कुबेर: चोर से देवता बनने की अनोखी कहानी

0

हिंदू धर्म में कुबेर को धन और समृद्धि के देवता के रूप में माना जाता है, लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि उनका जीवन सफर साधारण, यहां तक कि नकारात्मक परिस्थितियों से शुरू हुआ। दरअसल, कुबेर का आरंभिक जीवन अभाव और गरीबी से भरा था, जिससे उन्हें अपराध की ओर बढ़ना पड़ा। आइए, जानते हैं कि कैसे गुणनिधि नाम का यह युवक चोर से देवता कुबेर बन गया।

कुबेर: चोर से देवता बनने की अनोखी कहानी
https://thenationtimes.in/wp-content/uploads/2024/10/image-2338.png

बचपन और गुणनिधि का जीवन

कुबेर का असली नाम गुणनिधि था। उनका जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था, जो गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहा था। इसी तंगी के कारण गुणनिधि ने चोरी का रास्ता अपनाया। वह एक कुशल चोर बन गया, जो आजीविका के लिए मंदिरों से चोरियां करने लगा। एक दिन उसने भगवान शिव के मंदिर में प्रवेश किया, जहां उसने मंदिर के रत्नों से आकर्षित होकर वहां दीया जलाया। इस घटना ने उसके जीवन की दिशा बदल दी। दीपक जलाने का उनका यह समर्पण भगवान शिव को प्रभावित कर गया, और उन्होंने गुणनिधि को आशीर्वाद दिया कि अगले जन्म में वह धन के देवता बनेंगे।

पुनर्जन्म में कुबेर बने धन के देवता

शिव के आशीर्वाद से गुणनिधि का पुनर्जन्म एक विशेष परिवार में हुआ। उनके पिता ऋषि विश्रवा थे, जो विद्वान और शक्तिशाली थे, और मां इल्लविदा, जिससे कुबेर का जन्म ऋषियों के कुल में हुआ। इस जन्म के साथ ही गुणनिधि कुबेर बने और धीरे-धीरे धन के देवता का दर्जा प्राप्त किया। उनका बड़ा घर, अलकापुरी, अब असीमित वैभव और भंडारों का केंद्र बन गया।

रावण और कुबेर के जटिल संबंध

कुबेर का जन्म विश्रवा की पहली पत्नी से हुआ था, जबकि रावण उनकी दूसरी पत्नी, एक राक्षसी कैकसी से हुआ था। कुबेर का सौतेला भाई रावण अपनी शक्ति और प्रभुत्व के लिए कुख्यात था। जब रावण ने लंका पर अपनी पकड़ बनानी चाही, तो उसने कुबेर को हराकर वहां से बाहर कर दिया और पुष्पक विमान पर भी कब्जा कर लिया। इसके बाद कुबेर ने कैलाश पर्वत के पास अलकापुरी में अपना निवास स्थापित किया और वहां से यक्षों और धन-वैभव का संरक्षण करने लगे। रावण और कुबेर के बीच यह संबंध हमेशा कठिनाइयों और तनाव से भरा रहा।

image 2339

कुबेर का स्वरूप और प्रतीकात्मकता

कुबेर का स्वरूप भी अपने आप में अनोखा है और उनके व्यक्तित्व की जटिलताओं को दर्शाता है। उन्हें आमतौर पर मोटे पेट और कई बार तीन पैरों, आठ दांतों और एक आंख के साथ चित्रित किया जाता है। ये प्रतीक उनके जीवन की महत्वपूर्ण कहानियों और चरित्र के विभिन्न पहलुओं को उजागर करते हैं।

  1. तीन पैर: कुबेर के तीन पैर मानव की इच्छाओं का प्रतीक माने जाते हैं। ये इच्छाएं धन, संतान, और प्रसिद्धि से जुड़ी हुई हैं, जो हर व्यक्ति की आकांक्षाओं का आधार होती हैं। उनके तीन पैरों की एक अन्य व्याख्या भी है, जिसमें उन्हें विष्णु के तीन कदमों से जोड़कर देखा जाता है, जो ब्रह्मांड के संतुलन और नियंत्रण का प्रतीक हैं।
  2. आठ दांत: कुबेर के आठ दांत समृद्धि के आठ रूपों, जिसे अष्ट लक्ष्मी कहा जाता है, का प्रतीक माने जाते हैं। ये आठ दांत उन्हें समृद्धि और धन का संरक्षक बनाते हैं, जो कि उनकी दिव्यता और उनके अद्वितीय स्थान का संकेत है।
  3. एक आंख: कुबेर के एक आंख होने के पीछे पार्वती द्वारा दिया गया एक श्राप है। कथा के अनुसार, जब उन्होंने पार्वती को भगवान शिव की गोद में बैठे देखा, तो उनकी नजर वासना और ईर्ष्या से भर गई। इस असंयमित दृष्टिकोण से नाराज होकर पार्वती ने उन्हें श्राप दिया, जिससे उनकी एक आंख चली गई। इस घटना से यह संदेश मिलता है कि अनुचित इच्छाओं और ईर्ष्या का परिणाम हमेशा गंभीर होता है।

कुबेर का बड़ा पेट और उसका महत्व

कुबेर को अक्सर एक बड़े पेट वाले व्यक्ति के रूप में दिखाया जाता है। उनके बड़े पेट को भौतिक सुख और समृद्धि का प्रतीक माना गया है। कई संस्कृतियों में बड़े पेट को समृद्धि का संकेत माना जाता है, जो कुबेर के असीम वैभव और संपत्ति का प्रतीक है।

कुबेर: दिक्पाल और जल के संरक्षक

कुबेर को दिशाओं के आठ संरक्षकों में से एक माना जाता है, जो विशेष रूप से उत्तर दिशा की देखरेख करते हैं। उन्हें नदियों और समुद्रों के स्वामी के रूप में भी जाना जाता है, जो जल की समृद्धि और उर्वरता का प्रतिनिधित्व करते हैं। जल जीवन का प्रतीक है, और कुबेर इसे संरक्षित करके समृद्धि का प्रतीक बनते हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार, कुबेर ने कावेरी और नर्मदा नदियों के संगम पर तपस्या की थी, जो उनकी तपस्या के परिणामस्वरूप समृद्धि और धन-वैभव के देवता बनने का एक महत्वपूर्ण चरण बना।

image 2340

कुबेर का मंत्र और पूजा विधि

धनतेरस के अवसर पर कुबेर की पूजा करने से विशेष आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। कुबेर के प्रसन्न करने के लिए एक लोकप्रिय मंत्र है: “ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं महालक्ष्मी धनदा लक्ष्मी”
इसके माध्यम से कुबेर की कृपा से व्यक्ति के जीवन में धन, वैभव और सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है।

कुबेर की पूजा में सामग्री

कुबेर की पूजा में आमतौर पर नई मूर्ति, पुष्प, अक्षत्, दीपक, कपूर, और नैवेद्य का प्रयोग होता है। पूजा के समय कुबेर को सफेद मिठाई, खीर, मोदक आदि का भोग लगाया जाता है। इसके अलावा, कुबेर यंत्र की पूजा भी धन-संपत्ति में वृद्धि करने का महत्वपूर्ण माध्यम माना जाता है।

कुबेर की कहानी चोर से धन के देवता बनने तक की अद्भुत यात्रा को दर्शाती है। उनके जीवन के घटनाक्रम प्रेरणा देते हैं कि किस प्रकार अच्छे कर्म, भक्ति, और आंतरिक बदलाव के साथ जीवन की दिशा पूरी तरह से बदली जा सकती है। कुबेर का यह जीवन परिवर्तन हमें बताता है कि जो ईश्वर में आस्था और कठोर साधना के साथ अपने जीवन का मार्ग चुनता है, वह सफलता और समृद्धि के चरम तक पहुंच सकता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here