भगवान जगन्नाथ की कथाओं में 1 उनके भक्तों के प्रति अपार प्रेम और रक्षा के कई उदाहरण मिलते हैं।
काशी के विद्वान और माधवदास की चुनौती
एक समय की बात है, जब काशी में एक बहुत बड़े विद्वान हुआ करते थे। वे जहां भी जाते, अन्य विद्वानों को शास्त्रार्थ की चुनौती देते और उन्हें पराजित करते थे। एक दिन, काशी के किसी विद्वान ने उस विद्वान को माधवदास से शास्त्रार्थ में हराने की चुनौती दी। उन्होंने कहा कि अगर आप माधवदास को हराने में सफल होते हैं, तो उन्हें एक भोजपत्र पर लिखवाना होगा कि वे हार गए और नीचे उनके हस्ताक्षर होने चाहिए।यह कहानी काशी और जगन्नाथपुरी से जुड़ी एक ऐसी ही पौराणिक कथा है, जिसमें भगवान जगन्नाथ ने अपने भक्त माधवदास की प्रतिष्ठा बचाने के लिए मंदिर से बाहर आकर चमत्कार किया।
माधवदास का समर्पण
चुनौती स्वीकार करने के बाद वह विद्वान काशी से पैदल चलकर जगन्नाथपुरी पहुंचे। माधवदास ने जैसे ही देखा कि कोई विद्वान आया है, तो उन्होंने तुरंत दंडवत प्रणाम किया। इसके बाद विद्वान ने माधवदास को शास्त्रार्थ की चुनौती दी। माधवदास ने विनम्रता से कहा कि वे पहले ही हार मानते हैं और शास्त्रार्थ नहीं करना चाहते।
विद्वान के कहे अनुसार, माधवदास ने भोजपत्र पर लिख दिया कि वे उस विद्वान से हार गए हैं और आज के बाद अगर वे कभी भी जगन्नाथपुरी आएंगे, तो उनकी पूरी सेवा की जिम्मेदारी माधवदास की होगी।
भगवान जगन्नाथ का चमत्कार
विद्वान ने जब यह भोजपत्र काशी के दूसरे विद्वान को दिखाया, तो उसमें पूरा लेख ही बदल गया। उसमें लिखा था कि “ये अमुक नाम के व्यक्ति काशी से आज जगन्नाथपुरी आए। उन्होंने आकर शास्त्रार्थ किया और शास्त्रार्थ में मुझसे बुरी तरह हार गए। आज के बाद कभी भी जगन्नाथपुरी आएंगे, तो मुझे प्रणाम करेंगे और मेरी सेवा करेंगे। काशी से मेरे लिए बहुत सारी सेवा लेकर आएंगे।
यह पढ़ने के बाद विद्वान दोबारा माधवदास के पास पहुंचे और शास्त्रार्थ की चुनौती दी। माधवदास ने फिर से अपनी हार स्वीकार कर ली। तब विद्वान ने उनसे कहा कि अब तुम्हें गधे पर बैठकर और मुंह पर कालिख पोतकर पूरे क्षेत्र का चक्कर लगाना होगा और कहना होगा “मैं विद्वान से हार गया।”
भगवान का अवतरण
माधवदास ने विद्वान की इस चुनौती को भी स्वीकार कर लिया और कहा कि वे पहले भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने जा रहे हैं, तब तक आप गधे का प्रबंध कर लीजिए। इतना कहकर वे मंदिर चले गए और विद्वान गधे की तलाश में निकल गए।
जब माधवदास मंदिर में थे, तब भगवान जगन्नाथ ने उनका रूप धारण किया और मंदिर से बाहर आए। उन्होंने उस विद्वान को ही शास्त्रार्थ की चुनौती दी। भगवान ने विद्वान को बुरी तरह हराया और उनसे कहा कि अब वे गधे पर बैठकर घूमे और हल्ला करें कि वे माधवदास से शास्त्रार्थ में हार गए हैं।
भक्त माधवदास की प्रतिष्ठा की रक्षा
जब माधवदास मंदिर से बाहर आए, तो उन्होंने देखा कि विद्वान गधे पर घूम रहे हैं। इसे देखकर उन्हें हैरानी हुई, लेकिन जल्द ही उन्होंने समझ लिया कि यह भगवान जगन्नाथ का चमत्कार है। इधर, माधवदास को देखते ही विद्वान ने उनके हाथ जोड़ लिए और काशी लौट गए।
इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए किसी भी रूप में आ सकते हैं और उनकी प्रतिष्ठा पर आंच नहीं आने देते। भगवान जगन्नाथ और भक्त माधवदास की यह अद्भुत कथा हमें सिखाती है कि सच्चे भक्त की सेवा और समर्पण को भगवान कभी भी व्यर्थ नहीं जाने देते। वे अपने भक्तों की हर स्थिति में रक्षा करते हैं और उन्हें सम्मान दिलाते हैं।
भगवान जगन्नाथ की यह कथा हमें उनके अद्भुत और अनंत प्रेम की याद दिलाती है। यह कहानी न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भी सिखाती है कि सच्ची भक्ति और समर्पण के साथ भगवान हमेशा हमारे साथ होते हैं और हमें हर मुश्किल से निकालते हैं। चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों, भक्त की सच्ची आस्था और भगवान का प्रेम कभी हारने नहीं देते।
जगन्नाथपुरी की यह कथा भक्तों के दिलों में भगवान के प्रति अटूट विश्वास और प्रेम को और भी गहरा करती है। यह हमारे जीवन में आने वाली हर चुनौती का सामना धैर्य और विश्वास के साथ करने की प्रेरणा देती है, क्योंकि भगवान हमेशा हमारे साथ होते हैं।
http://भगवान जगन्नाथ और भक्त माधवदास की 1 अद्भुत कथा : जब भगवान ने अपने भक्त की लाज बचाई