बीमारू राज्य: परिभाषा, कारण और बदलती तस्वीर

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आपने अक्सर “बीमारू राज्य” जैसे शब्दों को सुना होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसका मतलब क्या है और यह किन राज्यों को संदर्भित करता है? बीमारू राज्य का मुख्य अवधारणा किसी प्रदेश की आर्थिक और सामाजिक स्थिति से संबंधित होती है। यदि कोई राज्य इन निर्धारित मानदंडों पर खरा नहीं उतरता है, तो उसे बीमारू राज्य माना जाता है। यह अवधारणा 1980 के दशक के मध्य में विकसित की गई थी, जब जनसांख्यिकी विशेषज्ञ आशीष बोस ने बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के खराब विकास को ध्यान में रखते हुए इस शब्द का प्रयोग किया।

बीमारू राज्य: परिभाषा, कारण और बदलती तस्वीर
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बीमारू राज्य क्या होते हैं?

बीमारू राज्यों की पहचान कई आर्थिक और सामाजिक पैमानों पर आधारित होती है। इनमें शामिल हैं:

  1. उच्च जनसंख्या वृद्धि दर: ये राज्य जनसंख्या के मामले में तेजी से बढ़ रहे हैं, जिससे संसाधनों पर दबाव बढ़ता है।
  2. कम साक्षरता दर: शिक्षा का स्तर इन राज्यों में निम्न है, जो भविष्य में विकास के अवसरों को सीमित करता है।
  3. उच्च शिशु और मातृ मृत्यु दर: स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण इन राज्यों में माताओं और बच्चों की मृत्यु दर अधिक है।
  4. कम प्रति व्यक्ति आय: आर्थिक विकास के अवसर सीमित होने के कारण इन राज्यों की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से कम है।
  5. उच्च गरीबी स्तर: इन राज्यों में गरीब लोगों की संख्या अधिक होती है, जो सामाजिक असमानता को बढ़ाता है।
  6. अपर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर: परिवहन, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी इन राज्यों के विकास में बाधा डालती है।
  7. भ्रष्टाचार और राजनीतिक अस्थिरता: ये राज्य अक्सर भ्रष्टाचार, जातिवाद और सांप्रदायिकता जैसी समस्याओं का सामना करते हैं, जो उनकी सामाजिक स्थिति को और खराब बनाते हैं।

बीमारू राज्य का तमगा

1980 के दशक में आशीष बोस ने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को एक रिपोर्ट सौंपी, जिसमें उन्होंने चार राज्यों को ‘बीमारू’ के रूप में नामित किया। यह उन राज्यों के लिए एक संकेत था जो आर्थिक विकास, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में पीछे थे। हालांकि, समय के साथ इन राज्यों की स्थिति में सुधार आया है और कई राज्यों से बीमारू राज्य का टैग हटा दिया गया है।

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बदलती तस्वीर: बीमारू राज्यों का विकास

हाल के वर्षों में, बीमारू राज्यों में सुधार के कई संकेत मिले हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2012 में कहा था कि विकास की गति धीमी रहने वाले राज्यों ने अब बेहतर प्रदर्शन किया है। ये कुछ उदाहरण हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि इन राज्यों ने किस प्रकार बदलाव लाने में सफलता प्राप्त की है:

  1. बिहार: बिहार ने 2019-20 में 11.3% की उच्च विकास दर दर्ज की, जो कई अन्य राज्यों को पीछे छोड़ने में सफल रहा। यह कृषि, उद्योग और शिक्षा में सुधार के कारण संभव हुआ है।
  2. राजस्थान और मध्य प्रदेश: इन राज्यों ने कृषि, पर्यटन, और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्रों में प्रगति की है। इन क्षेत्रों में निवेश बढ़ने से आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।
  3. उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश ने औद्योगिक विकास और सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देने के लिए कई नई पहलों की शुरुआत की है, जिसमें सड़क और परिवहन बुनियादी ढांचे का विकास भी शामिल है।

राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता

इन राज्यों के सुधार में राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता भी एक महत्वपूर्ण कारक रही है। राजनीतिक स्थिरता ने राज्य सरकारों को दीर्घकालिक योजनाओं को लागू करने और विकासात्मक कार्यों को आगे बढ़ाने की अनुमति दी है। इसके साथ ही, सामाजिक जागरूकता और सक्रिय नागरिक भागीदारी ने भी सकारात्मक बदलाव लाने में मदद की है।

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चुनौतियाँ और भविष्य

हालांकि बीमारू राज्यों की स्थिति में सुधार हो रहा है, लेकिन अभी भी कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं। उच्च जनसंख्या वृद्धि, शिक्षा की कमी, और सामाजिक असमानता जैसे मुद्दों का समाधान आवश्यक है। यदि इन राज्यों को अपने विकास की यात्रा में आगे बढ़ना है, तो उन्हें स्थायी नीतियों और योजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना होगा।

बीमारू राज्य का टैग केवल एक पहचान नहीं है, बल्कि यह उन राज्यों की स्थिति को दर्शाने वाला एक संकेत है, जो विकास के पथ पर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। समय के साथ, कई बीमारू राज्यों ने अपनी स्थिति में सुधार किया है और विकास की नई ऊँचाइयों को छूने का प्रयास कर रहे हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि ये राज्य आगे किस दिशा में बढ़ते हैं और क्या वे अपने विकास के लक्ष्यों को प्राप्त कर पाते हैं।

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