डाकुओं ने स्कूल का किया अपहरण: साहस की कहानी और एक अदम्य नायक

0
डाकुओं ने स्कूल का किया अपहरण: साहस की कहानी और एक अदम्य नायक
https://thenationtimes.in/wp-content/uploads/2024/09/image-384.png

एक भयावह घटना का आगाज़

70 के दशक में अपहरण, उत्तर प्रदेश के आगरा में डाकूओं का आतंक एक आम बात थी। उस समय इस क्षेत्र का बीहड़ इलाका डाकुओं का गढ़ बन चुका था। अजय राज शर्मा, जो उस समय अपर पुलिस अधीक्षक (ASP) थे, ने अपनी किताब बाइटिंग द बुलेट में इस भयावह घटना का जिक्र किया है, जिसने न केवल पुलिस प्रशासन को झकझोर दिया बल्कि पूरे समाज को भी हिलाकर रख दिया। यह कहानी उस समय की है जब 40 से 50 हथियारबंद डाकूओं ने एक स्कूल पर हमला कर दिया और वहां पढ़ने वाले 35 बच्चों के साथ-साथ टीचर्स को भी उठा ले गए।

अपहरण की जड़ें: जंगा और फूला गैंग

जैसे ही पुलिस को इस घटना की सूचना मिली, तुरंत ही आलम ये था कि सभी अधिकारी और पुलिस कर्मी चौंक गए। एसएसपी एसके शंगुल ने कहा कि उन्होंने अपने पूरे जीवन में ऐसी घटना नहीं सुनी। डाकूओं के इस कृत्य का कारण जानने के लिए जब जांच की गई, तो पता चला कि जंगा और फूला गैंग, जो चंबल का सबसे चर्चित गिरोह था, इस अपहरण के पीछे थे। फूला, जो राजस्थान का रहने वाला था, उत्तर प्रदेश में अपराध करता था और इस गिरोह के पास आधुनिक हथियार भी थे।

एक अदम्य साहस की कहानी: सब इंस्पेक्टर महाबीर सिंह

जब डाकू बच्चों को लेकर भाग रहे थे, उसी समय बस में एक सिपाही महाबीर सिंह ने साहस दिखाया। उन्होंने बस में सवारियों से कहा कि वे डाकुओं के सामने ना झुकें। महाबीर ने अपने जीवन को दांव पर लगाते हुए डाकुओं से भिड़ने की कोशिश की। लेकिन दुर्भाग्यवश, एक महिला डाकू ने उन्हें गोली मार दी। महाबीर की मौत ने इस घटना को और भी भयानक बना दिया और उनके साहस ने सभी को हिला दिया।

डाकूओं का उद्देश्य: एक पहेली

जब इस मामले की पूरी जांच की गई, तो यह स्पष्ट हुआ कि डाकूओं ने बच्चों का अपहरण इसलिए किया क्योंकि उन्हें एक विशेष बच्चे की पहचान नहीं हो पाई थी। इस प्रक्रिया में, उन्होंने सभी बच्चों को छोड़ दिया और सिर्फ उस बच्चे को रोका जिसके लिए उन्हें फिरौती वसूलनी थी। बाद में, उस बच्चे को भी छोड़ दिया गया जब फिरौती मिल गई।

साहस का प्रतीक: महाबीर सिंह

अजय राज शर्मा ने अपनी किताब में महाबीर सिंह की बहादुरी को सराहा। उन्होंने लिखा कि कैसे महाबीर ने अपनी जान की परवाह किए बिना डाकुओं का सामना किया। इस घटना ने अजय राज को झकझोर कर रख दिया और उनके दृष्टिकोण को बदल दिया। महाबीर का साहस उन्हें प्रेरित करने वाला बना और उन्होंने डाकुओं के खिलाफ सख्त कदम उठाने का निर्णय लिया।

ऑपरेशन चंबल घाटी: एक नई शुरुआत

महाबीर की हत्या के बाद, अजय राज को ऑपरेशन चंबल घाटी पर भेजा गया। यहां उन्होंने जंगा और फूला गैंग का सफाया करने का काम किया। उनके इस अभियान के बाद, उन्हें एसटीएफ की कमान सौंपी गई, जहाँ उन्होंने अपनी ताकत और रणनीति का प्रयोग किया। इस ऑपरेशन ने न केवल डाकुओं के आतंक को समाप्त किया बल्कि पूरे क्षेत्र में पुलिस प्रशासन का विश्वास भी बढ़ाया।

एक सच्ची प्रेरणा की कहानी

इस घटना ने न केवल पुलिस अधिकारियों को बल्कि समाज के हर तबके को यह एहसास दिलाया कि साहस और समर्पण का क्या महत्व होता है। महाबीर सिंह की कहानी एक प्रेरणा है कि कैसे एक व्यक्ति अपने जीवन की परवाह किए बिना दूसरों की सुरक्षा के लिए खड़ा हो सकता है।

इस प्रकार, अजय राज शर्मा की किताब बाइटिंग द बुलेट केवल एक कहानी नहीं है, बल्कि एक जीवित उदाहरण है कि कैसे कठिनाईयों के बावजूद साहस और निष्ठा के साथ लड़ाई जारी रखी जा सकती है। यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची बहादुरी कभी भी नकारात्मकता के सामने झुकती नहीं है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here