Officers scared of going to Rattewali, police vehicles parked five and seven kilometers away, people in the village do not leave the house when called | रत्तेवाली में जाने से डर रहे अफसर, पुलिस की गाड़ियां पांच और सात किलोमीटर दूर खड़ी, गांव में लोग बुलाने पर नहीं निकलते घर से बाहर

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पंचकूला11 घंटे पहले

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  • गांव में सन्नाटा, लोग इस विवाद में नहीं पड़ना चाहते
  • एसीपी को गांववालों ने दूर से ही हाथ हिलाकर भेज दिया वापस

(अमित शर्मा) बरवाला के गांव रत्तेवाली में माइनिंग साइट को लेकर विवाद सुलझा नहीं है। मंगलवार को यहां पुलिस और लोगों के बीच झड़प भी हुई थी। पुलिस ने दो केस दर्ज कर कुछ आरोपियों को गिरफ्तार किया है, जबकि बाकियों की तलाश की जा रही है। वीरवार को भास्कर की टीम रत्तेवाली पहुंची।

गांव में सन्नाटा पसरा हुआ था। बार-बार बुलाने के बाद ही लोग मुश्किल से घरों से बाहर आ रहे थे। वहीं, प्रशासनिक अधिकारी भी यहां जाने से डर रहे हैं। अधिकारियों ने बुधवार रात को रत्तेवाली में पुलिस पहरे में मीटिंग की, लेकिन वीरवार को कोई नहीं आया। पुलिस भी गांव से दूर खड़ी है।

पुलिसकर्मी आदेशों का करते रहे इंतजार
पंचकूला से रत्तेवाली जाने पर पहले मट्‌टावाला आता है। यहां पर पुलिस की एक बस खड़ी है। एसीपी, एसएचओ चंडीमंदिर की वीरवार सुबह से ही यहां ड्यूटी है। इसी रूट पर यहां से 4 किलोमीटर की दूरी पर और रत्तेवाली से पांच किलोमीटर पहले टोका गांव में मेन रोड पर पुलिस की एक बस, कई टवेरा गाड़ियां खड़ी हैं। पुलिसकर्मी सुबह से ही आला अधिकारियों के निर्देश का इंतजार कर रहे हैं।

धरनास्थल पर अब कोई नहीं, टेंट खाली
रत्तेवाली के साथ लगता खेतपुराली एरिया माइनिंग जोन है। यहां टिपर चलते रहते हैं, लेकिन इस विवाद के बाद से टिपर बंद हैं। गांव की एंट्री पर सड़क टूटी हुई है। जहां पहले मेन रोड के साथ बनी दुकानों पर लोग बैठे होते थे, वहां वीरवार को कोई भी नहीं बैठा था। धरनास्थल खाली था। टेंट खाली पड़ा था। पास ही में कुछ बुजुर्ग जरूर बैठे थे। ज्यादातर लोगों को इस धरने से मतलब ही नहीं है, वे रूटीन में काम पर जा रहे हैं।

अंदर की बातः विवाद की ये पांच बड़ी वजह
1. सारा मसला 10 प्रतिशत राशि को लेकर है, जो माइनिंग कंपनी की ओर से दी जानी चाहिए। क्योंेकि हर गांव में कुछ पंचायती जमीन होती है, जिस पर उस गांव के किसान अपना हक मानते हैं। अगर उस जमीन का रिकॉर्ड, रसद किसानों के नाम पर बोल रहा हो है तो उसके एवज में वे रुपए ले सकते हैं। जो साइट माइनिंग के लिए अलॉट है, उसके साथ ही पंचायती जमीन भी है। इसकी एवज में गांव के लोग उस जमीन की पेमेंट खुद चाहते हैं।

2.किसी भी माइनिंग कंपनी को साइट अलॉट होने के बाद सोशल वर्क के लिए एक रेशो के हिसाब से 10 प्रतिशत या उससे ज्यादा राशि खर्च करनी होती है। यह राशि उसी एरिया में खर्च करनी होती है।

3.जो डेवलपमेंट फंड माइनिंग कंपनी को प्रशासन के कहने पर खर्च करना होता है, उसके लिए प्रशासन एक एरिया तय करता है। यहां के लोग चाहते हैं काम पहले और सबसे ज्यादा उनके गांव में ही हो। 4.रत्तेवाली में दो ग्रुप हैं, जो एक-दूसरे के खिलाफ हैं। कुछ दिन पहले भी पंचायती जमीन को लेकर यहां झगड़ा हो गया था, जिसके बाद से दो ग्रुप बन गए। ग्रुपों की राजनीति के कारण भी विरोध को हवा मिल रही है।

5. खेतपुराली, रत्तेवाली एरिया में ही ज्यादातर अवैध माइनिंग होती है। अवैध माइनिंग स्थानीय निवासी ही करते हैं। जितने भी स्टोन क्रशर, स्क्रीनिंग प्लांट्स हैं, वहां पर भी ज्यादातर चोरी का मैटीरियल ही इस्तेमाल होता है। किसी भी प्लांट पर स्थानीय युवकों को नौकरी पर नहीं लगाया जाता। क्योंकि मालिकों को डर है कि जब चोरी करने वाले लोकल हैं तो उन्हें रोकने का काम स्थानीय युवक नहीं कर सकते। वहीं, यहां रहने वाले लोगों की मांग रहती है कि उनके गांववालों को नौकरी पर रखो।

गांववालों ने डीसी को लिखा- समझौते को तैयार

ये हमारी मांगें…

  • झगड़े की एफआईआर खत्म हो। लोगों को रिहा किया जाए।
  • माइनिंग कंपनी की ओर से 10 प्रतिशत राशि गांव के लोगों को दिलवाई जाए।
  • माइनिंग नियमानुसार की जाए।
  • कंपनी के माइनिंग काम में गांव के युवकों को नौकरी दी जाए।
  • गांव की सड़क की मरम्मत समय-समय पर करवाई जाए।

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