मुंबई बेस्ड क्राइम-थ्रिलर सीरीज: ‘सिटी ऑफ ड्रीम्स’ की राजनीति और सत्ता की जंग

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मुंबई, एक ऐसा शहर जो कभी सोता नहीं, जो सपनों को साकार करने के लिए जाना जाता है, लेकिन इस शहर के अंधेरे कोनों में छिपी राजनीति, अपराध, और सत्ता की भूख की कहानी कुछ और ही बयां करती है। 2019 में डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर आई वेब सीरीज ‘सिटी ऑफ ड्रीम्स’ ने इन्हीं तत्वों को उजागर करते हुए दर्शकों को एक ऐसी दुनिया में ले गई जहाँ सत्ता, लालच और बदले की जंग ने एक परिवार को बर्बाद कर दिया। इस सीरीज ने अपराध और सस्पेंस की दुनिया में एक नया आयाम जोड़ा, और इसके तीनों सीजन दर्शकों के बीच एक गहरी छाप छोड़ने में कामयाब रहे।

मुंबई बेस्ड क्राइम-थ्रिलर सीरीज: 'सिटी ऑफ ड्रीम्स' की राजनीति और सत्ता की जंग
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पृष्ठभूमि: सत्ता के खेल की शुरुआत

‘सिटी ऑफ ड्रीम्स’ की कहानी महाराष्ट्र की राजनीतिक पृष्ठभूमि पर आधारित है। यह कहानी एक बड़े राजनीतिक परिवार से शुरू होती है, जहाँ सत्ता की लालच में रिश्ते तार-तार होते दिखाए जाते हैं। जब राज्य के मुख्यमंत्री पर एक दिन गोलियों की बरसात होती है, तो उनके परिवार की शांति भंग हो जाती है। मुख्यमंत्री, अमे गायकवाड़ (अतुल कुलकर्णी) पर जानलेवा हमला किया जाता है, जिसके बाद वह कोमा में चले जाते हैं। मुख्यमंत्री का बेड पर पड़ा होना सिर्फ एक मेडिकल समस्या नहीं, बल्कि यह उनके राजनीतिक साम्राज्य के लिए एक बड़ा झटका होता है। यहीं से कहानी में ट्विस्ट आता है जब उनके बेटे और बेटी के बीच उनकी विरासत और सत्ता के लिए लड़ाई छिड़ जाती है।

भाई-बहन की सत्ता की जंग

मुख्यमंत्री के कोमा में जाने के बाद उनकी विरासत पर कब्जा करने के लिए उनके बेटे अशोक राव गायकवाड़ और बेटी पूर्णिमा गायकवाड़ (प्रिया बापट) के बीच संघर्ष शुरू हो जाता है। भाई-बहन के इस युद्ध ने सीरीज को एक दमदार और दिलचस्प मोड़ दिया। अशोक को राजनीति का कोई खास अनुभव नहीं है, लेकिन वह सत्ता की चाहत में अंधा हो चुका है। वहीं, पूर्णिमा गायकवाड़ एक होशियार और महत्वाकांक्षी महिला है, जो किसी भी कीमत पर सत्ता हासिल करना चाहती है।

इस भाई-बहन के संघर्ष में सबसे बड़ा ट्विस्ट तब आता है, जब पूर्णिमा अपने ही भाई अशोक को मरवा देती है। यह मोमेंट दर्शकों के दिलों में गहरी छाप छोड़ता है। यहाँ से सीरीज में सस्पेंस और इमोशन की गहराई और बढ़ जाती है। इस बिंदु पर दर्शक सोच में पड़ जाते हैं कि क्या सत्ता की भूख इतनी बड़ी हो सकती है कि एक बहन अपने ही भाई की जान ले ले?

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पिता-बेटी की रंजिश

जब अमे गायकवाड़ को अपने बेटे की हत्या की सच्चाई पता चलती है, तो वह अपनी बेटी के खिलाफ हो जाते हैं। सीरीज का दूसरा सीजन पूरी तरह से पिता-बेटी के बीच के इस संघर्ष पर केंद्रित है। अमे गायकवाड़ अपनी बेटी के इस विश्वासघात से टूट जाते हैं, और वह अपनी ही बेटी को मिटाने के लिए युद्ध छेड़ देते हैं। इस सीजन में दर्शक सत्ता और व्यक्तिगत भावनाओं के बीच की टकराहट को देख सकते हैं। एक तरफ एक पिता का गुस्सा और दुख है, जो अपने बेटे को खो चुका है, वहीं दूसरी ओर एक बेटी की सत्ता की लालसा, जिसने अपने भाई को मारने में संकोच नहीं किया।

इस टकराव ने दूसरे सीजन को बेहद रोमांचक बना दिया। राजनीति में नैतिकता का सवाल उठता है, और यह दिखाया जाता है कि जब सत्ता की बात आती है, तो रिश्ते और भावनाएँ भी पीछे छूट जाती हैं। सीजन में कई पल ऐसे आते हैं जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि क्या सत्ता की चाहत वास्तव में इंसान को इस हद तक गिरा सकती है?

समाप्ति: हाथ मिलाकर सत्ता की साझेदारी

तीसरे सीजन में कहानी एक और नया मोड़ लेती है। पिता-बेटी के बीच की दुश्मनी खत्म होती है, और वे दोनों हाथ मिलाकर मुंबई पर राज करने की ठान लेते हैं। यह एक चौंकाने वाला पल है, जहाँ एक बार फिर सत्ता की भूख रिश्तों पर भारी पड़ जाती है। तीसरा सीजन दर्शाता है कि कैसे सत्ता के लिए सब कुछ माफ हो सकता है, यहां तक कि अपने ही खून की हत्या भी।

तीसरे सीजन में दिखाया जाता है कि अब अमे और पूर्णिमा गायकवाड़ दोनों ही मिलकर मुंबई के राजनीतिक और अपराध जगत पर कब्जा जमाने के लिए काम करते हैं। दोनों ने अब अपनी व्यक्तिगत दुश्मनी को भुलाकर एक साथ काम करने का फैसला किया है। यह नया गठबंधन दर्शकों के लिए चौंकाने वाला और साथ ही रोमांचक भी था। सीरीज का यह मोड़ दर्शाता है कि राजनीति में कोई स्थायी दुश्मन या दोस्त नहीं होता, बस सत्ता ही सबसे बड़ी चीज होती है।

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शानदार अभिनय और दमदार निर्देशन

‘सिटी ऑफ ड्रीम्स’ को उसकी कहानी के अलावा उसके अद्भुत कलाकारों के कारण भी सराहा गया। प्रिया बापट ने पूर्णिमा गायकवाड़ के किरदार में बेहतरीन प्रदर्शन किया। एक महत्वाकांक्षी, ताकतवर, और निर्दयी महिला के रूप में उनका अभिनय सराहनीय है। अतुल कुलकर्णी ने मुख्यमंत्री अमे गायकवाड़ के किरदार में जान डाल दी। उनके चेहरे पर दिखने वाली निराशा, क्रोध, और अंत में सत्ता की साझेदारी के लिए दिखने वाला दृढ़ संकल्प सब कुछ शानदार था।

सचिन पिलगांवकर, एजाज खान, और सुशांत सिंह जैसे अदाकारों ने भी अपनी भूमिकाओं में गहराई से जान फूंकी। इस सीरीज का निर्देशन निखिल आडवाणी द्वारा किया गया था, जिन्होंने हर एपिसोड को एक थ्रिलर की तरह पेश किया, जहाँ दर्शक कुर्सी से चिपके रहते हैं और हर पल नए मोड़ का इंतजार करते हैं।

IMDB रेटिंग और सफलता

‘सिटी ऑफ ड्रीम्स’ ने दर्शकों और आलोचकों दोनों से ही सकारात्मक प्रतिक्रियाएँ हासिल कीं। इस सीरीज को IMDB पर 7.7/10 की रेटिंग मिली है, जो इसकी सफलता का प्रमाण है। तीनों सीजन को एक-एक करके देखने पर यह समझ आता है कि क्यों यह सीरीज क्राइम, राजनीति, और सस्पेंस के शौकीनों के बीच इतनी लोकप्रिय हुई।

‘सिटी ऑफ ड्रीम्स’ सिर्फ एक क्राइम थ्रिलर नहीं है, यह सत्ता की भूख, रिश्तों की जटिलताओं, और नैतिकता के पतन की कहानी है। इस सीरीज ने दर्शकों को यह दिखाया कि राजनीति में न कोई स्थायी दुश्मन होता है, न ही दोस्त। सत्ता के लिए इंसान अपने खून के रिश्तों तक को भुला सकता है। अगर आपने अब तक ‘सिटी ऑफ ड्रीम्स’ नहीं देखी है, तो यह सीरीज आपके वॉचलिस्ट में जरूर होनी चाहिए।

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