस वर्ष पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया।
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