सहारनपुर, उत्तर प्रदेश, में दशहरा पर्व न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी है। इस पर्व के दौरान, विशेष रूप से हनुमान जी के प्रति लोगों की श्रद्धा और भक्ति देखने को मिलती है। सहारनपुर में मनाए जाने वाले दशहरा समारोह में एक अनोखी परंपरा देखने को मिलती है, जिसमें हनुमान जी का स्वरूप धारण करने वाले युवक 40 दिनों तक एक तपस्वी जीवन जीते हैं। इस लेख में हम इसी अद्भुत परंपरा के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करेंगे।
हनुमान जी का स्वरूप धारण
सहारनपुर में दशहरा पर्व के पूर्व, हनुमान जी का स्वरूप धारण करने वाला युवक 40 दिनों तक ब्रह्मचारी बनकर साधना करता है। यह युवक एक समय का भोजन करता है और दिन-रात हनुमान जी की आराधना करता है। यह तपस्या केवल शारीरिक रूप से ही नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक रूप से भी उन्हें सशक्त बनाती है। ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए, वे अपने शरीर और मन को साधना में लगाते हैं, जिससे उन्हें हनुमान जी का स्वरूप धारण करने की शक्ति मिलती है।
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30 किलो का मुकुट
इस परंपरा का एक और खास पहलू है हनुमान जी का विशाल मुकुट। हनुमान जी का स्वरूप धारण करने वाले युवक को 25 से 30 किलो का मुकुट पहनना होता है, जिसकी ऊँचाई 10 से 15 फीट होती है। यह मुकुट केवल एक प्रतीक नहीं है, बल्कि यह उनके अद्भुत साहस और भक्ति का प्रतीक है। जब युवक यह मुकुट धारण करता है, तो वह न केवल हनुमान जी का स्वरूप धारण करता है, बल्कि शहरवासियों के लिए एक प्रेरणा भी बन जाता है।
शोभायात्रा का आयोजन
दशहरा पर्व के दौरान, हनुमान जी की शोभायात्रा पूरे क्षेत्र में निकाली जाती है। इस शोभायात्रा को ढोल-नगाड़ों और बैंड-बाजों के साथ भव्यता से सजाया जाता है। तीन दिनों तक यह यात्रा चलती है, जिसमें हनुमान जी का स्वरूप धारण करने वाले युवक श्रद्धालुओं से भरे वातावरण में घूमते हैं। लोग उनके सामने आकर पूजा-अर्चना करते हैं और उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं।
त्रिशूल और बम का जलना
हनुमान जी की शोभायात्रा में एक और अनोखा तत्व होता है – मुकुट पर त्रिशूल में बम बांधकर जलाया जाना। यह दृश्य न केवल भव्य होता है, बल्कि इसमें धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी है। इसे एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है, जिससे दर्शकों में उल्लास और जोश भरा रहता है।
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मानवता की सेवा का संदेश
इस परंपरा का एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि यह मानवता की सेवा का संदेश देती है। हनुमान जी का स्वरूप धारण करने वाले युवक केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं हैं, बल्कि वे सेवा और समर्पण का भी प्रतीक हैं। वे न केवल अपनी साधना करते हैं, बल्कि समाज में जागरूकता फैलाते हैं और लोगों को एकजुट करते हैं।
बच्चों की भूमिका
इस शोभायात्रा में बच्चों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हनुमान जी का स्वरूप धारण करने वाले बच्चों को इस परंपरा का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित किया जाता है। इससे उनमें न केवल धार्मिक आस्था विकसित होती है, बल्कि वे सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों को भी समझते हैं।
राजकुमार त्यागी का योगदान
मानवीय कल्याण समिति के प्रधान राजकुमार त्यागी ने इस परंपरा को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने पिछले 5 वर्षों से हनुमान जी की विशाल शोभायात्रा का आयोजन किया है। उनका मानना है कि यह परंपरा केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह समाज को एकजुट करने का भी कार्य करती है।
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सांस्कृतिक महत्व
सहारनपुर में दशहरा पर्व का यह अनूठा स्वरूप न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की गहराई और विविधता को भी दर्शाता है। यह परंपरा न केवल भक्ति को प्रकट करती है, बल्कि यह स्थानीय समुदाय में एकता, प्रेम, और भाईचारे का संदेश भी देती है।
सहारनपुर में दशहरा पर्व की यह अद्भुत परंपरा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों को भी समेटे हुए है। हनुमान जी का स्वरूप धारण करने वाले युवक की तपस्या, उनकी भक्ति और समाज सेवा का संदेश इस पर्व को विशेष बनाता है। यह हमें यह सिखाता है कि यदि हम अपने मन और शरीर को सही दिशा में लगाते हैं, तो हम न केवल व्यक्तिगत स्तर पर, बल्कि सामूहिक स्तर पर भी बदलाव ला सकते हैं। सहारनपुर का दशहरा पर्व इस बात का प्रमाण है कि भक्ति और समर्पण का कोई विकल्प नहीं होता।
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