ओम पुरी: बर्तन धोते हुए बीता बचपन से लेकर भारतीय सिनेमा का नगीना बनने तक का सफर

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ओम पुरी, भारतीय सिनेमा के एक ऐसे अभिनेता थे जिन्होंने न केवल बॉलीवुड में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपने अभिनय की गहरी छाप छोड़ी। उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा, लेकिन उनके जज्बे और अद्वितीय अभिनय ने उन्हें सिनेमा का अनमोल नगीना बना दिया। अगर वे आज ज़िंदा होते, तो उनकी उम्र 73 साल होती, लेकिन उनके योगदान को भारतीय और अंतरराष्ट्रीय सिनेमा में आज भी याद किया जाता है।

ओम पुरी: बर्तन धोते हुए बीता बचपन से लेकर भारतीय सिनेमा का नगीना बनने तक का सफर
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बचपन के संघर्ष: एक विनम्र शुरुआत

ओम पुरी का जन्म 18 अक्टूबर 1950 को पंजाब के अंबाला शहर में हुआ था। उनके पिता भारतीय रेलवे में कार्यरत थे, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। मात्र 6 साल की उम्र में ओम पुरी को बर्तन धोने का काम करना पड़ा था ताकि परिवार की आर्थिक मदद हो सके। ये शुरुआती संघर्ष उनके जीवन की दिशा को बदलने वाले थे। बचपन के इन कठिन दिनों ने उनके भीतर एक ऐसा साहस और दृढ़ता पैदा की, जिसने उन्हें जीवन में कभी हार नहीं मानने दिया। उनका साधारण चेहरा और गरीबी की मार ने उन्हें कई बार समाज में हीन भावना से घेर लिया, लेकिन ओम पुरी ने इन चुनौतियों को अपने हौसले से मात दी।

नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा: अभिनय का जुनून

ओम पुरी के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) में दाखिला लिया। उनका NSD में दाखिला उनके अभिनय के जुनून और कड़ी मेहनत का परिणाम था। हालांकि, उनकी कद-काठी और चेहरा हीरो जैसे नहीं थे, लेकिन उनका अभिनय किसी भी कमी को छिपा देता था। खुद ओम पुरी ने एक बार बताया था कि एक्ट्रेस शबाना आज़मी ने उन्हें बदशक्ल कहकर उनके एक्टर बनने के सपने पर सवाल उठाए थे। लेकिन इस आलोचना ने उन्हें और अधिक प्रेरित किया, और उन्होंने इसे एक चुनौती के रूप में लिया।

NSD में उनकी मुलाकात नसीरुद्दीन शाह से हुई, जो उनके सबसे करीबी दोस्तों में से एक बने। दोनों ने एक साथ कई फिल्मों में काम किया और ओम पुरी ने नसीरुद्दीन शाह से मांसाहारी भोजन करना भी सीखा। ओम पुरी और नसीरुद्दीन शाह की दोस्ती और उनका साथ सिनेमा के उन दौर की याद दिलाता है जब अभिनय का असली अर्थ समझा जाता था।

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फिल्मी करियर की शुरुआत: घासीराम कोतवाल से पहचान तक

ओम पुरी ने अपने करियर की शुरुआत 1976 में आई मराठी फिल्म ‘घासीराम कोतवाल’ से की थी। हालांकि, उन्हें असली पहचान 1983 में आई फिल्म ‘अर्ध सत्य’ से मिली। गोविंद निहलानी द्वारा निर्देशित इस फिल्म ने ओम पुरी को भारतीय सिनेमा के पटल पर एक सशक्त अभिनेता के रूप में स्थापित किया। फिल्म में उनकी भूमिका एक पुलिस अधिकारी की थी, जिसने उनके अभिनय के कई आयामों को दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया।

इसके बाद, ओम पुरी ने ‘आक्रोश’, ‘स्पर्श’, ‘द्रोह काल’, और ‘जाने भी दो यारों’ जैसी फिल्मों में अपनी कला का प्रदर्शन किया। हर फिल्म में ओम पुरी ने एक अलग ही किरदार निभाया, और उनके अभिनय की विविधता और गहराई ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। वे न सिर्फ मुख्यधारा के सिनेमा में बल्कि कला सिनेमा (Parallel Cinema) में भी अपने अभिनय का लोहा मनवाते रहे।

हीन भावना और आत्म-सुधार की कहानी

ओम पुरी के जीवन का एक और महत्वपूर्ण हिस्सा उनकी हीन भावना और आत्म-सुधार की कहानी है। NSD में उनके दोस्त नसीरुद्दीन शाह जहां एक कॉन्वेंट स्कूल से पढ़े थे, वहीं ओम पुरी ने एक पंजाबी स्कूल से शिक्षा प्राप्त की थी। यह अंतर उन्हें अक्सर असहज महसूस कराता था, लेकिन उनके गुरु कैदी साहब ने उन्हें इस कमी को सुधारने का तरीका बताया। उन्होंने ओम पुरी को अपनी भाषा और संवाद कौशल पर काम करने के लिए प्रेरित किया, जिससे ओम पुरी ने अपने अभिनय और व्यक्तिगत जीवन में भी गहरी सफलता प्राप्त की।

अंतरराष्ट्रीय करियर: अंग्रेजी फिल्मों में भी चमके ओम पुरी

ओम पुरी का करियर केवल भारतीय फिल्मों तक ही सीमित नहीं रहा। 1990 के दशक में उन्होंने ‘माई सन द फैनेटिक’, ‘ईस्ट इज ईस्ट’, और ‘द पैरोल ऑफिसर’ जैसी ब्रिटिश फिल्मों में भी काम किया। इन फिल्मों के माध्यम से उन्होंने अंतरराष्ट्रीय दर्शकों के बीच भी अपनी पहचान बनाई। उनकी प्रतिभा ने उन्हें हॉलीवुड में भी एक खास मुकाम दिलाया। ओम पुरी ने कुल 20 से अधिक अंग्रेजी फिल्मों में काम किया और उन्होंने अपने अभिनय से यह साबित कर दिया कि सिनेमा की भाषा कोई भी हो, कला का जादू सरहदों से परे होता है।

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निधन और विरासत: 66 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा

2017 में, जब ओम पुरी का 66 साल की उम्र में निधन हुआ, भारतीय सिनेमा को एक बड़ा झटका लगा। उनकी मृत्यु के बाद कई सवाल उठे क्योंकि उनकी मृत देह संदिग्ध हालत में मिली थी। लेकिन उनके योगदान को देखते हुए, उनके निधन के बाद भी लोग उन्हें याद करते रहे। उन्होंने जो विरासत छोड़ी, वह सिर्फ फिल्मों तक सीमित नहीं रही, बल्कि उनकी संघर्षपूर्ण कहानी ने लाखों लोगों को प्रेरित किया।

निष्कर्ष: सिनेमा का अनमोल नगीना

ओम पुरी का जीवन यह संदेश देता है कि साधारण से साधारण व्यक्ति भी असाधारण बन सकता है, यदि उसके पास साहस, धैर्य और खुद पर विश्वास हो। उनकी संघर्ष की कहानी और अद्वितीय अभिनय प्रतिभा उन्हें सिनेमा का नगीना बनाती है। आज भी जब हम उनकी फिल्मों को देखते हैं, तो उनका अभिनय एक नए अनुभव का अहसास कराता है। चाहे वह ‘अर्ध सत्य’ का कठोर पुलिस अधिकारी हो या ‘जाने भी दो यारों’ का हास्य किरदार, ओम पुरी ने हर भूमिका को जी-जान से निभाया और अपने हर किरदार में जान फूंक दी।

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