भारतीय शेयर बाजार पर ‘गिरावट का ग्रहण’: 16 लाख करोड़ का नुकसान और एक अनकही वजह

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भारतीय शेयर बाजार, जो कोरोना काल के बाद से लगातार बुल रन का अनुभव कर रहा था, अब एक नई चुनौती का सामना कर रहा है। पिछले कुछ दिनों से निफ्टी और सेंसेक्स में आई लगातार गिरावट ने निवेशकों के बीच चिंता बढ़ा दी है। जहां एक तरफ कोरोना के बाद बाजार में तेज़ी देखने को मिली थी, वहीं अब यह गिरावट एक गंभीर संकेत बन गई है। इस गिरावट के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं, जिनमें ईरान-इजरायल संघर्ष, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें, और चीन का आर्थिक प्रभाव शामिल हैं। लेकिन एक प्रमुख कारण जो चर्चा में नहीं है, वह है “चीन फैक्टर”।

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चीन का आर्थिक संकट और सुधार

चीन की अर्थव्यवस्था पिछले कुछ समय से गंभीर संकट का सामना कर रही है। कोरोना के बाद, चीन को अपने आर्थिक ढांचे में सुधार करने की आवश्यकता महसूस हुई। इसके लिए चीनी सरकार ने बड़े प्रोत्साहन पैकेज का ऐलान किया। इस पैकेज में ब्याज दरों में कटौती, बैंकों के रिजर्व में कमी, और गृह खरीदने के नियमों को सरल बनाना शामिल था।

इन घोषणाओं का सकारात्मक प्रभाव चीन के शेयर बाजारों पर पड़ा। 30 सितंबर को चीन के प्रमुख इंडेक्स में 8.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो 2008 के बाद से सबसे बड़ी बढ़त थी। इस विकास ने विदेशी निवेशकों का ध्यान आकर्षित किया, जिससे भारतीय बाजारों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।

भारतीय निवेशकों के लिए चिंता का विषय

भारत में विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) ने हाल के दिनों में भारतीय बाजारों से 40,000 करोड़ रुपये से अधिक की बिकवाली की है। पिछले सप्ताह सेंसेक्स में 4,000 अंक से अधिक की गिरावट आई, जिसके चलते निवेशकों को 16 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। यह स्थिति दर्शाती है कि निवेशक अब भारत की तुलना में चीन के बाजार में अधिक आकर्षित हो रहे हैं।

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ब्रोकरेज फर्मों का रुख

ब्रोकरेज फर्म CLSA ने भी चीन के आर्थिक सुधारों का स्वागत किया है और भारतीय बाजारों पर अपना ओवरवेट कम कर दिया है। CLSA ने कहा कि भारत के ओवरवेट को 20% से घटाकर 10% किया जा रहा है, जबकि चीन के लिए ओवरवेट को 5% तक बढ़ाया जा रहा है। यह बदलाव दर्शाता है कि निवेशकों की धारणा में बदलाव आ रहा है, और वे अब चीन की अर्थव्यवस्था में नई संभावनाएं देख रहे हैं।

बाजार में गिरावट के अन्य कारण

भारतीय शेयर बाजार में गिरावट के अन्य कारणों में ईरान-इजरायल संघर्ष का डर और कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें शामिल हैं। इन मुद्दों ने निवेशकों के बीच अनिश्चितता बढ़ा दी है, जिससे वे अपने निवेश को कम करने की ओर अग्रसर हो रहे हैं। जब बाजार में अनिश्चितता बढ़ती है, तो निवेशक आमतौर पर सुरक्षित निवेश की ओर मुड़ जाते हैं, जिससे शेयर बाजार में गिरावट आती है।

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क्या है आगे का रास्ता?

इस स्थिति में निवेशकों को धैर्य बनाए रखने की आवश्यकता है। भारतीय बाजारों ने पहले भी कई उतार-चढ़ाव का सामना किया है, और इसके पीछे का कारण अक्सर वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों का प्रभाव होता है। चीन के साथ प्रतिस्पर्धा में भारत की स्थिरता को बनाए रखना महत्वपूर्ण है। निवेशकों को अपनी निवेश रणनीतियों को पुनर्विचार करने और दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।

भारतीय शेयर बाजार की गिरावट कई कारकों का परिणाम है, लेकिन “चीन फैक्टर” अब एक प्रमुख चिंता का विषय बन गया है। चीन की सरकार द्वारा घोषित आर्थिक सुधारों ने विदेशी निवेशकों को आकर्षित किया है, जिससे भारतीय बाजारों पर दबाव पड़ा है। निवेशकों को चाहिए कि वे वर्तमान स्थिति को समझें और अपने निवेश में विवेकपूर्ण निर्णय लें।

इस तरह की चुनौतियों का सामना करते हुए, भारतीय अर्थव्यवस्था की मूलभूत ताकत को समझना और उसे बनाए रखना महत्वपूर्ण है। आने वाले दिनों में यह देखना होगा कि क्या भारतीय शेयर बाजार इन चुनौतियों का सामना कर पाएगा और कैसे निवेशकों की धारणा में बदलाव आएगा।

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