राजस्थान के कोटा जिले में स्थित कैथून नगर एक ऐसा स्थल है, जो न केवल अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है, बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहां का विभीषण मंदिर न केवल भारत का एकमात्र मंदिर है, बल्कि इसकी कई मान्यताएं और किंवदंतियां इसे और भी विशेष बनाती हैं।
मंदिर का इतिहास
विभीषण मंदिर का इतिहास कोटा के बसने से भी पुराना है। यह मंदिर भारत के प्राचीन तीर्थ स्थलों में से एक है, जिसे 60 वर्ष पूर्व गोरखपुर से प्रकाशित “कल्याण” पत्रिका ने भी उल्लेखित किया था। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह महाराज विभीषण की विशाल प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध है, जो आज भी अपनी महिमा को बनाए हुए है।
मंदिर ट्रस्ट के हरिओम पुरी के अनुसार, इस मंदिर में एक विशाल चबूतरा है, जिसके मध्य में विभीषण जी की विशाल प्रतिमा स्थापित है। इस प्रतिमा का धड़ ऊपर से दिखता है, जबकि शेष भाग धीरे-धीरे जमीन में धंसता जा रहा है। हर वर्ष यह प्रतिमा दाने के बराबर जमीन में धंसती जा रही है, जो इसे एक अनोखा धार्मिक स्थल बनाता है।
विभीषण की मान्यता
विभीषण को भगवान राम के परम भक्त माना जाता है। जब रावण ने भगवान राम के साथ युद्ध किया, तब विभीषण ने धर्म का पक्ष लिया। उनका यह त्याग और बलिदान ही उन्हें एक महत्वपूर्ण धार्मिक प्रतीक बनाता है। विभीषण ने अपने परिवार और रिश्तेदारों को त्याग कर भगवान राम की ओर रुख किया, जिससे यह सिद्ध होता है कि धर्म के लिए व्यक्तिगत संबंधों का बलिदान करना कितना महत्वपूर्ण है।
यह मंदिर एक प्राचीन कुंड के पास स्थित है, जिसमें विक्रम संवत 1815 का शिलालेख लगा हुआ है। इसका जीर्णोद्धार महाराजा दुर्जन सिंह के समय गौतम परिवार द्वारा करवाया गया था। गौतम परिवार के सदस्य आज भी नवरात्र के दौरान यहां पूजा करने आते हैं, जो इस मंदिर की महत्वता को दर्शाता है।
प्राचीन किवदंती
कैथून के विभीषण मंदिर के पीछे एक प्राचीन किवदंती भी है, जो इसकी महत्वता को और बढ़ाती है। कहा जाता है कि जब भगवान राम का राज्याभिषेक हुआ, तब सभी देवी-देवता, ऋषि-मुनि, और राजा-महाराजा अयोध्या पहुंचे थे। इस अवसर पर भगवान शंकर ने हनुमान जी से भारत भ्रमण की इच्छा व्यक्त की। विभीषण ने इस वार्तालाप को सुनकर विनम्रता से निवेदन किया कि वह उन्हें कांवड़ में बिठाकर यात्रा करने की इच्छा रखते हैं।
भगवान शंकर ने उनकी विनती स्वीकार की, लेकिन यह शर्त रखी कि जहां भी कांवड़ भूमि पर टिकेगी, वहां यात्रा समाप्त हो जाएगी। विभीषण ने एक विशाल कांवड़ बनाई, जिसमें भगवान शंकर और हनुमान जी को बिठाया। जब यह कांवड़ कैथून से गुजर रही थी, तो भगवान शंकर ने भूमि पर अपनी यात्रा समाप्त कर दी। इसी स्थान पर आज चोमेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर स्थित है।
धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व
विभीषण मंदिर का धार्मिक महत्व केवल इसके इतिहास में नहीं, बल्कि इसमें छिपे सिद्धांतों में भी है। यहां एक कहावत प्रचलित है, “घर की भेदी लंका ढाए,” जो विभीषण की छवि को संदर्भित करती है। यह कहावत दर्शाती है कि कैसे कभी-कभी अपने ही लोग आपके सबसे बड़े दुश्मन बन सकते हैं।
हरिओम पुरी बताते हैं कि यह मंदिर भारतीय सिविल सर्विस और आरएएस परीक्षाओं में भी पूछा जाता है, जो इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्वता को दर्शाता है।
मंदिर की संरचना
मंदिर की संरचना अद्वितीय है, जिसमें महाराज विभीषण की प्रतिमा एक विशाल छतरी के नीचे स्थित है। यह छतरी महाराव उम्मेद सिंह प्रथम द्वारा बनवायी गई थी, जो 1770 से 1821 के बीच शासन कर रहे थे। इस प्रतिमा का धड़ जमीन में धंसा हुआ है, जो दर्शाता है कि यह प्रतिमा हर साल दाने के बराबर नीचे जा रही है।
सांस्कृतिक धरोहर
कैथून का विभीषण मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक धरोहर भी है। यह स्थान न केवल स्थानीय भक्तों के लिए, बल्कि देशभर के पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। यहां हर वर्ष नवरात्र और अन्य त्योहारों के दौरान बड़ी संख्या में लोग आते हैं और अपनी आस्था प्रकट करते हैं।
कैथून का विभीषण मंदिर एक अद्वितीय धार्मिक स्थल है, जो न केवल अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है, बल्कि इसकी मान्यताएं और किवदंतियां इसे और भी विशेष बनाती हैं। यहां की अद्भुत प्रतिमा और उसकी कहानी लोगों को प्रेरित करती है कि धर्म और अधर्म के बीच हमेशा एक विकल्प होता है।
यदि आप राजस्थान के कोटा जिले में हैं, तो विभीषण मंदिर का दौरा अवश्य करें और इसके अद्वितीय इतिहास और धार्मिक महत्व को अनुभव करें। यह एक ऐसा स्थान है, जहां आप न केवल अपने मन को शांति देंगे, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपराओं के अद्भुत पहलुओं से भी अवगत होंगे।