किसी भी मुकाम तक पहुंचने में अनेक बाधाएं आती है. लेकिन अगर हौसला बुलंद हो और कुछ कर गुजरने की इच्छा हो तो सफलता कदम चूमती है. ऐसी बाधाओं को पार करके 25 वर्षीय सिमरन थोराट (Simran Thorat) ने सफलता की इबादत लिख डाली है. इस इबादत को लिखने में उनके सामने कई चुनौतियां आईं, लेकिन उसे दृढ़ता के साथ सामना किया और नतीजन यह रहा है कि आज सिमरन मर्चेंट नेवी ऑफिसर बन चुकी हैं. वह अपने जिले और गांव की पहली महिला मर्चेंट नेवी ऑफिसर हैं.
सिमरन थोराट (Simran Thorat) पुणे के पास इंदापुर तालुका गांव की रहने वाली हैं. वह अपने परिवार, गांव और जिले से मर्चेंट नेवी ऑफिसर बनने वाली पहली महिला के रूप में इतिहास के पन्ने में दर्ज हो चुकी है. उनके पिता ने सिमरन की शिक्षा के लिए अपनी सारी जमीन बेच दी थी. उनके माता-पिता, ब्रह्मदेव और आशा थोराट ने उन्हें अपरंपरागत करियर विकल्प पर पूरा समर्थन किया.
इस कॉलेज से की पढ़ाई
पुणे स्थित मैरीटाइम कॉलेज और नेवी ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में तीन साल के कोर्स की ट्यूशन का खर्च उठाने के लिए उनके पिता ने अपना तीन एकड़ खेत बेच दिया, जहां वे मक्का, गेहूं और गन्ना उगाते थे. इसके बाद कोई जमीन नहीं बची. उनके पिता ने इलेक्ट्रीशियन का काम करना शुरू कर दिया था. उनकी मां इंदापुर में स्थित फेरेरो रोचर चॉकलेट फैक्ट्री में नौकरी कर ली.
पहली महिला डेक कैडेट के रूप में हुई नियुक्त
सिमरन की स्कूली शिक्षा मराठी मीडियम से हुई थी. इसके बाद अंग्रेजी मीडियम में पढ़ाई करने में कई शैक्षिक चुनौतियां भी आई. उनके भाई शुभम भी एक जापानी शिपिंग कंपनी में थर्ड इंजीनियर रहे हैं, जो उनका पूरा समर्थन किया. सिमरन को अपनी पहली महिला डेक कैडेट के रूप में नियुक्त किया गया. यह अंग्रेजी में उसकी एफिशिएंसी की कमी की वजह से कंपनियों में प्लेसमेंट के दौरान शुरुआत में काफी असफलताओं का सामना करना पड़ा.
सिमरन अब अपने चौथे जहाज में थर्ड ऑफिसर के रूप में शामिल होने की तैयारी कर रही हैं. उन्हें समुद्री लुटेरे या संघर्ष के खतरों से कोई फर्क नहीं पड़ता. वह अपने आपातकालीन ट्रेनिंग पर भरोसा करती है. वह जैसे-जैसे अपने करियर में आगे बढ़ रही है, वह अपने भाई के साथ अपने माता-पिता के लिए खेत का एक टुकड़ा खरीदने के लिए प्रतिबद्ध है.