भारत में अंधेपन का बढ़ता संकट: एक गंभीर चिंता

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आंखें मानव शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग हैं। उनकी रोशनी खोने का विचार ही किसी के लिए भी डरावना हो सकता है। हालाँकि, भारत में लाखों लोगों की आंखों पर अंधेपन का खतरा मंडरा रहा है। विशेषज्ञों की चेतावनी के अनुसार, अगर स्थिति में सुधार नहीं हुआ, तो आने वाले कुछ वर्षों में बड़ी संख्या में लोग अंधे हो सकते हैं, भले ही आंखों की गंभीर बीमारियों का इलाज उपलब्ध हो।

भारत में अंधेपन का बढ़ता संकट: एक गंभीर चिंता
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स्थिति का आकलन

एलवी प्रसाद आई इंस्टीट्यूट के संस्थापक, डॉ. गुल्लापल्ली नागेश्वर राव ने हाल ही में इस मुद्दे पर चिंता व्यक्त की है। उनके अनुसार, भारत में कॉर्निया ट्रांसप्लांटेशन की कमी एक गंभीर समस्या बन गई है। हर साल लगभग एक लाख लोगों को कॉर्निया ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होती है, लेकिन स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की क्षमता केवल 30,000 ट्रांसप्लांट करने की है। इसका परिणाम यह है कि लगभग 70,000 लोग हर साल बिना ट्रांसप्लांट के अंधे होने के लिए मजबूर हो रहे हैं।

अंधेपन के प्रमुख कारण

आंखों की कई बीमारियां होती हैं, जो दृष्टि को प्रभावित कर सकती हैं। हालांकि, कॉर्निया ट्रांसप्लांट की कमी अंधेपन का एक प्रमुख कारण बनकर उभरी है। भारत में बढ़ती जनसंख्या और बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के चलते स्थिति और गंभीर होती जा रही है। डॉ. राव के अनुसार, अगर यह समस्या नहीं सुलझाई गई, तो भारत में अंधे लोगों की संख्या तेजी से बढ़ेगी।

भविष्य की योजनाएँ

डॉ. राव ने बताया कि भारत को इस समस्या का समाधान करने के लिए गंभीर प्रयास करने होंगे। उनका सुझाव है कि 2030 तक कॉर्निया ट्रांसप्लांट की क्षमता को 30,000 से बढ़ाकर कम से कम 60,000 किया जाना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि कम से कम 50 आई बैंक खोले जाएं, जो अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करते हों। साथ ही, 500 ऑप्थेल्मिक सर्जनों को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। यह कदम अंधेपन की दर को कम करने में सहायक हो सकते हैं।

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एलवी प्रसाद आई इंस्टीट्यूट की उपलब्धियां

हाल ही में, एलवी प्रसाद आई इंस्टीट्यूट ने 50,000 कॉर्निया ट्रांसप्लांट का रिकॉर्ड बनाया है, जिसमें से 50 प्रतिशत ट्रांसप्लांट पूरी तरह मुफ्त किए गए हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि सही दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। फिर भी, यह संख्या देश की जरूरतों को देखते हुए बहुत कम है।

जागरूकता और शिक्षा का महत्व

अंधेपन की इस समस्या का समाधान केवल चिकित्सा से नहीं किया जा सकता। इसके लिए जागरूकता और शिक्षा का भी महत्वपूर्ण योगदान है। लोगों को आंखों की सेहत के प्रति जागरूक करना और नियमित आंखों की जांच कराना आवश्यक है। इससे न केवल समस्या की पहचान जल्दी हो सकेगी, बल्कि लोगों को समय पर इलाज मिल सकेगा।

समुदाय की भागीदारी

अंधेपन के इस संकट से निपटने के लिए समुदाय की भागीदारी भी आवश्यक है। स्कूलों, कॉलेजों, और स्थानीय संगठनों को इस दिशा में कदम उठाना चाहिए। आंखों की जांच शिविर आयोजित करना, जानकारी बांटना, और लोगों को सिखाना कि वे अपनी आंखों की सेहत का कैसे ध्यान रखें, यह सभी उपाय महत्वपूर्ण हैं।

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सरकारी पहल

सरकार को भी इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार लाने के लिए नीतियों में परिवर्तन करना होगा। अंधेपन की दर को कम करने के लिए ठोस योजनाओं का निर्माण करना और उनकी कार्यान्वयन सुनिश्चित करना आवश्यक है।

भारत में अंधेपन का बढ़ता संकट एक गंभीर चिंता का विषय है। यदि इस दिशा में कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में लाखों लोग अंधे हो सकते हैं। लेकिन अगर हम सभी, सरकार, स्वास्थ्य विशेषज्ञ और समुदाय मिलकर इस समस्या का समाधान करने का प्रयास करें, तो हम इस समस्या को नियंत्रित कर सकते हैं। अंधेपन की रोकथाम के लिए जागरूकता, शिक्षा और चिकित्सा सेवाओं का समुचित संयोजन आवश्यक है।

आखिरकार, आंखों की रोशनी ही जीवन का एक अनमोल हिस्सा है, और इसे बचाने के लिए हमें सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता है।

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