लम्हा,सिनेमा एक ऐसा माध्यम है जो समाज की सच्चाइयों को बड़े पर्दे पर पेश करता है। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कई बार फिल्ममेकर्स ने कठिन विषयों को उठाया है, लेकिन कभी-कभी इन फिल्मों का बॉक्स ऑफिस पर प्रदर्शन निराशाजनक होता है। साल 2010 में आई फिल्म ‘लम्हा’ भी ऐसी ही एक फिल्म है, जिसे निर्देशक राहुल ढोलकिया ने कश्मीर के हालात को दर्शाने के लिए बनाया। इस फिल्म के निर्माण के दौरान टीम को जो चुनौतियाँ और खतरे झेलने पड़े, वे निश्चित रूप से यादगार हैं।
फिल्म का परिचय
‘लम्हा’ में संजय दत्त और बिपाशा बसु मुख्य भूमिकाओं में हैं। यह फिल्म कश्मीर के हालातों को एक नई दृष्टि से प्रस्तुत करती है, खासकर उस समय जब घाटी में आतंकवाद का कहर जारी था। फिल्म की कहानी कश्मीर की महिलाओं और उनके संघर्षों के इर्द-गिर्द घूमती है। फिल्म का निर्देशन राहुल ढोलकिया ने किया, जो पहले ‘परजानिया’ जैसी चर्चित फिल्म बना चुके थे।
शूटिंग के दौरान की मुश्किलें
राहुल ढोलकिया ने अपने एक इंटरव्यू में बताया कि फिल्म की शूटिंग के दौरान उनकी पूरी टीम को अलगाववादियों द्वारा बंदी बना लिया गया था। यह घटना कश्मीर की घाटियों में हुई थी, जहां शूटिंग के पहले दिन ही उन्हें लगभग 4-4.5 घंटों तक बंधक रहना पड़ा। ढोलकिया ने कहा, “हम मंडी में शूट कर रहे थे और अचानक दरवाजे बंद कर दिए गए। अलगाववादियों ने हमसे पूछा कि प्रोड्यूसर कौन है। उस वक्त हमारी प्रोडक्शन टीम डर के मारे छिप गई थी। मैंने साहस जुटाकर उनसे बातचीत की और अपनी टीम के लोगों को बचाने की कोशिश की।”
बिपाशा बसु का डर
इस घटना से बिपाशा बसु इतनी भयभीत हो गईं कि उन्होंने तुरंत शूटिंग छोड़ने का फैसला किया और मुंबई लौट गईं। यह एक साहसिक कदम था, लेकिन बाद में उन्होंने फिल्म की शूटिंग पूरी करने का निर्णय लिया। बिपाशा ने अपने फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “वो एक खौफनाक अनुभव था, लेकिन मैंने अपने काम को पूरा करने की ठान ली थी।”
सुरक्षा की कमी
राहुल ढोलकिया ने बताया कि उस समय कश्मीर में न तो पुलिस थी और न ही सीआरपीएफ के जवान। उन्हें अपने जीवन की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं थी। उन्होंने कहा, “मैंने यह महसूस किया कि हमारी सुरक्षा पूरी तरह से दांव पर थी। मैं और मेरी टीम उस दिन केवल अपना काम करने की कोशिश कर रहे थे।”
महिलाओं की इज्जत का सवाल
राहुल ने यह भी बताया कि जब वह बंधक बने हुए थे, तब अलगाववादियों ने कहा कि वे कश्मीर के खिलाफ नहीं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने उनके साथ काम करने वाली महिलाओं को छोड़ने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, “जब मैंने उनसे कहा कि हमारी क्रू की महिलाओं को जाने दें, तो उन्होंने कहा, ‘हम यहां हिंदुस्तान में नहीं, कश्मीर में हैं। हम अपनी महिलाओं की इज्जत करते हैं।’”
फिल्म की कास्टिंग के संघर्ष
फिल्म में बिपाशा बसु को कश्मीरी महिला की भूमिका में कास्ट करने का निर्णय कई कारणों से लिया गया। मूल रूप से, राहुल ढोलकिया करिश्मा कपूर को कास्ट करना चाहते थे, लेकिन उन्होंने कश्मीर में शूटिंग करने का जोखिम नहीं उठाया। इसके बाद दीपिका पादुकोण से संपर्क किया गया, लेकिन उन्होंने भी वही कारण बताते हुए फिल्म में काम करने से मना कर दिया। अंततः बिपाशा बसु ने चुनौती को स्वीकार किया और फिल्म का हिस्सा बनीं।
फिल्म का प्रदर्शन और बॉक्स ऑफिस पर असफलता
जब ‘लम्हा’ रिलीज हुई, तो फिल्म को मिली-जुली प्रतिक्रियाएं मिलीं, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर यह पूरी तरह से विफल रही। इस फिल्म ने अपने कठिन शूटिंग अनुभव के बावजूद दर्शकों का ध्यान आकर्षित नहीं किया। फिल्म ने दर्शकों के बीच केवल एक सीमित सर्कल में ही लोकप्रियता हासिल की, जिससे निर्माता और निर्देशक दोनों ही निराश हुए।
‘लम्हा’ केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि उस समय की कश्मीर की वास्तविकता और वहां की संस्कृति का एक परिचायक है। हालांकि, इसके निर्माण के दौरान आए संकट और चुनौतियों ने इसे एक साहसिक प्रयास बना दिया। फिल्म ने अपने विषय के माध्यम से समाज के कुछ कड़वे सच को सामने लाने की कोशिश की, लेकिन दुर्भाग्यवश, यह दर्शकों के बीच प्रभावी नहीं हो पाई।
सिनेमा का यह पहलू हमें याद दिलाता है कि कभी-कभी एक फिल्म का महत्व उसके बॉक्स ऑफिस कलेक्शन से कहीं अधिक होता है। ‘लम्हा’ ने कश्मीर के संघर्ष और वहां के लोगों की भावना को एक बार फिर से उभारने का प्रयास किया, जो आज भी लोगों के दिलों में बसा हुआ है।