हरियाणा चुनाव 2024: अनिल विज की जीत और मंत्री पद की दुविधा – ‘गब्बर’ के सामने असली चुनौती अब शुरू होती है

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हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 का परिणाम आ चुका है, और एक बार फिर से अंबाला कैंट से भाजपा के वरिष्ठ नेता अनिल विज ने अपनी जीत दर्ज की है। यह उनकी लगातार 7वीं जीत है, जो उन्हें हरियाणा की राजनीति का एक अद्वितीय चेहरा बनाती है। 7277 वोटों के अंतर से विज ने चुनाव जीता, लेकिन इस बार उनकी जीत के साथ एक बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है – क्या वह फिर से मंत्री पद की शोभा बढ़ाएंगे या इस बार उन्हें सत्ता के समीकरण से दूर रखा जाएगा?

इस सवाल का जवाब हरियाणा की राजनीति और भाजपा के भीतर की खींचतान में छिपा हुआ है। अनिल विज, जिन्हें ‘गब्बर’ के नाम से जाना जाता है, ने हमेशा से एक अलग अंदाज में राजनीति की है। लेकिन इस बार उनकी जीत के बावजूद, उनके सामने असली चुनौती अब शुरू होती है – भाजपा के अंदरूनी सत्ता समीकरण, नायब सैनी की नई सरकार, और खुद विज के राजनीतिक भविष्य के सवाल।

अनिल विज
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अनिल विज: हरियाणा की राजनीति का ‘गब्बर’

अनिल विज का राजनीतिक करियर काफी प्रभावशाली रहा है। वह लगातार सात बार विधायक बनने वाले कुछ चुनिंदा नेताओं में से एक हैं। उनके बोलने का अंदाज हमेशा से ही उन्हें एक अलग नेता के रूप में पेश करता रहा है। विज ने हमेशा अपने बयानों और क्रियाकलापों से राजनीतिक माहौल में हलचल पैदा की है। चाहे वह मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के साथ उनके रिश्तों की बात हो, या फिर उनके तीखे बयानों की, विज ने कभी भी पीछे हटना नहीं सीखा।

2024 में विज की जीत के बाद सबसे बड़ी चर्चा इस बात पर है कि क्या वह दोबारा कैबिनेट मंत्री बनाए जाएंगे? इस सवाल के जवाब में विज खुद कहते हैं कि जहां भी उन्हें भेजा जाएगा, वह वहां से “छक्के” मारेंगे। उनके इस बयान से साफ है कि वह किसी भी चुनौती से पीछे हटने वाले नहीं हैं। लेकिन हरियाणा की नई सियासी स्थितियों में विज को मंत्री पद मिलना अब भाजपा के अंदरूनी समीकरणों पर निर्भर करता है।

सैनी सरकार और विज की मंत्री पद से दूरी

2024 के चुनाव से कुछ महीने पहले हरियाणा की राजनीति में बड़ा बदलाव हुआ था जब भाजपा ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को हटाकर नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाया। इस कदम ने राज्य की सियासत में हलचल पैदा की थी, और इसका असर अनिल विज पर भी पड़ा। नायब सैनी की कैबिनेट में अनिल विज को कोई जगह नहीं मिली, जिससे वह स्पष्ट रूप से नाराज थे। विज की नाराजगी इस हद तक थी कि उन्होंने विधायक दल की बैठक तक छोड़ दी थी।

यहां एक बड़ा सवाल खड़ा होता है: क्या भाजपा आलाकमान अब नायब सैनी की नई सरकार में विज को कोई भूमिका देगा? या फिर विज इस बार भी सत्ता के समीकरण से बाहर रहेंगे?

सैनी सरकार बनने के बाद विज की नाराजगी को कम करने के लिए खुद नायब सैनी ने उनसे मुलाकात की थी, लेकिन वह नाराजगी अब तक खत्म होती नजर नहीं आई है। इसके बावजूद, विज ने चुनाव जीतने के बाद साफ कहा कि वह पार्टी के फैसले का सम्मान करेंगे, चाहे उन्हें कोई भी जिम्मेदारी दी जाए।

विज की जीत: कांटे की टक्कर और जनता की उम्मीदें

अंबाला कैंट से विज की जीत इस बार आसान नहीं रही। चुनाव के दौरान वह एक समय पिछड़ भी गए थे, और आजाद प्रत्याशी चित्रा सनवारा ने उन्हें कड़ी टक्कर दी। विज का यह कहना कि “वह जहां भी रहेंगे, वहां से छक्के मारेंगे,” उनकी आत्मविश्वास और उनकी रणनीति का प्रमाण है। चुनावी नतीजों के बाद विज का सीएम पद के सवाल पर यह कहना कि “यह हाईकमान का फैसला होगा,” उनकी पार्टी के प्रति वफादारी को भी दर्शाता है।

अंबाला कैंट की जनता के लिए अनिल विज सिर्फ एक नेता नहीं हैं, बल्कि वह उनके “गब्बर” हैं, जिन्होंने हमेशा उनके हितों की रक्षा की है। जनता को उम्मीद है कि विज दोबारा कैबिनेट में शामिल होंगे और उनके लिए और भी बेहतर काम करेंगे। लेकिन इस बार भाजपा के अंदरूनी समीकरणों के चलते यह देखना होगा कि क्या जनता की यह उम्मीद पूरी होती है या नहीं।

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भाजपा की अंदरूनी राजनीति: विज के सामने नई चुनौती

भाजपा के भीतर अनिल विज का स्थान हमेशा से ही अहम रहा है, लेकिन पिछले कुछ महीनों में पार्टी के भीतर जो बदलाव हुए हैं, उससे विज की स्थिति अब उतनी मजबूत नहीं रही। नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाना और विज को कैबिनेट से बाहर रखना इस बात का संकेत था कि भाजपा के नेतृत्व ने विज की राजनीतिक ताकत को संतुलित करने का प्रयास किया है।

हालांकि, विज की लोकप्रियता और उनका आत्मविश्वास अभी भी उनके पक्ष में है। यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा आलाकमान इस बार उन्हें किस भूमिका में देखता है। क्या उन्हें फिर से मंत्री पद दिया जाएगा, या वह इस बार सिर्फ एक विधायक के रूप में ही अपनी सेवाएं देंगे?

भाजपा की अंदरूनी खींचतान और सैनी सरकार में विज के मंत्री पद पर न बनने की खबरों के बीच, यह कहना मुश्किल है कि विज का राजनीतिक भविष्य किस दिशा में जाएगा। लेकिन एक बात साफ है कि विज की लोकप्रियता और उनकी राजनीतिक काबिलियत को नजरअंदाज करना भाजपा के लिए भी आसान नहीं होगा।

हरियाणा की राजनीति में विज का महत्व

अनिल विज सिर्फ एक नेता नहीं हैं, वह हरियाणा की राजनीति का एक ऐसा चेहरा हैं जो अपनी स्पष्टवादिता और सख्त रवैये के लिए जाने जाते हैं। चाहे वह स्वास्थ्य मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल की बात हो, या फिर उनके विवादित बयानों की, विज ने हमेशा अपने विचारों को बेबाकी से रखा है।

उनकी जीत इस बात का प्रमाण है कि वह आज भी जनता के दिलों में बसे हुए हैं। लेकिन इस बार उनके सामने असली चुनौती है भाजपा के भीतर अपने लिए एक मजबूत स्थान बनाना। पार्टी के भीतर जो बदलाव हो रहे हैं, उसमें विज को कैसे फिट किया जाएगा, यह हरियाणा की राजनीति के लिए महत्वपूर्ण सवाल है।

अनिल विज
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विज के लिए असली पंगा अब शुरू होता है

अनिल विज ने 2024 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर ली है, लेकिन उनके लिए असली पंगा अब शुरू हो रहा है। भाजपा के भीतर सत्ता के समीकरण बदल चुके हैं, और विज को अपनी भूमिका तय करनी होगी। जनता उन्हें फिर से मंत्री पद पर देखना चाहती है, लेकिन भाजपा आलाकमान का फैसला क्या होगा, यह देखना बाकी है।

विज की जीत यह साबित करती है कि वह अब भी हरियाणा की राजनीति में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी हैं। लेकिन भाजपा के भीतर उनकी स्थिति को फिर से मजबूत करना उनके लिए एक चुनौती है। क्या विज इस बार भी भाजपा के ‘गब्बर’ बने रहेंगे, या उन्हें सत्ता से दूर रहना पड़ेगा? इसका जवाब आने वाले दिनों में मिलेगा।

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