फर्जी सर्टिफिकेट पर 16 साल तक नौकरी: शिक्षा व्यवस्था में बड़ा धोखा

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दो शिक्षकों की गिरफ्तारी का मामला, क्या है इसकी असली कहानी?

सीतामढ़ी: बिहार के सीतामढ़ी जिले में दो शिक्षकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की गई है, जिन्होंने 16 वर्षों तक फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी की। यह मामला न केवल इन शिक्षकों की धोखाधड़ी का है, बल्कि यह शिक्षा व्यवस्था की एक गंभीर स्थिति को भी उजागर करता है। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे ये शिक्षक फर्जी प्रमाण पत्रों के सहारे अपनी नौकरी करते रहे और इसके पीछे की सच्चाई क्या है।

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फर्जी प्रमाण पत्र का खेल

बेलसंड और बथनाहा प्रखंड के दो शिक्षकों—सुबोध कुमार और सुशील कुमार—ने अपने प्रशिक्षण प्रमाण पत्रों के बारे में छिपी हुई सच्चाई को छुपाते हुए वर्षों तक सरकारी नौकरी की। निगरानी अन्वेषण ब्यूरो ने उनकी प्रमाण पत्रों की जांच की और पाया कि ये सभी फर्जी हैं। सुबोध कुमार का 2002-03 सत्र का सर्टिफिकेट और सुशील कुमार का 2006-07 सत्र का अंक पत्र असम के एससीईआरटी कार्यालय से सत्यापित होने पर फर्जी साबित हुआ।

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शिक्षा के साथ धोखाधड़ी

यह घटना उन लोगों के लिए एक बड़ा झटका है जो शिक्षा को एक पवित्र पेशा मानते हैं। ये दोनों शिक्षक फर्जी दस्तावेजों के सहारे न केवल अपनी नौकरी करते रहे, बल्कि वे 16 वर्षों से वेतन भी उठा रहे थे। यह न केवल उनके लिए, बल्कि उन सभी छात्रों के लिए भी चिंताजनक है जो सही शिक्षा की उम्मीद करते हैं। ऐसे शिक्षक जिनका ज्ञान और योग्यता संदेह में है, वे बच्चों के भविष्य को कैसे संवार सकते हैं?

मिलीभगत और साजिश का मामला

निगरानी अन्वेषण ब्यूरो की जांच में यह बात भी सामने आई कि इन दोनों शिक्षकों ने अन्य अज्ञात व्यक्तियों के साथ मिलकर इस धोखाधड़ी को अंजाम दिया। इस मामले में अब एफआईआर दर्ज कर आगे की कार्रवाई की जाएगी। यह स्पष्ट है कि ऐसे मामले केवल व्यक्तिगत धोखाधड़ी नहीं हैं, बल्कि एक साजिश का हिस्सा हैं जो शिक्षा प्रणाली को कमजोर कर रहे हैं।

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हाईकोर्ट का आदेश और जांच की प्रक्रिया

इस मामले की जांच का आरंभ बिहार हाईकोर्ट के आदेश पर किया गया था। हाईकोर्ट ने 2006 से 2015 के बीच नियोजित शिक्षकों के शैक्षणिक और प्रशिक्षण प्रमाण पत्रों की जांच के निर्देश दिए थे। निगरानी अन्वेषण ब्यूरो ने अब तक कई शिक्षकों के फर्जी प्रमाण पत्रों की पहचान की है, जिससे यह साबित होता है कि यह केवल एक या दो शिक्षकों का मामला नहीं है, बल्कि एक व्यापक समस्या है।

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भविष्य की दिशा

इस मामले ने एक बार फिर से यह सवाल उठाया है कि क्या हमारी शिक्षा प्रणाली में सही सत्यापन और निगरानी की प्रक्रिया मौजूद है। हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि भविष्य में इस प्रकार की धोखाधड़ी को रोका जा सके। इसके लिए आवश्यक है कि सभी शिक्षकों के प्रमाण पत्रों का गहन और सटीक सत्यापन किया जाए। शिक्षा के क्षेत्र में ऐसी धोखाधड़ी के खिलाफ सख्त कानूनों और प्रक्रियाओं की आवश्यकता है।

सीतामढ़ी के इस मामले ने हमें यह सोचने पर मजबूर किया है कि शिक्षा प्रणाली को एक मजबूत आधार की आवश्यकता है। यदि हम चाहते हैं कि हमारी आने वाली पीढ़ी सही और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करे, तो हमें इस प्रकार की धोखाधड़ी को सख्ती से रोकना होगा। फर्जी प्रमाण पत्रों पर काम करने वाले लोगों को उचित दंड दिया जाना चाहिए, ताकि भविष्य में कोई भी इस तरह की गलती करने की हिम्मत न करे। शिक्षा का मूल उद्देश्य ज्ञान और समझ को फैलाना है, और इसके लिए हमें सही और योग्य शिक्षकों की आवश्यकता है।

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