भारतीय शेयर बाजार में DIIs का रिकॉर्ड निवेश: भारतीय शेयर बाजार में हाल के महीनों में जो घटनाक्रम देखने को मिला है, वह न केवल निवेशकों के लिए बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। 2024 के दौरान घरेलू संस्थागत निवेशकों (DIIs) ने ₹4,00,000 करोड़ से अधिक का रिकॉर्ड निवेश किया है, जो कि एक नया मील का पत्थर है। इस बढ़ते निवेश के बीच, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) ने अक्टूबर में शेयरों की भारी बिकवाली की है। आइए, इस बदलाव के पीछे की वजहों और इसके संभावित प्रभावों पर गहराई से चर्चा करते हैं।
DIIs का बढ़ता निवेश
DIIs का यह निवेश भारतीय इक्विटी बाजार में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है। जब भी बाजार में उथल-पुथल होती है, तो अक्सर विदेशी निवेशक सक्रिय होते हैं, लेकिन इस बार घरेलू संस्थागत निवेशकों ने दृढ़ता दिखाई है। मनीकंट्रोल की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में DIIs ने पहले ₹1 लाख करोड़ का निवेश 57 ट्रेडिंग सत्रों में, फिर अगले लाख करोड़ को 40 सत्रों में और तीसरा लाख करोड़ 60 सत्रों में प्राप्त किया। यह स्पष्ट है कि भारतीय बाजार में DIIs की निरंतर और बढ़ती भागीदारी बाजार को स्थिरता प्रदान कर रही है।
FIIs की बिकवाली और उसका प्रभाव
अक्टूबर में FPIs ने ₹68,000 करोड़ की शुद्ध बिकवाली की है। यह एक चिंताजनक संकेत है, लेकिन DIIs की लगातार खरीदारी ने इस गिरावट को संतुलित किया है। HDFC सिक्योरिटीज के रिटेल रिसर्च प्रमुख दीपक जसानी के अनुसार, म्यूचुअल फंड्स में निरंतर इनफ्लो और फंड मैनेजरों की लाभ कमाने की रणनीति ने घरेलू संस्थानों को गिरावट वाले दिनों में शेयर खरीदने में मदद की है। यह एक दिलचस्प तथ्य है कि जब FPIs बिक्री करते हैं, तो DIIs तेजी से खरीदारी करते हैं।
निवेशकों की भागीदारी में वृद्धि
दिवम शर्मा, ग्रीन पोर्टफोलियो PMS के संस्थापक, का मानना है कि DIIs का बढ़ता निवेश छोटे खुदरा निवेशकों की बढ़ती भागीदारी का परिणाम है। छोटे निवेशक म्यूचुअल फंड्स के माध्यम से बाजार में सक्रिय हो रहे हैं, जिससे बाजार में स्थिरता बनी हुई है। इससे यह संकेत मिलता है कि भारतीय निवेशक अब और अधिक आत्मनिर्भर बनते जा रहे हैं और वे बाजार के उतार-चढ़ाव से प्रभावित होने के बजाय अपनी निवेश रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
बाजार की मजबूती के संकेत
भारत के प्रमुख सूचकांक, जैसे सेंसेक्स और निफ्टी, ने 2024 में क्रमशः 13% और 15% की वृद्धि दर्ज की है। इसके विपरीत, अक्टूबर में सेंसेक्स और निफ्टी दोनों में 3.3% की गिरावट आई है। लेकिन यह गिरावट एक छोटी सी लहर की तरह है, जिसे DIIs की खरीदारी ने संतुलित किया है। बाजार में यह स्थिति संकेत देती है कि दीर्घकालिक निवेशक अभी भी भारत के विकास पर भरोसा कर रहे हैं।
आर्थिक चुनौतियां और सतर्कता
हालांकि, भारतीय बाजार में यह स्थिरता कई आर्थिक चुनौतियों से घिरी हुई है। विनोद नायर, जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के प्रमुख शोधकर्ता, ने कहा है कि कॉर्पोरेट कमाई में गिरावट का जोखिम है और Q2 के परिणाम निराशाजनक हो सकते हैं। इसके अलावा, उच्च वैश्विक मुद्रास्फीति संचालन मार्जिन को प्रभावित कर रही है। ऐसे में निवेशकों को सतर्क रहने की सलाह दी गई है।
दीर्घकालिक निवेश की रणनीति
जबकि विदेशी निवेशक बिक्री कर रहे हैं, घरेलू निवेशकों को दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। DIIs के बढ़ते निवेश से यह स्पष्ट है कि भारतीय बाजार में क्षमता है, और ये निवेशक अधिक स्थिरता और लाभ की उम्मीद कर रहे हैं। यदि आप दीर्घकालिक निवेश के लिए सोच रहे हैं, तो यह सही समय हो सकता है।
अंततः, भारतीय शेयर बाजार की स्थिरता का श्रेय DIIs के रिकॉर्ड तोड़ निवेश को दिया जा सकता है। जबकि FPIs की गतिविधियों में उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है, घरेलू निवेशक बाजार को स्थिरता प्रदान कर रहे हैं। यह बदलाव केवल निवेशकों के लिए नहीं, बल्कि समग्र भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी सकारात्मक संकेत है। आने वाले समय में, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह प्रवृत्ति जारी रहती है और क्या भारतीय शेयर बाजार अपने प्रीमियम मूल्यांकन को बनाए रखता है। निवेशकों को हमेशा बाजार के चढ़ाव-उतार को ध्यान में रखते हुए सतर्क रहना चाहिए और दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।