बॉलीवुड के पहले विलेन: हीरालाल ठाकुर की अद्भुत कहानी

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बचपन से ही विलेन बनने की ख्वाहिश रखते थे यह एक्टर, हुए इतने फेमस की बने हिंदी सिनेमा के पहले खलनायक

‘राजा हरिश्चंद्र’ से शुरू हुआ हिंदी सिनेमा का सफर

हीरालाल ठाकुर: 1913 में दादा साहेब फाल्के की फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ ने हिंदी सिनेमा की शुरुआत की। इस फिल्म ने भारतीय सिनेमा की नींव रखी और फिल्मों का अर्थ बताया। उस दौर में साइलेंट फिल्मों का प्रचलन था, जिससे कई महान कलाकारों का जन्म हुआ, जिनमें से एक थे हीरालाल ठाकुर।

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हीरालाल ठाकुर का जन्म और बचपन

1912 में लाहौर में हीरालाल ठाकुर का जन्म हुआ था। उन्हें बचपन से ही नेगेटिव रोल्स पसंद आते थे। जब वे अपने माता-पिता के साथ रामलीला देखने गए, तो उन्हें रावण का किरदार राम से अधिक पसंद आया। यही रुचि ने उन्हें हिंदी सिनेमा का पहला विलेन बनाया।

फिल्मों में एंट्री और पहला ब्रेक

हीरालाल ठाकुर ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद फिल्मों में करियर बनाने का फैसला किया। 1929 में, उस समय के प्रसिद्ध प्रोड्यूसर AR Kardar ने हीरालाल को उनका पहला ब्रेक दिया। इस फिल्म का साइलेंट नाम था ‘सफदरजंग’। हीरालाल ने 1928 में फिल्मों में काम शुरू किया था और साइलेंट फिल्मों से ही अपना करियर शुरू किया था।

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नेगेटिव रोल्स का चुनाव

हीरालाल बचपन से ही नेगेटिव रोल्स में रुचि रखती थी। उन्हें बहुत छोटी उम्र में ही यह निर्णय लिया गया था कि वे एक एक्टर बनेंगे और हीरो की जगह विलेन का किरदार निभाएंगे। उनकी इसी इच्छा ने उन्हें हिंदी सिनेमा में पहला विलेन बनाया।

आगमन मुंबई और प्रसिद्धि

1949 में हीरालाल ने मुंबई में प्रसिद्ध निर्देशक भगवानदास से मुलाकात की। भगवान दास ने हीरालाल को कई फिल्मों में विलेन का किरदार निभाया। उन्होंने लगभग 250 फिल्मों में अपनी अदाकारी का जादू बिखेरा और 50 सालों तक फिल्मों में काम किया। पंजाबी, हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू भाषाओं में हीरालाल ने अपनी बहुमुखी प्रतिभा से दर्शकों का दिल जीता।

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पारिवारिक जीवन

1945 में मुंबई आने से पहले हीरालाल ने दर्पण रानी से शादी की थी। दर्पण रानी बेहद सुंदर थीं और इस विवाह से दोनों के पांच बेटे और एक बेटी हुए। उनका एक बेटा, इंदर ठाकुर, फिल्म ‘नदिया के पार’ में ओमकार की भूमिका में नजर आया।

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साइलेंट फिल्म युग

हीरालाल ठाकुर ने साइलेंट फिल्मों के दौर में अपनी छाप छोड़ी और हिंदी सिनेमा के पहले खलनायक के रूप में प्रसिद्धि पाई। उनका करियर 1928 में शुरू हुआ था और 1929 में ‘सफदरजंग’ फिल्म से पहली बार बड़े पर्दे पर आए। उस समय सिर्फ साइलेंट फिल्में रिलीज होती थीं और हीरालाल ने इन्हीं फिल्मों से अपना करियर शुरू किया था।

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दर्शकों की रुचि

हमने देखा है कि दर्शकों को हीरो की एंट्री से अधिक विलेन की एंट्री पसंद आती है। हर नई फिल्म में लोग चाहते हैं कि आखिर कौन विलेन बनेगा। हीरो को बेहतरीन तरीके से पेश करने के अलावा, विलेन की एंट्री भी बेहतरीन होती है। हर युग में एक न एक विलेन ने अपनी अलग छाप छोड़ी है। हीरालाल ठाकुर भी हिंदी सिनेमा के पहले विलेन थे।

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बॉलीवुड में भागीदारी

हीरालाल ने लगभग 250 फिल्मों में काम किया और पांच दशक तक फिल्मों में अपनी अदाकारी का जादू बिखेरा। उनकी विविध प्रतिभा ने उन्हें हिंदी सिनेमा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना दिया। भारतीय सिनेमा के इतिहास में हीरालाल ठाकुर का योगदान अनमोल है और उनकी कहानी आज भी लोगों के दिलों में बसी हुई है।

हिंदी सिनेमा के पहले विलेन हीरालाल ठाकुर की कहानी बहुत प्रेरक है। उन्हें बचपन से ही विलेन बनने का सपना था, जो उन्होंने पूरा किया। उनकी अदाकारी ने उन्हें भारतीय सिनेमा का एक आइकॉन बना दिया। सिनेमा प्रेमियों के दिलों में वे हमेशा जीवित रहेंगे और उनका योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।

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