मानवाधिकारों का उल्लंघन: एक कश्मीरी कार्यकर्ता की आवाज
नई दिल्ली: हाल ही में जिनेवा में आयोजित यूएनएचआरसी के 57वें सत्र में बडगाम के कश्मीरी कार्यकर्ता जावेद बेग ने पाकिस्तान के गिलगित-बाल्टिस्तान में मानवाधिकारों के उल्लंघन का मुद्दा उठाया। यह पहला मौका था जब किसी भारतीय कार्यकर्ता ने इस मुद्दे को इतनी गंभीरता से उठाया। जावेद बेग ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस क्षेत्र में रहने वाले लोग गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन और अत्याचारों का सामना कर रहे हैं।
गिलगित-बाल्टिस्तान की दुर्दशा
जावेद ने कहा, “गिलगित-बाल्टिस्तान या POGB में लोगों की दुर्दशा बेहद परेशान करने वाली है।” उन्होंने यह भी बताया कि यह क्षेत्र पाकिस्तान के एकमात्र शिया और इस्माइली बहुल प्रशासनिक क्षेत्र के रूप में जाना जाता है, जहां स्थानीय आबादी को व्यापक भेदभाव और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। यहाँ पर जबरन गायब होने, न्यायेतर हत्याओं और मनमाने हिरासत के मामले अक्सर सामने आते हैं, जो अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए चिंता का विषय हैं।
पाकिस्तानी शासन का क्रूर दमन
जावेद बेग ने UNHRC में यह भी बताया कि हाल ही में POGB में विरोध प्रदर्शनों की बाढ़ आई है, जो स्थानीय लोगों के लिए अनुचित टैक्स और संसाधन दोहन के खिलाफ उठे थे। इन प्रदर्शनों का जवाब पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने क्रूर दमन के जरिए दिया। यह कार्रवाई न केवल विरोधियों को चुप कराने के लिए थी, बल्कि यह मानवाधिकारों के हनन के एक व्यापक पैटर्न को भी दर्शाती है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आवश्यक
जावेद ने UNHRC में गुहार लगाई कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को POGB में लोगों की पीड़ा को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा, “हमें पाकिस्तान से अपनी दमनकारी नीतियों को समाप्त करने, मानवाधिकारों के हनन के लिए जवाबदेही सुनिश्चित करने और अपने सभी नागरिकों की गरिमा और अधिकारों को बनाए रखने का आह्वान करना चाहिए।”
पाकिस्तान की असली तस्वीर
यह घटना इस बात को स्पष्ट करती है कि पाकिस्तान ने किस प्रकार अपने ही नागरिकों के खिलाफ दमनकारी नीतियों को लागू किया है। गिलगित-बाल्टिस्तान में स्थानीय लोग न केवल प्राकृतिक संसाधनों के लिए शोषण का शिकार हैं, बल्कि वे अपने मूल अधिकारों से भी वंचित हैं।
समाजिक आंदोलनों का महत्व
जावेद बेग की आवाज़ ने यह साबित कर दिया है कि स्थानीय लोग अब चुप नहीं रहेंगे। यह समाजिक आंदोलनों का समय है, जहाँ लोग अपनी आवाज़ उठाने के लिए एकजुट हो रहे हैं। उनके इस प्रयास से न केवल गिलगित-बाल्टिस्तान के लोगों की समस्या को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उजागर किया गया है, बल्कि यह एक संकेत भी है कि सच्चाई को छुपाया नहीं जा सकता।
गिलगित-बाल्टिस्तान के मुद्दे को UNHRC में उठाकर जावेद बेग ने यह साबित किया कि मानवाधिकारों का उल्लंघन किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय की जिम्मेदारी है कि वे इन मुद्दों को गंभीरता से लें और पाकिस्तान को उसके दमनकारी नीतियों के लिए जवाबदेह ठहराएं।
यह समय है जब हम सभी को एकजुट होकर मानवाधिकारों की रक्षा के लिए खड़े होना चाहिए। जब तक हम आवाज़ उठाने का साहस नहीं करेंगे, तब तक मानवाधिकारों का उल्लंघन जारी रहेगा। यह जिम्मेदारी हम सभी की है कि हम उन लोगों की आवाज़ बनें, जो अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं।
http://”पाकिस्तान की जुल्मों की दास्तान: UNHRC में खुला गिलगित-बाल्टिस्तान का सच”