कोरोना वायरस का अस्तित्व अस्पष्ट, रहस्यमय और अप्रत्याशित है – मेधा, वैदिक ज्योतिषी, जयपुर समाचार हिंदी में

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कोरोना वायरस का अस्तित्व अस्पष्ट, रहस्यमय और अप्रत्याशित है - मेधा, वैदिक ज्योतिषी - जयपुर समाचार हिंदी में




जयपुर। कोरोना वायरस को लेकर वैदिक एस्ट्रोलॉजर मेधा का कहना है कि कहा, “वायरस,
एपिडेमिक्स और महामारी राहु-संबंधी हैं। इसका अस्तिस्व अस्पष्ट, रहस्यमय और
अप्रत्याशित है। अस्पष्ट समयरेखा के रूप में, चीजे नॉर्मल होने में और
कुछ राहत मिलने से पहले कम से कम एक वर्ष का समय लगने के आसार दिखाई दे रहे
हैं। यह हमारे जीवन के सभी पहलुओं को प्रभावित करेगा। सितंबर माह के अंत
तक हमें इस संबंध में सकारात्मक खबरें देखने को मिलेगी।”
मेधा रविवार को आईएएस लिटरेरी सोसाइटी के फेसबुक पेज पर लाइव चैट में
संबोधित कर रहीं थी। वे शासन सचिव, कला एवं संस्कृति विभाग, राजस्थान सरकार
और साहित्यिक सचिव, आईएएस एसोसिएशन, राजस्थान, मुग्धा सिन्हा के साथ चर्चा
कर रहीं थी।
उन्होंने कहा कि जीवन में बहुत कुछ ऐसा है जिससे हम अनजान होते हैं और ऐसी स्थिति का सामना होने पर हम भयभीत, भ्रमित और असुरक्षित रहते हैं। एस्ट्रोलॉजी किसी व्यक्ति को स्वयं को जानने और समझने में मदद करती है। यह बताती है कि मुश्किल स्थिति का सामना होने पर वह किस प्रकार से रिएक्ट करेगा। जब कोई स्वयं को बेहतर ढंग से समझ जाता है, तो वह दुनिया को भी बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। इस प्रकार एस्टोलॉजी किसी व्यक्ति के जीवन के लिए यूजर मैनुअल गाइड के समान है।
मेधा ने आगे कहा कि 28-29 की उम्र हमारे आसपास की दुनिया के बारे में अधिक परिपक्व और जागरूक बनने के संदर्भ में बेहद महत्वपूर्ण है। एस्ट्रोलॉजी में, व्यक्ति इस उम्र में वयस्क हो जाता है। मंगल जो एक्शन प्लेनेट है, वह 28 वर्ष की आयु में परिपक्व हो जाता है। जबकि, शनि जो कि अनुशासन का ग्रह है, जन्म के समय की अपनी स्थिति में लौट आता है। जीवन में इस बिंदु से, व्यक्ति प्रगति करना शुरू कर देता है। जैसा कि मंगल 30 की उम्र में परिपक्व होता है, यह वह उम्र है जिसमें लोग आमतौर पर शादी करते है अथवा उनके बच्चे होते हैं। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, ग्रह और अधिक परिपक्व होते जाते हैं। 35-36 वर्ष की उम्र में, शनि परिपक्व हो जाता है और इस समय व्यक्ति आमतौर पर जीवन, करियर, रिश्ते आदि सुनिश्चित कर लेता है। इसे आत्मज्ञान की उम्र मानी जाती है।

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