पारसी संस्कृति की अनोखी परंपराएँ: रतन टाटा और उनके पूर्वजों का आस्था का सफर

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पारसी संस्कृति की अनोखी परंपराएँ: पारसी समुदाय का इतिहास और संस्कृति एक गहन और दिलचस्प अध्याय है। भारत में पारसी धर्म के अनुयायी प्राचीन फारस से आए थे, जब उन्होंने इस्लामी साम्राज्य के बढ़ते खतरे से बचने के लिए गुजरात में शरण ली। उनकी धार्मिक मान्यताएँ और सांस्कृतिक परंपराएँ न केवल अद्वितीय हैं, बल्कि समर्पण, सम्मान और पर्यावरण के प्रति जागरूकता को भी दर्शाती हैं। रतन टाटा जैसे प्रतिष्ठित उद्योगपति इस संस्कृति के अद्वितीय उदाहरण हैं, जो पारसी परंपराओं को अपने जीवन में जीते हैं। आइए, हम पारसी धर्म की पांच प्रमुख परंपराओं के बारे में जानते हैं जो इसे विशिष्ट बनाती हैं।

पारसी संस्कृति की अनोखी परंपराएँ: रतन टाटा और उनके पूर्वजों का आस्था का सफर
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1. टॉवर ऑफ़ साइलेंस

पारसी धर्म में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया बेहद अनोखी है। पारसी मृतकों के शवों को “टॉवर ऑफ़ साइलेंस” या “दखमा” में रखा जाता है, जहां गिद्ध उन्हें खा जाते हैं। इस प्रथा का मुख्य कारण यह है कि पारसी लोग मानते हैं कि पृथ्वी, जल और अग्नि के तत्व पवित्र हैं। इसलिए, वे अपने मृतकों को दफनाने या जलाने के बजाय, उन्हें गिद्धों के सामने रखना बेहतर समझते हैं। शव को खुले में रखने से वह प्रकृति में वापस लौट जाता है, और यह गिद्धों के लिए भी पोषण का स्रोत बनता है। मुंबई में स्थित “डूंगरवाड़ी” ऐसा ही एक टॉवर है, जो इस परंपरा का पालन करता है।

2. नवजोत समारोह

पारसी धर्म में नवजोत समारोह एक बच्चे को धर्म में दीक्षा देने का महत्वपूर्ण समारोह है। इस समारोह के दौरान, बच्चे को एक पवित्र शर्ट (सुद्रेह) और एक डोरी (कुस्ती) पहनाई जाती है। यह प्रक्रिया समुदाय में उनके प्रवेश को दर्शाती है। नवजोत समारोह के दौरान, पारसी बच्चे प्रार्थना और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, जिससे उनके धर्म के प्रति जिम्मेदारियों की पुष्टि होती है। यह समारोह पारसी समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण सामाजिक और धार्मिक पहचान बनाता है।

3. शादी की अनोखी परंपराएँ

पारसी विवाह समारोह भी अपनी अनूठी रस्मों के लिए जाने जाते हैं। इनमें जोड़े को चादर से अलग करने की परंपरा शामिल है। शादी के दौरान एक रस्म होती है जिसमें दूल्हा-दुल्हन एक-दूसरे पर चावल फेंकते हैं, जो प्रभुत्व का प्रतीक माना जाता है। समारोह में शुद्धिकरण स्नान भी होता है, जो पारसी शादियों में हिंदू रीति-रिवाजों के साथ सांस्कृतिक मिश्रण को दर्शाता है। पारसी विवाह समारोह न केवल धार्मिक होते हैं, बल्कि यह समुदाय की सामाजिकता को भी मजबूत करते हैं।

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4. नवरोज़ का उत्सव

नवरोज़, या पारसी नव वर्ष, एक महत्वपूर्ण उत्सव है जो पारसी समुदाय में धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर परिवार एकत्र होते हैं, मिठाइयों का आदान-प्रदान करते हैं, और पारंपरिक पोशाक पहनते हैं। इस दिन “हफ़्त सिन” नामक एक विशेष मेज सजाई जाती है, जिसमें सात प्रतीकात्मक वस्तुएँ रखी जाती हैं, जो आने वाले वर्ष के लिए समृद्धि और स्वास्थ्य का प्रतीक होती हैं। नवरोज़ पारसी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो उनके मूल्यों और परंपराओं को जीवित रखता है।

5. चांदी का ‘सेस’

पारसी महिलाओं की एक अनोखी परंपरा है, जिसमें वे चांदी की प्लेट “सेस” लेकर चलती हैं, जिसमें विभिन्न अनुष्ठानिक वस्तुएँ होती हैं। यह प्लेट परिवार की एकता और ताकत का प्रतीक होती है, जिसमें आग, पानी, पौधे, और जानवरों के प्रतीक शामिल होते हैं। ये वस्तुएँ पारसी संस्कृति में प्रकृति और आध्यात्मिकता के प्रति गहरी जागरूकता को दर्शाती हैं। इसके अलावा, पारसी लोग जल स्रोतों को शुद्ध मानते हैं और इसलिए नदी और झरनों में नहाने से बचते हैं। वे अनुष्ठान के लिए पानी लेते हैं, ताकि वे प्राकृतिक जल स्रोतों को प्रदूषित न करें।

पारसी धर्म का भारतीय संदर्भ

पारसी धर्म का इतिहास और इसकी परंपराएँ न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरी मानवता के लिए महत्वपूर्ण हैं। रतन टाटा जैसे व्यक्तित्व इस बात के प्रमाण हैं कि पारसी समुदाय ने भारत में व्यवसाय और उद्योग में कैसे उत्कृष्टता हासिल की है। उनकी धार्मिक मान्यताएँ और परंपराएँ न केवल उन्हें एक अद्वितीय पहचान देती हैं, बल्कि समर्पण, सामुदायिकता और मानवता के प्रति प्रेम की भी सीख देती हैं।

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पारसी संस्कृति और धर्म एक समृद्ध विरासत है, जो अपने अद्वितीय रीति-रिवाजों और परंपराओं के माध्यम से दुनिया को एक महत्वपूर्ण संदेश देता है। पारसी समुदाय का इतिहास एक प्रेरणा है, जो बताता है कि किस प्रकार विश्वास और संस्कृति को जीवित रखा जा सकता है। पारसी धर्म की ये अनोखी परंपराएँ हमें यह सिखाती हैं कि कैसे प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाया जा सकता है और कैसे जीवन के अंतिम चरणों को भी सम्मान और गरिमा के साथ मनाया जा सकता है।

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